By पं. सुव्रत शर्मा
अहंकार, सरलता और सच्ची भक्ति की अनोखी कथा

भारतीय पुराण साहित्य में अनगिनत कथाएँ हैं जो मनुष्य को सरल लेकिन गहन संदेश देती हैं। यह कथाएँ केवल मनोरंजन के लिए नहीं कही गईं बल्कि जीवन के मार्गदर्शन के लिए थीं। इन्हीं में से एक है गणेश और कुबेर की कथा, जो यह सिखाती है कि धन कभी भी वास्तविक समृद्धि का मापदंड नहीं है। असली धरोहर विनम्रता, भक्ति और सच्चा समर्पण है।
कुबेर देवताओं के कोषाध्यक्ष माने जाते हैं। उनका निवास अलकापुरी स्वर्ण, रत्न और विलक्षण खजानों से भरा रहता था। किंतु जब धन बहुत अधिक हो जाए, तो उसका गर्व भी बढ़ने लगता है। कुबेर के साथ भी यही हुआ। उन्होंने अपनी समृद्धि का प्रदर्शन करने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती को अपने महल में भव्य भोज पर आमंत्रित किया। किंतु शिव और पार्वती ने उनके अभिमान को भांप लिया और स्वयं जाने के बजाय अपने पुत्र गणेश को भेजा। यह निर्णय ही इस कथा की नींव बना।
जब गोल-मटोल, चंचल बाल गणेश कुबेर के महल पहुँचे तो वातावरण में उल्लास था। कुबेर को लगा कि एक छोटे से बालक को संतुष्ट करना कोई कठिन काम नहीं होगा। उन्होंने सोचा कि स्वादिष्ट पकवानों की बहुलता से गणेश की भूख मिट जाएगी। महल के स्वर्णिम कक्ष विभिन्न व्यंजनों, लड्डुओं और मिठाइयों से भरे हुए थे। परंतु जैसे ही गणेश ने खाना शुरू किया, यह स्पष्ट हो गया कि उनकी भूख सामान्य नहीं थी। एक के बाद एक थाल खाली होती गई, लेकिन गणेश लगातार और भोजन माँगते रहे।
थोड़ी ही देर में गणेश ने महल की सारी रसोई का भोजन समाप्त कर दिया। रसोइयों के हाथ-पाँव फूल गए, पर गणेश की माँग और तेज होती गई। जब भोजन समाप्त हो गया तो गणेश ने महल का फर्नीचर, आभूषण और यहाँ तक कि सजावट की वस्तुएँ खाना शुरू कर दीं। अंततः उन्होंने कुबेर को चेतावनी दी कि यदि भोजन और न दिया गया तो वे स्वयं कुबेर को भी निगल लेंगे। कुबेर का गर्व और अभिमान उसी क्षण चकनाचूर हो गया। इतने धन के बावजूद वे एक बालक की भूख के आगे पूरी तरह असहाय थे।
कुबेर का सारा आत्मविश्वास मिट चुका था। वे भयभीत और लज्जित होकर सीधे कैलाश पर्वत पहुँचे। वहाँ जाकर उन्होंने भगवान शिव और माता पार्वती के चरणों में गिरकर अपनी भूल स्वीकार की। उन्होंने स्वीकार किया कि उनका गर्व व्यर्थ था और उनका धन वास्तव में शक्तिहीन है। उन्होंने प्रार्थना की कि वे इस संकट से मुक्ति दिलाएँ।
माता पार्वती ने कुबेर को डाँटा नहीं। उन्होंने करुणा दिखाते हुए केवल एक कटोरा चिवड़े (पोहा) का दिया और कहा कि इसे श्रद्धा और नम्रता से गणेश को अर्पित करना। कुबेर यह कटोरा लेकर लौटे और हाथ जोड़ के गणेश को भेंट किया। जैसे ही गणेश ने इसे ग्रहण किया, उनकी भूख शांत हो गई। कुबेर आश्चर्यचकित थे कि साधारण चिवड़े ने वह कर दिखाया जो सोने और रत्नों का ढेर भी नहीं कर सका।
यह कथा हमें यह बताती है कि भौतिक ऐश्वर्य कभी भी असली संतोष नहीं दे सकता। गणेश की असीम भूख मानव की इच्छाओं का प्रतीक है, जो केवल और अधिक चाहती हैं। सोने-चाँदी से उन्हें तृप्त नहीं किया जा सकता। केवल विनम्रता और श्रद्धा से ही मनुष्य संतोष प्राप्त कर सकता है।
| शिक्षा | अर्थ |
|---|---|
| धन का अहंकार | कुबेर की दौलत पलभर में निरर्थक हो गई, यह सिखाता है कि अहंकार विनाश का कारण है। |
| इच्छाओं की अतृप्ति | गणेश की भूख मानव की असीम इच्छाओं का प्रतीक है, जो कभी शांत नहीं होतीं। |
| सरलता की शक्ति | साधारण चिवड़े ने अहंकार को परास्त कर दिया, जो सरलता की महत्ता दर्शाता है। |
| सच्ची संपत्ति | भक्ति, प्रेम और नम्रता ही असली धरोहर हैं, जो असली संपत्ति है। |
| अहंकार का अंत | गणेश विघ्नों को दूर ही नहीं करते, बल्कि अहंकार का नाश भी करते हैं, जो विनम्रता की शिक्षा देते हैं। |
आज के समय में लोग अक्सर विलासिता और दिखावे में खो जाते हैं। वे समझते हैं कि महँगी वस्तुएँ, गाड़ियाँ और आभूषण ही सफलता के प्रतीक हैं। परंतु यह कथा बताती है कि यह सब क्षणिक है। यदि हृदय में श्रद्धा और प्रेम नहीं है, तो धन का कोई मूल्य नहीं है। जब सच्चे भाव से कुछ अर्पित किया जाए, चाहे वह कितना भी साधारण क्यों न हो, वही ईश्वर को प्रसन्न कर देता है।
गणेश और कुबेर की कथा केवल एक पुरानी दंतकथा नहीं है। यह हर युग के लिए मार्गदर्शक है। कुबेर को सीखना पड़ा कि भव्य भोज से अधिक प्रभावी वह साधारण अर्पण था, जो सच्चे मन से किया गया। यह सिखाता है कि ईश्वर को रत्नों की नहीं, हृदय की आवश्यकता है।
प्रश्न: कुबेर ने शिव-पार्वती को भोज पर क्यों बुलाया
उत्तर: अपने धन और ऐश्वर्य का प्रदर्शन करने के लिए उन्होंने उन्हें आमंत्रित किया था।
प्रश्न: गणेश की भूख का प्रतीकात्मक अर्थ क्या है
उत्तर: यह मानव की अतृप्त इच्छाओं को दर्शाता है जो केवल भक्ति से शांत हो सकती हैं।
प्रश्न: पार्वती ने कुबेर को क्या उपाय दिया
उत्तर: उन्होंने केवल एक कटोरा साधारण चिवड़े दिया जिसे श्रद्धा से अर्पित करने पर गणेश की भूख शांत हुई।
प्रश्न: इस कथा का मुख्य संदेश क्या है
उत्तर: यह बताती है कि असली समृद्धि धन से नहीं बल्कि विनम्रता और भक्ति से मिलती है।
प्रश्न: यह कथा आज के समय में क्यों महत्वपूर्ण है
उत्तर: क्योंकि आज भी लोग दिखावे और विलासिता में खोए रहते हैं, जबकि असली सुख सरलता और सच्चे भाव में छिपा है।

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