By पं. सुव्रत शर्मा
श्री के वियोग से संतुलन तक, कूर्म अवतार, चौदह रत्न और आज की साधना
समुद्र मंथन की कथा केवल पुराण नहीं है, यह चेतना के मंथन का रूपक भी है। जब इंद्र ने मुनि दुर्वासा द्वारा प्रदान श्रीमाल्य का अपमान किया तो श्री का तेज विलीन हुआ। देव शक्तिहीन हुए और लोक से समृद्धि, स्वास्थ्य, सौहार्द जैसे गुण लुप्त होने लगे। यह पहला संकेत देता है कि आदर, आभार और विनय घटते ही लक्ष्मी भी धीरे से विदा हो जाती है।
देव विष्णु की शरण में गए। मार्ग यही मिला कि क्षीर सागर का मंथन किया जाए और असुरों की सहायता ली जाए। मंदराचल पर्वत मथानी बना और वासुकी नाग रस्सी बना। विष्णु ने कूर्म अवतार में पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया ताकि धुरी स्थिर रहे। यह स्थैर्य और सहयोग का पाठ है।
समुद्र में औषधियाँ डाली गईं और खींचतानी आरंभ हुई। देव उज्ज्वल पक्ष के प्रतीक हैं और असुर छाया के। दोनों का संयुक्त प्रयास ही छिपे रत्नों को बाहर लाता है। यह दिखाता है कि विपरीत शक्तियों का संतुलित संग ही सृजन करता है।
सबसे पहले घोर विष प्रकट हुआ। त्रिलोक संकट में था। शिव ने करुणा से विष को कंठ में धारण किया और नीलकंठ कहलाए। यह संदेश देता है कि बड़े परिवर्तन से पहले कठिन परीक्षाएँ आती हैं और किसी का संयम सबको बचाता है।
विष और अमृत के बीच से कमलासन पर श्री महालक्ष्मी प्रकट हुईं। वह सरलता और समृद्धि, दोनों की अधिष्ठात्री हैं। पद्म पुराण का तात्पर्य है कि उन्होंने सभी पर दृष्टि डाली पर विष्णु का वरण किया। समृद्धि का सुरक्षित आश्रय वही है जहाँ धर्म, न्याय और संतुलन हो।
वेदसंहिताओं में श्री सूक्त में लक्ष्मी का गुणगान है। वहाँ उन्हें धैर्य, पोषण, साहस और प्रकाश की जननी कहा गया है। वास्तविक लक्ष्मी केवल धन नहीं है, वह समग्रता है।
हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम। यह पंक्ति स्वर्णवत तेज, कोमलता और मर्यादा का संकेत देती है।
समुद्र मंथन से अनेक विभूतियाँ निकलीं। परंपराओं में वर्णित प्रमुख चौदह रत्न और उनके अर्थ नीचे सारणी में दिए हैं।
रत्न का नाम | संकेत और अर्थ |
---|---|
लक्ष्मी | समृद्धि, सद्भाव, संतुलन |
कौस्तुभ मणि | सत्य का तेज और विवेक |
वारुणी | संयमित सुख और मर्यादित आस्वाद |
धन्वंतरि | आरोग्य का विज्ञान और औषध चेतना |
अमृत | जीवन की दीर्घता और उत्कृष्टता |
कामधेनु | पोषण, सेवा और सतत संपन्नता |
कल्पवृक्ष | उचित इच्छा की सिद्धि |
अप्सराएँ | सौंदर्य, कला और रसबोध |
ऐरावत | धैर्य, स्थिरता और भार वहन |
उच्चैःश्रवा | तेज, गति और विजय का संकल्प |
पारिजात | शुभ फल और सौरभमय समृद्धि |
शंख | सत्यानुस्मरण और शुभारंभ का नाद |
चंद्र | शीतलता, शांति और मन की स्पष्टता |
हलाहल | परीक्षा, विषमता और रूढ़ि का त्याग |
सार यही है कि विषमता और अमृतत्व साथ निकलते हैं। जो विवेकपूर्वक चुनता है वही लक्ष्मी का सतत आश्रय बनता है।
जब अमृत प्रकट हुआ तो लोभ बढ़ा। विष्णु ने मोहिनी रूप से अमृत की रक्षा की और देव पक्ष को सौंपा। यह सिखाता है कि साधना से प्राप्त अमृत को विवेक और मर्यादा से ही सुरक्षित रखा जा सकता है।
कथा के अनुशीलन में कहा जाता है कि अमृत कलश की यात्रा में कुछ बूँदें धरती पर गिरीं। हरिद्वार, उज्जयिनी, नासिक और प्रयाग की नदी तटों पर यही स्मृति कुंभ के स्नान पर्व के रूप में जीवित है। यह स्मृति श्रध्दा का भूगोल रचती है।
अधर्म से बँधा धन विनाशक बनता है। धर्म, न्याय और संतुलन से जुड़ा धन घर, समाज और धरा का कल्याण करता है। लक्ष्मी का विष्णु का वरण यही सिखाता है कि समृद्धि को नीति और संरक्षण की छाया चाहिए।
अभ्यास | अवधि | फल |
---|---|---|
मौन और जप | 12 मिनट | मन की स्थिरता और विनय की वृद्धि |
दान और सेवा | साप्ताहिक | अहं का क्षय और लक्ष्मी का सदुपयोग |
अध्ययन और चिंतन | 20 मिनट | ज्ञान से निर्णय शक्ति |
विनियोग और संयम | सतत | आय व्यय में संतुलन और संसाधनों का संरक्षण |
दीप केवल तेल और बाती नहीं हैं। वह आंतरिक अंधकार को संबोधित करते हैं। दीपावली में लक्ष्मी पूजन का अर्थ है कि घर में मर्यादा, संवेदना और प्रसन्नता का वास हो। लक्ष्मी वहीं टिकती हैं जहाँ सौम्यता, सादगी और सत्य साथ रहते हैं।
प्रश्न 1: दुर्वासा की माला का तात्पर्य क्या था
उत्तरा: वह श्री के आदर का प्रतीक थी। उसका अपमान समृद्धि के ह्रास का कारण बना।
प्रश्न 2: कूर्म अवतार की आवश्यकता क्यों पड़ी
उत्तरा: मंदराचल को धुरी चाहिए थी। स्थैर्य बिना मंथन संभव नहीं था।
प्रश्न 3: क्या सभी चौदह रत्न भौतिक थे
उत्तरा: नहीं। कुछ भौतिक, कुछ दैवी और कुछ आदर्शों के सूचक थे।
प्रश्न 4: लक्ष्मी ने विष्णु को क्यों चुना
उत्तरा: धन को धर्म और संरक्षण की आवश्यकता होती है। विष्णु पालन के अधिष्ठाता हैं।
प्रश्न 5: इस कथा को जीवन में कैसे उतारें
उत्तरा: विनय, परिश्रम, संयम और न्याय को आदत बनाएं। यही स्थायी समृद्धि है।
अनुभव: 27
इनसे पूछें: विवाह, करियर, संपत्ति
इनके क्लाइंट: छ.ग., म.प्र., दि., ओडि
इस लेख को परिवार और मित्रों के साथ साझा करें