By पं. सुव्रत शर्मा
आदिकालीन रौद्र रूप से सरल भोलेनाथ तक शिव के बदलते स्वरूप और शिक्षाएं जानें
शिव - भारतीय संस्कृति का एक ऐसा दिव्य रूप, जो समय के साथ विधाता, योगी और दयालु भोलेनाथ के रूप में बदलता रहा है। वेदों के रुद्र (करीब 1000 ईसा पूर्व) का स्वरूप, पुराणों के शिव (लगभग 500 ईसवी) से बिल्कुल अलग है। रुद्र के हाथों में त्रिशूल नहीं, बल्कि धनुष है और वे ब्रह्मा पर तीर चलाते हैं। जब यज्ञ में उन्हें नहीं बुलाया जाता, तो वे उसे विध्वंस कर देते हैं। उन्हें बचे-खुचे अर्पण ही मिलते हैं। लेकिन महाभारत के समय तक, वे एक ऐसे देवता बन जाते हैं, जिन्हें अम्बा और अश्वत्थामा अपने शत्रुओं को नष्ट करने के लिए पुकारते हैं।
पुराणों में शिव एकदम अलग - श्रेष्ठ सम्राट से कहीं अधिक भोले, सरल ह्रदय, दयालु और समय-समय पर भ्रमित भी दिखते हैं।
लोककथाओं में शिव को ‘आशुतोष’ कहा जाता है - जो तुरंत प्रसन्न हो जाएँ और वरदान दे दें। धर्म का प्रचार करते समय इस विशेषता को लोकप्रिय बनाया गया। दूसरे मतों ने ट्रिकस्टर या दुर्जनों के लाभार्थ उन्हें ‘भोला’ घोषित किया: ‘‘जो संसार की नीति-रीति ठीक से नहीं समझते, इसलिए सबको एक नजर से देखते हैं - चोरी करने वालें और भक्ति करने वाले में भेद नहीं करते।’’
इन घटनाओं में शिव की मनोवृत्ति दिखती है - बाँटने में कोई हिचकिचाहट नहीं, वह भी सोच-समझकर नहीं बल्कि अति संतोष की भावना से। संतोषी व्यक्ति कई बार शातिरों के लिए आसान शिकार बन जाता है, क्योंकि वह स्वयं में पूर्ण है और चीज़ों से चिपकने का भाव नहीं रखता।
उदारता महान है, लेकिन विवेक के बिना, यह अराजकता का कारण भी बन सकती है। अति दान, बिना परिणाम की चिंता किए, समाज में अव्यवस्था फैला सकता है। किसे मिल रहा है, क्यों मिल रहा है, इस पर विचार न किया जाए तो धर्म और नीति के आधार डगमगा जाते हैं।
शिव केवल संपत्ति बाँटने वाले नहीं, उनका संतोष उन्हें दूसरों की असुरक्षा और इच्छाओं को वस्तुपरक रूप में देखने की शक्ति देता है। उनके लिए दान देना निर्लिप्तता है - क्योंकि वे जानतें हैं, जो छल करेगा, अंततः समय (काल) की चपेट में आ ही जाएगा। शिव ही ‘काल’ हैं, जो हर उस व्यक्ति को निगल जाते हैं, जो संतोष की सरलता और उदारता को कमजोरी समझता है।
प्रसंग / कथा | मुख्य शिक्षा |
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भस्मासुर को दिए वरदान | विवेकहीन दान से विपत्ति भी आ सकती है |
रावण को कैलाश सौंपना | दानशीलता की भी सीमाएँ हैं, अन्यथा दुरुपयोग होता है |
सबका एक जैसा आदर | संतुलन और निरपेक्षता का आदर्श |
सहजता से क्षमा करना | करुणा और अनासक्ति की शक्ति |
संतोष और निष्कामता | संतोष स्वयं रक्षा भी है, बंधन से मुक्ति भी |
शिव की कहानियाँ केवल दयालुता या दानशीलता की नहीं; संतुलन, विवेक, निर्लिप्तता और परिणाम की चिंता के साथ जीवन जीने की प्रेरणा भी हैं। उदार बनना उत्तम है, लेकिन उसके साथ जागरूकता और उत्तरदायित्व भी आवश्यक हैं। भोलेनाथ का यही सरल स्वरूप, सभी में आत्म-निरीक्षण, संतुलन और दयालुता को पोषित करता है।
शिव, जो स्वयं काल के स्वामी हैं, अपने समय से आगे सोचते हैं। दान, दया और संतोष की राह पर चलना चाहिए, लेकिन सदा विवेक और समता का भाव साथ हो - यही शिव-तत्व है, जो हर युग में प्रासंगिक है।
अनुभव: 27
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