By पं. अमिताभ शर्मा
असुर नरकासुर वध, यमराज पूजा, तिल-गुड़ दान एवं पूरे भारत की सांस्कृतिक विविधताएँ
नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है, दिवाली पर्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पर्व अंधकार और अज्ञानता पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है और बुरी शक्तियों के नाश का उत्सव है। यह दिन पर्व के समापन से पहले मनाया जाता है और पूरे देश में विभिन्न रीति-रिवाजों से संपन्न होता है।
वर्ष 2025 में नरक चतुर्दशी 19 अक्टूबर, रविवार को मनाई जाएगी। इस दिन की शुरुआत 19 अक्टूबर दोपहर 1:51 बजे से होती है और यह तिथि 20 अक्टूबर दोपहर 3:44 बजे तक रहती है। चूंकि यह पर्व सामान्यतः रात्रि को मनाया जाता है, इसलिए 19 अक्टूबर की शाम को प्रमुख पूजा और अनुष्ठान होते हैं। मुख्य दिवाली का दिन इसके अगले दिन होता है, जब लक्ष्मी माता की पूजा की जाती है।
नरक चतुर्दशी भगवान श्रीकृष्ण द्वारा असुर नरकासुर के वध की स्मृति में मनाई जाती है। पुराणों के अनुसार, नरकासुर ने देवताओं और मनुष्यों पर अत्याचार किया था, जिसे भगवान कृष्ण ने धराशायी कर सभी के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया।
यह दिवस शत्रुओं पर विजय, नकारात्मकता से मुक्ति और आध्यात्मिक प्रकाश का आगमन दर्शाता है। इसका संदेश है कि अंधकार चाहे जितना भी बढ़ जाए, अंत में प्रकाश की जीत निश्चित होती है।
इसके साथ ही, इस दिन यमराज की भी पूजा की जाती है। माना जाता है कि यम देव हर वर्ष इस दिन अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं और उनके कष्ट दूर करते हैं। इसीलिए इस दिन तिल, गुड़ और अन्य वस्तुएं यमराज को अर्पित की जाती हैं।
पूरी तरह से घर की सफाई करें। घर की साफ-सफाई में नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है।
प्रतीकात्मक उपाय: घर के सभी कोनों में दीपक जलाएं, विशेष रूप से दक्षिण दिशा में, जिसे यम का स्थान माना जाता है।
पूजा स्थल की तैयारी: पूजा के लिए एक स्वच्छ स्थान चुनें। स्थान पर तुलसी, गुड़, तिल, विपन्नों के लिए वस्त्र, भोजन के लिए मिठाइयां और जल रखें।
यम देव की पूजा: तिल, गुड़, गाय के दूध से बनायी गई मीठाई और नैवेद्य जैसे पकवानों की अर्पण करें। परिवार के पूर्वजों को भी स्मरण कर उनकी आत्माओं के लिए प्रार्थना करें।
दीप प्रज्वलन: घर के मुख्यमार्ग और आंगन में दीपक जलाएं। माना जाता है कि दीपक की रोशनी से अंधकार और बुरी आत्माएं दूर होती हैं।
रात्रि जागरण: अनेक स्थानों पर रात भर भारत के लोकगीत, भजन कीर्तन और नृत्य आयोजित किए जाते हैं जो उत्सव को भव्य बनाते हैं।
दान-पुण्य: तिल, गुड़, वस्त्र, अन्न और धन का दान इस दिन विशेष पुण्यकारक माना जाता है।
बंगाल: इस दिन भूत पितरों के लिए विशेष पूजा की जाती है। परिवार नौवीं रात को 14 दीप जलाकर पूर्वजों की याद में स्मृति-अर्पण करते हैं, जिसे भूत चतुर्दशी कहा जाता है।
महाराष्ट्र: यहाँ नरक चतुर्दशी को हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है। भक्त हनुमान की विशेष पूजा करते हैं और उनके उपवास का अनुसरण करते हैं।
तमिलनाडु: यहाँ नरक चतुर्दशी को ‘कानेतिप्पन’ के नाम से जाना जाता है। भक्त सादा उपवास रखते हैं और दिवाली की तैयारी पूरी करते हैं।
गुजरात: समुद्र के किनारे विशेष दीपोत्सव होते हैं। समुद्र में बर्तन धोना और पूजन करना वनमाला की योजना के अनुरूप होता है।
उत्तर भारत: इस भाग में दीपक जलाने की परंपरा और विशेष कृषि सम्बंधित पूजा की जाती है। काशी और अयोध्या जैसे तीर्थ क्षेत्रों में भव्य उत्सव होता है।
पुराणों में वर्णित है कि नरकासुर एक अत्याचारी दानव था जिसने देवी लक्ष्मी को बंदी बना लिया था। भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध करके देवी को मुक्त कराया। इस घटना को विजय और बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।
एक कथा के अनुसार, यमराज ने अपने भक्तों को इस दिन 14 प्रकार के तिल दान करने का आदेश दिया था। तिल का दान पितृ संतुष्टि का मार्ग बनता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन तिल, गुड़ और अन्य वस्त्र दान करने से मृतकों की आत्मा को सुख शांति मिलती है।
यह त्योहार हमें यह भी सिखाता है कि जीवन में हर अंधकार के बाद प्रकाश होता है। नरकासुर वध से ज्ञात होता है कि अहंकार और बुरी शक्तियों का अंत निश्चित है। जो व्यक्ति सच्चे मन से भक्तिपूर्वक इस व्रत को रखता है, उसका जीवन सुखमय होता है।
हवन के दौरान निर्मित धुआं वातावरण से हानिकारक बैक्टीरिया और विषाणुओं को समाप्त करता है। तेल के दीयों से निकलने वाली रोशनी आयनिक ऊर्जा उत्पन्न करती है, जो नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है और सकारात्मक मनोस्थिति लाती है।
व्रत करना शारीरिक व मानसिक अनुशासन सिखाता है। यह आत्मा की शुद्धि के लिए सर्वोत्तम उपाय है।
नरक चतुर्दशी के अवसर पर विशेष पकवान बनाये जाते हैं, जिनमें मालपुआ, पूड़ी एवं गुड़-मुंगफली के लड्डू प्रमुख हैं। कड़ी, चोला और विभिन्न मीठे व्यंजन परोसे जाते हैं।
विषय | विवरण |
---|---|
तिथि | रविवार, 19 अक्टूबर 2025 |
पूजा समय | शाम 6:00 बजे से 8:00 बजे तक |
प्रमुख देवता | भगवान शिव, यमराज, नरकासुर, देवी लक्ष्मी |
प्रमुख अनुष्ठान | दीप प्रज्वलन, तिल-गुड़ दान, विधिपूर्वक पूजन |
क्षेत्रीय उत्सव | बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, उत्तर भारत |
नरक चतुर्दशी कब मनाई जाती है?
यह पर्व दीपावली के एक दिन पहले, भाद्रपद कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है।
क्या नरकासुर सचमुच था?
हाँ, पुराणों में नरकासुर का उल्लेख एक दानव के रूप में मिलता है जिसने धर्म की स्थापना में बाधा डाली।
तिल-गुड़ दान का क्या महत्व है?
तिल-गुड़ दान से परिवार के पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और बुरी शक्तियों का नाश होता है।
क्या व्रत पूर्ण निर्जल होना चाहिए?
व्रत का नियम क्षेत्र और व्यक्ति अनुसार भिन्न होता है लेकिन पूर्ण निर्जल व्रत अधिक पुण्यदायक माना जाता है।
नरक चतुर्दशी के दौरान क्या खास पकवान बनाये जाते हैं?
मालपुआ, गुड़ के लड्डू, पूड़ी आदि पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं।
यह विस्तृत लेख नरक चतुर्दशी के धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक पहलुओं की व्यापक जानकारी एवं मार्गदर्शन प्रदान करता है। सभी आवश्यक तथ्यों का समावेश, प्रभावी भाषा और सहज पठनीयता इसे हर पाठक के लिए मूल्यवान बनाते हैं।
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