By पं. संजीव शर्मा
विनम्रता, धर्म और आंतरिक बल की कथा
“न हि बलं बलिनां श्रेष्ठं विनयेन विनाकृतम्।
विनयेन विहीनं तु बलं च भवति दुर्बलम्॥”
महाभारत की कथा में अनेक प्रसंग ऐसे आते हैं जो हमें धर्म, नीति और मानव स्वभाव की गहराई को समझाते हैं। परंतु भीम और हनुमान का मिलन एक ऐसा प्रसंग है जिसमें शक्ति, विनम्रता और भाईचारे की अद्भुत झलक मिलती है। यह कथा केवल कल्पना नहीं है बल्कि यह संकेत है कि बल बिना विनय के अधूरा है।
भीम, पवनदेव के पुत्र, अपार बल और पराक्रम के लिए विख्यात थे। हनुमान भी पवनदेव के ही अंश से जन्मे थे। युग भिन्न था, परंतु स्रोत एक ही था। जब त्रेता के काल में राम के भक्त हनुमान और द्वापर में जन्मे भीम आमने-सामने आए, तो यह नियति की योजना थी। यह मुलाकात इसलिए हुई ताकि भीम को समय रहते सही शिक्षा मिल सके।
भीम का बल इतना प्रसिद्ध था कि वे स्वयं को अजेय मानने लगे थे। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि शक्ति अक्सर अहं को जन्म देती है। हनुमान ने यह समझाने के लिए केवल अपनी पूँछ मार्ग में रख दी। दृश्य साधारण था, पर शिक्षा गहरी। भीम ने प्रयास किया, असफल हुए। उन्होंने और बल लगाया, फिर भी पूँछ न हिली। यही वह क्षण था जब भीम को बोध हुआ कि बल की भी सीमाएँ होती हैं। विनम्रता के बिना शक्ति केवल बोझ है और विनय से जुड़ने पर वही शक्ति दिव्य बन जाती है।
महाभारत केवल युद्ध का आख्यान नहीं है। यह मनुष्य के चुनावों की कसौटी है। भीम को यह स्मरण कराना आवश्यक था कि उनका बल केवल उनके गौरव के लिए नहीं है। यह धर्म की रक्षा का साधन है। हनुमान की उपस्थिति इस तथ्य को पुष्ट करती है कि जब शक्ति न्याय और धर्म के लिए समर्पित होती है, तभी उसका मूल्य स्थायी होता है। अन्यथा वही शक्ति अहंकार के कारण विनाश का कारण बन सकती है।
हनुमान ने भीम को केवल उपदेश ही नहीं दिया बल्कि आशीर्वाद भी प्रदान किया। उन्होंने वचन दिया कि वे कुरुक्षेत्र युद्ध में अर्जुन के रथ के ध्वज पर उपस्थित रहेंगे। उनका गर्जन शत्रुओं के मन को विचलित करेगा और पांडवों के साहस को स्थिर करेगा। यह आशीर्वाद केवल युद्ध की विजय का आश्वासन नहीं था बल्कि यह भी संकेत था कि धर्म की रक्षा में देवत्व स्वयं साथ चलता है।
बहुत कम लोग जानते हैं कि भीम और हनुमान वास्तव में सहोदर हैं। दोनों का उद्गम पवनदेव से है। यह मिलन देव और मनुष्य का नहीं बल्कि समय के दो छोरों पर खड़े भाइयों का आलिंगन था। यह बंधन केवल रक्त का नहीं था। यह सेवा, निष्ठा और विनय की परंपरा का प्रतीक था, जो शक्ति को संतुलित करती है और जीवन को अर्थ देती है।
भीम का गर्व पूँछ न उठा पाने से चकनाचूर हो गया। उन्होंने अनुभव किया कि केवल बल से सब कुछ संभव नहीं। संयम और विवेक के बिना बल दिशाहीन है। हनुमान ने सिखाया कि जो स्वयं पर विजय प्राप्त कर लेता है, वही सच्चा विजेता होता है। यही महाभारत का गूढ़ संदेश है। आवेश से विजय नहीं मिलती, संयम से धर्म टिकता है।
कुरुक्षेत्र का युद्ध केवल अस्त्रों की परीक्षा नहीं था। यह मानसिक धैर्य, सहनशीलता और आध्यात्मिक शक्ति की भी कसौटी था। हनुमान ने भीम को इसके लिए तैयार किया। उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि क्रोध से नहीं, मर्यादा और संयम से विजय प्राप्त होती है। धर्म का मार्ग धैर्य पर आधारित होता है और वही पांडवों का सबसे बड़ा कवच था।
रामायण का संदेश मर्यादा है, महाभारत का संदेश धर्म का निर्णय है। हनुमान का आगमन इन दोनों महाकाव्यों के बीच सेतु बनकर आया। यह बताने के लिए कि धर्म युगों की सीमा से परे है। श्रीराम की मर्यादा और श्रीकृष्ण की नीति एक ही सत्य के दो आयाम हैं। यही सत्य मानवता को दिशा देता है।
पहलू | घटना | शिक्षा |
---|---|---|
विनम्रता | मार्ग में रखी पूँछ | शक्ति तभी दिव्य है जब उसमें विनय हो |
धर्म | बल का उद्देश्य | धर्म की रक्षा ही शक्ति का सही उपयोग है |
आशीर्वाद | ध्वज पर उपस्थिति | धर्म की रक्षा में देवत्व हमेशा साथ होता है |
भाईचारा | वायु के दो पुत्र | रक्त का ही नहीं, सेवा का भी बंधन |
संयम | पूँछ न हिली | आत्मसंयम सबसे बड़ी विजय है |
प्रश्न 1. क्या भीम और हनुमान का मिलन संयोग था
उत्तर. यह नियति थी। भीम को धर्म और विनय का पाठ सिखाना आवश्यक था।
प्रश्न 2. हनुमान ने भीम को क्या दिया
उत्तर. आंतरिक धैर्य का वरदान और युद्ध में ध्वज पर अपनी उपस्थिति का आश्वासन दिया।
प्रश्न 3. पूँछ का प्रसंग क्या बताता है
उत्तर. यह सिखाता है कि गर्व शक्ति को कमजोर कर देता है जबकि विनय शक्ति को दिव्य बना देता है।
प्रश्न 4. यह घटना धर्म से कैसे जुड़ी है
उत्तर. यह स्पष्ट करती है कि बल का उद्देश्य केवल धर्म की रक्षा होना चाहिए।
प्रश्न 5. पाठक इस कथा से क्या सीख सकते हैं
उत्तर. विनम्रता, संयम, सेवा और धर्म के प्रति अटूट आस्था।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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