By पं. अभिषेक शर्मा
गणेश चतुर्थी का आध्यात्मिक महत्व, पर्यावरणीय संदेश और नेतृत्व की शिक्षा

गणेश चतुर्थी केवल घर में मूर्ति स्थापित करने और पूजा करने का पर्व नहीं है। यह पर्व हमें भीतर बसे गणपति को जागृत करने की प्रेरणा देता है। रिश्तों के उतार चढ़ाव, करियर की चुनौतियां और व्यक्तिगत जीवन की कठिनाइयां सबके मार्ग में आती हैं। परंतु महत्व इस बात का है कि व्यक्ति किस दृष्टिकोण से इन्हें स्वीकार करता है। भगवान गणेश की कृपा सिखाती है कि बाधाएं अंत नहीं हैं बल्कि विकास का निमंत्रण हैं।
यह पर्व भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से प्रारंभ होता है, जो प्रायः अगस्त सितंबर में आता है। आयुर्वेद के अनुसार इस समय शरीर का रस विस्तार पाता है और यह मानसिक विकास तथा चिंतन की गहराई से जुड़ा रहता है। इसी कारण यह समय बुद्धि, विवेक और शक्ति के जागरण से संबद्ध है।
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इस पर्व को घरों से बाहर निकालकर सार्वजनिक आयोजन का रूप दिया। इस आयोजन ने भारतवासियों को एकता और आत्मविश्वास का बल दिया और गणेश चतुर्थी मात्र धार्मिक न रहकर सांस्कृतिक नवजागरण का प्रतीक बन गई।
गणपति का स्वरूप वैदिक ग्रंथों से पुराणों तक का एक निरंतर विकास है। ऋग्वेद (2.23.1) में गणपति को "गणों के अधिपति" के रूप में पुकारा गया है। यहां पर गणपति की पहचान बृहस्पति के साथ की जाती है जो आह्वान और ज्ञान के देवता माने गए। आज भी “गणानां त्वा गणपतिं हवामहे” मंत्र प्रत्येक शुभ कर्मारंभ पर गाया जाता है।
यजुर्वेद और अथर्ववेद में गणपति सामूहिक चेतना के मार्गदर्शक के रूप में वर्णित हैं। जब पुराणों के समय का दौर आता है तो यही ऊर्जा मूर्तिमान होकर गजमुख गणेश का रूप धारण करती है। वे व्यास जी के लेखन के सहचर बने और जब कलम टूट गई तो उन्होंने अपने दांत को तोड़कर महाभारत का लेख अधूरा न रहने दिया। यह बलिदान धर्म और ज्ञान के लिए था।
| अंग या प्रतीक | संदेश और महत्व |
|---|---|
| बड़ा सिर | विवेक और दूरदृष्टि का प्रतीक, बड़ा सोचने और व्यापक दृष्टिकोण अपनाने का संदेश |
| बड़े कान | गहन श्रवण और ग्रहणशीलता का प्रतीक, दूसरों की बात ध्यान से सुनने का महत्व |
| छोटी आंखें | एकाग्रता और सूक्ष्म दृष्टि का प्रतीक, ध्यान केंद्रित करने और हर छोटी बात पर ध्यान देने का संदेश |
| सूंड़ | लचीलापन और बहुमुखी प्रतिभा का प्रतीक, हर परिस्थिति में अनुकूलनशील होने की शिक्षा |
| टूटा दांत | त्याग और आत्मसंयम का प्रतीक, लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने और अनावश्यक बातों को त्यागने की सीख |
| मूषक वाहन | अहंकार और इच्छाओं पर नियंत्रण का प्रतीक, अनियंत्रित मन को वश में करने की क्षमता |
| बड़ी तोंद | संतुलन और जीवन के अनुभवों को आत्मसात करने की क्षमता, सुख-दुख सभी को स्वीकार करने की प्रेरणा |
| मोदक | निःस्वार्थ कर्म से मिलने वाली आनंद की प्रतीक |
योगिक दृष्टि से गणपति मूलाधार चक्र के अधिपति माने जाते हैं। मूलाधार ही ऊर्जा तंत्र का आधार है। सबसे बड़ी रुकावटें भय, अस्थिरता और संदेह हैं। गणपति इस चक्र की रक्षा करते हैं और साधकों को स्थिर और निडर बनाकर उन्हें ऊपरी चक्रों की ओर अग्रसर करते हैं।
वैदिक गणपति नेतृत्व के आदर्श रहे हैं। उनका स्वरूप कालातीत नेतृत्व दृष्टि को दर्शाता है।
गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक गणेश जी घरों और पंडालों में मेहमान बनकर विराजते हैं। इन दिनों भजन, आरती और स्तुति से वातावरण श्रद्धा और एकता से भर जाता है। मिट्टी की मूर्ति हमें यह शिक्षा देती है कि हर रूप क्षणिक है और सच्चाई केवल आत्मा है।
अनंत चतुर्दशी को विसर्जन केवल विदाई नहीं है बल्कि एक आध्यात्मिक सत्य है कि रूप नश्वर है और तत्व शाश्वत। मिट्टी का जल में मिल जाना हमें याद दिलाता है कि हर रूप अंततः पंचतत्व में विलीन होता है। यही दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा का भी दिन है।
माता पार्वती द्वारा मिट्टी से बनाए गए गणेश प्रकृति की सरलता और संतुलन का प्रतीक हैं। आज के समय में पर्यावरण की रक्षा सबसे बड़ी चुनौती है। प्रदूषित नदियां और नष्ट होते पारिस्थितिक तंत्र हमें सोचने पर विवश करते हैं कि गणेश चतुर्थी केवल पूजा नहीं बल्कि जिम्मेदारी भी है। पर्यावरण अनुकूल गणेश मूर्तियां इस जिम्मेदारी की दिशा में पहला कदम हैं।
गणेश की सच्ची कृपा तभी मिलेगी जब मनुष्य धरती के साथ सामंजस्य में जीवन बिताएगा।
गणेश शिव और शक्ति दोनों की कृपा से जन्मे हैं। उनके स्वरूप में स्थिरता और गतिशीलता दोनों का मेल मिलता है। उनका हाथी का सिर ज्ञान और स्मृति का प्रतीक है जबकि उनका उदर जीवन के अनुभवों को आत्मसात करने की शक्ति है। गणपति याद दिलाते हैं कि उत्कर्ष जीवन में संतुलन से आता है, अतियों से नहीं।
"हे गणपति
आप सृष्टि की पहली ध्वनि हैं
श्वासों के मध्य का मौन
वह ज्ञान जो झुकता है लेकिन टूटता नहीं
आपके बड़े कान सब छिपा हुआ सुनते हैं
आपकी सूंड हर परिस्थिति के योग्य ढलती है
आपका एक दांत सत्य का त्याग है
आप हर यात्रा के द्वार पर बैठते हैं
बाधाओं को अवसर और आरम्भ को आशीर्वाद में बदल देते हैं"
गणपति बप्पा मोरया
1. गणेश चतुर्थी कब से कब तक मनाई जाती है?
यह पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से प्रारंभ होकर अनंत चतुर्दशी को समाप्त होता है।
2. गणपति किस चक्र के अधिपति हैं?
योग दर्शन में गणपति मूलाधार चक्र के अधिपति माने जाते हैं।
3. गणेश के अंगों का क्या महत्व है?
उनका बड़ा सिर बुद्धि, बड़े कान गहन श्रवण और सूंड लचीलेपन का प्रतीक है।
4. क्या विसर्जन केवल विदाई है?
नहीं, विसर्जन यह याद दिलाता है कि रूप क्षणिक है और तत्व शाश्वत है।
5. पर्यावरण अनुकूल गणेश क्यों महत्वपूर्ण हैं?
क्योंकि मूर्तियों के माध्यम से संतुलन और प्रकृति संरक्षण का संदेश मिलता है।

अनुभव: 19
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