By पं. सुव्रत शर्मा
नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, कंबोडिया, इंडोनेशिया - रामायण की गूंज और सामाजिक महत्व
रामायण केवल भारत या हिन्दू धर्म का ग्रंथ नहीं है। दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में इसकी प्रतिध्वनि वहाँ की संस्कृति, परंपराएँ, लोकगीत, शासन और शिक्षा तक में मिलती है। भारतीय संस्कृति का यह अद्वितीय उपहार किसी तानाशाही या सांस्कृतिक थोप से नहीं बल्कि स्थानीय समाजों की स्वीकृति, आत्मसात और अनूठी पुनर्खोज से संभव हुआ। हर क्षेत्र ने रामायण को अपनी ज़रूरतों और स्वभाव के अनुसार गढ़ा, इसीलिए यह महाकाव्य आज भी इन समाजों के हृदय में धड़कता है।
नेपाल के जनकपुर को सीता माता की जन्मभूमि माना जाता है। यहाँ का जानकी मंदिर आस्था का केन्द्र है। विवाह पंचमी यहाँ का मुख्य पर्व है, जिसमें हजारों श्रद्धालु भारत व नेपाल से जुटते हैं। नेपाली लोकाभिव्यक्ति में रामायण संस्कृत-नेपाली छंद में गाई जाती है। सीता को पतिव्रता, धैर्य और सामाजिक आदर्श की देवी माना जाता है। यह पर्व स्थानीय संस्कृति की गहराई और धार्मिक चेतना को दर्शाता है।
श्रीलंका में लंका का अमिट प्रभाव तो दिखता ही है, साथ ही लोककथाओं में रावण का चित्रण बहुआयामी है। यहाँ रावण केवल विरोधी नहीं बल्कि विद्वान, शक्तिशाली और शिवभक्त सम्राट भी है। अशोक वाटिका, रावण फॉल्स, सिगिरिया किला जैसी जगहें रामायण ट्रेल पर आती हैं। यहां की संस्कृति में रावण को नायक-विलक्षण के रूप में देखा गया है, जिससे राम और रावण दोनों के चरित्र संतुलित रूप में सामने आते हैं।
थाईलैंड में रामायण को 'रामकीन' कहा जाता है। चक्री राजवंश के राजा स्वयं को 'राम' की उपाधि देते हैं और प्रमुख मंदिरों की दीवारों पर रामकीन की गाथा उकेरी गई है। वहाँ स्कूलों में बच्चों को रामायण की शिक्षा दी जाती है। थाई शास्त्रीय नृत्य 'खोन' हो या पारंपरिक उत्सव, रामायण नायकत्व, कर्तव्य व निष्ठा का प्रतीक है। यहाँ राम भक्त, राजा और लोकनायक भी हैं।
कंबोडिया का अंगकोरवाट विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर है। इसके भित्ति चित्रों में रामायण व महाभारत के अनेक दृश्य उकेरे गए हैं। 'रीमकेर' यहाँ की रामायण कथा है, जिसका असर लोक नाट्य, नृत्य और भिक्षु परंपराओं में स्पष्ट दिखता है। खमेर संस्कृति में राम, सीता व रावण के पात्र जीवन, नीति और समाज की बुनियादी परिभाषा बन गए हैं।
जावा और बाली की भूमि पर रामायण छाया-नाटक 'वायांग कुलित' और खुले रंगमंच पर जीवंत है। प्रम्बानन मंदिर में रामायण के अद्भुत शिल्प मिलते हैं। मुस्लिम बहुल समाज में भी रामायण के त्यौहार, बालकथाएँ और सांस्कृतिक कथाएँ बच्चों, कलाकारों और आम जनता के जीवन में रची-बसी हैं। इंडोनेशिया में रामायण का अपना स्थानीय रंग होता है; पात्र और घटनाएँ दृश्यों, संगीत, वेशभूषा के अनुसार गढ़ी गयी हैं।
देश | स्थानीय रूप | सांस्कृतिक प्रतीक/परंपरा |
---|---|---|
नेपाल | सीता-जन्म कथा | जानकी मंदिर, विवाह पंचमी, लोकगीत |
श्रीलंका | लंका-रावण कथा | रामायण ट्रेल, अशोक वाटिका, रावण फॉल्स |
थाईलैंड | रामकीन | राम की उपाधि, मंदिर भित्ति चित्र, शास्त्रीय नृत्य |
कंबोडिया | रीमकेर | अंगकोरवाट, रीमकेर नृत्य और कलाएँ |
इंडोनेशिया | वैयांग-रामायण | प्रम्बानन, रामायण बैलेट, छाया नाटक |
सभी देशों ने रामायण में अपनी नैतिकता, सांस्कृतिक आदर्श और जीवन की कसौटी मिलाई है। कहीं राम का धम्म और नीति बोध है, कहीं सीता का आदर्श, कहीं रावण का सामर्थ्य और विद्या, तो कहीं रामकथा में बौद्ध, मुस्लिम तथा स्थानीय तत्त्वों का सम्मिलन है।
इन सभ्यताओं में रामायण केवल पुस्तक, नृत्य या शिल्प नहीं, जनजीवन की दिशा है।
देश | प्रमुख भाषा रूप | सांस्कृतिक स्वरूप |
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लाओस | फ्रा राम | बौद्ध-रामायण |
मलेशिया | हिकायत सिरी रामा | मलय-रूपांतरण |
वियतनाम | रामायन | जटाक कथाएँ |
बाली (इंडोनेशिया) | काकाविन रामायण | जावानीस-समाज |
विश्वविद्यालय, दूतावास, सांस्कृतिक केंद्र, रामायण महोत्सव और बाल-शिक्षा समेत अनगिनत क्षेत्रों में रामायण व महाभारत लोकमंच पर जीवंत हैं। रामायण ने कला, शिल्प, समाज और धर्म को आपस में जोड़ा है।
न केवल संस्कार भी बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया के कई राजवंशों, लोकगाथाओं, लोक कलाओं, नृत्य-शैलियों, ग्रंथों, पर्वों, त्यौहारों और वास्तुकला में रामायण की अमिट छवि उकेरी गई है।
प्रश्न 1: क्या रामायण सभी देशों में मूल भारतीय कथा जैसी ही है?
उत्तरा: नहीं, हर देश ने रामायण की मूल कथा को अपनी परंपरा, समाज और लोक स्मृति के अनुसार बदला है।
प्रश्न 2: श्रीलंका में रावण को नायक माना जाता है?
उत्तरा: श्रीलंका में रावण को महान राजा, योद्धा और शिवभक्त के रूप में भी आदर मिला है।
प्रश्न 3: इंडोनेशिया में मुस्लिम बहुल समाज में रामायण क्यों लोकप्रिय है?
उत्तरा: यहाँ रामायण संस्कृति, कला, शिक्षा और लोकस्मृति में इतनी गहराई से बसी है कि यह धर्म से परे समाज का साझा मूल्य बन गई है।
प्रश्न 4: थाईलैंड में ‘राम’ उपाधि का क्या महत्त्व है?
उत्तरा: थाईलैंड के राजा अपने नाम के साथ ‘राम’ जोड़ते हैं, जो राम को नायकत्व एवं धर्म के प्रतीक के रूप में स्थापित करता है।
प्रश्न 5: दक्षिण-पूर्व एशिया में रामायण की जीवंतता का क्या रहस्य है?
उत्तरा: वहाँ की संस्कृति, इतिहास, लोककला और लोकसंस्कारों में रामायण के आदर्श, नायकत्व और जीवन दर्शन ने स्वरूप लिया है, जो आज भी आधुनिक समाज में प्रेरणा देता है।
अनुभव: 27
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