By पं. अभिषेक शर्मा
गणेश जन्म कथा से लेकर उनके मोदक, सर्प, मूषक और एकदंत तक, हर प्रतीक छुपाए है ज्ञान
भगवान गणेश का स्वरूप केवल पूजा के लिए बनाई गई प्रतिमा नहीं है। यह प्रतीकों की ऐसी जीवित शिक्षा है, जिसमें जीवन और अध्यात्म के गहन संदेश छिपे हुए हैं। ऋषियों ने शब्दों की बजाय प्रतीकों को इसलिए चुना क्योंकि शब्द समय के साथ बदलते जाते हैं और उनका अर्थ भी नष्ट हो सकता है। जबकि प्रतीक अमर रहते हैं और हर काल में एक जैसी शिक्षा देते हैं। गणपति के बड़े कान ध्यान से सुनने का संदेश देते हैं, उनकी सूंड लचीलापन और व्यावहारिकता को दर्शाती है, बड़ा पेट स्वीकृति और आत्मसंयम सिखाता है और उनका छोटा वाहन मूषक यह संदेश देता है कि विशाल चेतना को भी छोटे साधन से अनुभव किया जा सकता है। गणेशजी के स्वरूप की हर विशेषता मनुष्य के जीवन पथ पर प्रकाश डालती है।
पार्वती जी ने अपने स्नान से पहले शरीर के मैल से एक बालक का निर्माण किया और उसे द्वार पर पहरा देने को कहा। जब भगवान शिव लौटे, तो उस बालक ने उनका रास्ता रोका। उसने अज्ञानवश अपने ही पिता को न पहचाना। शिव ने क्रोधावेश में उसका शिरच्छेद कर दिया। पार्वती के शोक से व्याकुल होकर शिव ने उस बालक को पुनर्जीवित किया और उसके धड़ पर उत्तरमुखी गजराज का मस्तक स्थापित किया। वही गणपति कहलाए।
यह कथा यदि सतही नजर से देखी जाए तो असंगत दिखती है। किंतु जब इसे प्रतीक की दृष्टि से समझा जाता है तो इसका गहन रहस्य खुलता है। पार्वती उत्सव और ऊर्जा का प्रतीक हैं। उनका शरीर मैल अज्ञान का संकेत है। गणेशजी द्वारा शिव को मार्ग में रोकना यह बताता है कि अज्ञान कभी भी ज्ञान को पहचान नहीं पाता। शिव का शिरच्छेद करना इसका प्रतीक है कि ज्ञान अज्ञान का विनाश करता है। उत्तर दिशा वाले गजराज का मस्तक जोड़ना यह दर्शाता है कि ज्ञान ही सभी प्रश्नों का उत्तर है और वह ही शांति का मार्ग प्रशस्त करता है। इस प्रकार गणेश अज्ञान से ज्ञान की ओर जाने की यात्रा के प्रतीक बन जाते हैं।
गणेशजी के हाथ में मोदक प्रसन्नता, संतोष और समृद्धि का द्योतक माना जाता है। जब जीवन में ज्ञान का प्रकाश भर जाता है तब सहज आनंद प्रकट होता है। ऐसा आनंद बाहरी वस्तुओं से नहीं आता बल्कि भीतर की पूर्णता से आता है। मोदक यही स्मरण कराता है कि वास्तविक सुख भौतिकता से परे है।
गणेशजी का बड़ा उदर बड़ा गूढ़ संकेत देता है। यह पेट भोग या आलस्य का चिन्ह नहीं बल्कि सचेत स्वीकृति का प्रतीक है। ज्ञानी व्यक्ति हर स्थिति और अनुभव को अंदर समाहित कर लेता है और संयम से आत्मसात करता है। उदर पर लिपटा सर्प यह बताता है कि स्वीकृति यदि सजग न हो तो वह अज्ञान का रूप ले सकती है। लेकिन जब स्वीकृति जागरूकता और आत्मसंयम के साथ जुड़ी हो तब वह शक्ति बन जाती है। गणेश का बड़ा पेट हमें यह सिखाता है कि जीवन में आने वाली हर परिस्थिति को स्वीकार करना चाहिए मगर बुद्धि जागृत रहनी चाहिए।
गणेशजी का अभय मुद्रा में हाथ यह संदेश देता है कि "डरो मत" और वरद मुद्रा में दूसरा हाथ यह कहता है "आशीर्वाद लो"। यह मुद्रा दर्शाती है कि भय और संतोष बाहर से नहीं आते बल्कि भीतर से उपजते हैं। एक बार जब मन ज्ञान से भर जाता है तब निर्भयता और संतोष स्वयं ही निकलते हैं।
भाद्रपद मास की चतुर्थी का चंद्रमा सीमित और अस्थिर मन का प्रतीक माना जाता है। यह छोटा मन बिना देखे परखे हर बात को अस्वीकार कर देता है और निरंतर अशांत रहता है। कथा है कि गणेशजी ने अपनी सूंड और दांत से इस चंद्रमा पर प्रहार किया। इसका अर्थ है कि अज्ञान भी दिव्यता के बाहर नहीं है, पर ज्ञानी व्यक्ति छोटे मन के बजाय बुद्धि और अंतर्ज्ञान से जीता है।
गणेश का एकदंत रूप यह सिखाता है कि साधक का ध्यान केवल एक ही लक्ष्य पर होना चाहिए। “एकदंत” का अर्थ है एकाग्रता और अडिग एकनिष्ठता। साथ ही यह भी बताता है कि गणपति सभी को देने वाले हैं। दो दांत चबाने में सहायक होते हैं, जो बाहरी वस्तुओं को संसाधित करने के लिए आवश्यक हैं। जाग्रत व्यक्ति के लिए कोई बाहरी नहीं बचता, क्योंकि सब उसी का हिस्सा होता है। इसलिए वह केवल एक दांत से ही संपूर्ण प्रतीकात्मक शिक्षण देता है।
गणेशजी के हाथों में अंकुश और पाश दोनों दिखाई देते हैं। अंकुश का अर्थ है साधना के द्वारा कुंडलिनी शक्ति का जागरण। किंतु शक्ति अपने आप में पर्याप्त नहीं जब तक उस पर नियंत्रण न हो। पाश संयम का प्रतीक है। इसका संकेत है कि सच्चा साधक वही है जो जाग्रत शक्ति को नियम और अनुशासन में रखकर कल्याणकारी बना देता है। इसलिए संतुलन ही सबसे महत्वपूर्ण है। शक्ति और संयम साथ हों तो जीवन का मार्ग सुगम और उत्साहपूर्ण होता है।
गणपति का वाहन छोटा सा मूषक है। विशालकाय गणेश को यह छोटा सा प्राणी ढोता है। लेकिन दर्शन कहता है कि यही प्रतीक सबसे गहरे रहस्य को छुपाए है। यह मूषक गुरु मंत्र का प्रतीक है। छोटे से बीज मंत्र में विशाल चेतना समाई होती है। जैसे बड़े वैज्ञानिक सिद्धांत छोटे सूत्र में व्यक्त होते हैं, वैसे ही आत्मज्ञान छोटे प्रश्न से जागृत हो जाता है। "मैं कौन हूं?" जैसी जिज्ञासा महासागर का द्वार खोल देती है।
पुराण कहते हैं कि गणेशजी को उत्तरमुखी गजराज का मस्तक प्रदान किया गया। संस्कृत में "उत्तर" का अर्थ उत्तर दिशा और उत्तर यानी समाधान भी है। इसलिए यह कहा जाता है कि गणेश के मस्तक में सभी प्रश्नों का उत्तर समाया है। जिनके पास उत्तर है, वे संतोष और शांति से जीवन जीते हैं।
आदि शंकराचार्य ने गणपति को गणपति अथर्वशीर्ष में सर्वव्यापी स्वरूप कहा। गणेश ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र और इंद्र के स्वरूप हैं। वे गुणों के अधिपति होते हुए भी गुणातीत हैं। वे अनंत चेतना, आनंद और शुद्ध ज्ञान का स्वरूप हैं। वे किसी सीमा में बंधे नहीं। इसलिए उनका सार यही है कि वे विशेष नहीं बल्कि सर्वत्र उपस्थित असीमता का प्रतीक हैं।
गणेश चतुर्थी केवल अनुष्ठान या भय का विषय नहीं है। यह प्रेम का उत्सव है, आभार का पर्व है। प्रतिमा बनाना केवल माध्यम है। वास्तविक गणपति हमारे भीतर हैं। विसर्जन यह याद दिलाता है कि ईश्वर बाहर नहीं बल्कि हमारे हृदय में हैं। सच्चा भक्त भगवान से वस्तु नहीं मांगता, केवल उनके सान्निध्य की कामना करता है।
गणेशप्रतिमा की स्थापना और विसर्जन एक ही जीवनचक्र के प्रतीक हैं। यह संसार की अस्थिरता और आत्मज्ञान की स्थिरता का संदेश देता है। वास्तविक उत्सव तभी है जब हम भीतर स्थित गणपति तत्व को जाग्रित करें और समझें कि ज्ञान, आनंद और निर्भयता में जीना ही जीवन का सबसे बड़ा उत्सव है।
Q: गणेशजी के हाथ का मोदक क्या प्रतीक है
A: यह आनंद, समृद्धि और संतोष का प्रतीक है और बताता है कि ज्ञान ही सच्चा सुख देता है।
Q: मूषक गणेशजी का वाहन क्यों है
A: मूषक गुरु मंत्र और तर्क का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि छोटे प्रश्न और छोटे मंत्र गहन ज्ञान का द्वार खोलते हैं।
Q: गणेश का एकदंत स्वरूप किस शिक्षा को दर्शाता है
A: यह एकाग्रता और एकनिष्ठता का संदेश है। साथ ही यह दर्शाता है कि गणपति सबसे बड़े दाता हैं।
Q: पाश और अंकुश से क्या संदेश मिलता है
A: अंकुश शक्ति के जागरण का संकेत है और पाश नियंत्रण का। दोनों अध्ययन और संयम का संतुलन दिखाते हैं।
Q: विसर्जन हमें क्या समझाता है
A: विसर्जन बताता है कि भगवान बाहर नहीं बल्कि हमारे भीतर हैं। वास्तविक पूजा भीतर के गणपति तत्व को जगाना है।
अनुभव: 19
इनसे पूछें: विवाह, संबंध, करियर
इनके क्लाइंट: छ.ग., म.प्र., दि., ओडि, उ.प्र.
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