By पं. सुव्रत शर्मा
गंगा कथा के माध्यम से प्रेम, त्याग और अनवरत प्रवाह की शिक्षा

यह कहानी उस प्रेम की है जो बंधन नहीं बनता, उस पीड़ा की जो सुविधा के बजाय उद्देश्य चुनती है और उस नदी की जो करुणा की कीमत जानती है। सही मायने में समझा गया मिथक जीवन से दूर नहीं बल्कि साथ चलता है। गंगा के चयन बाहर से असहनीय लगते हैं, पर उनमें वह बुद्धि है जिसकी आवश्यकता हम सबको कठिन समय में है, वह बुद्धि जो छोड़ने में भी प्रेम छोड़ती नहीं और चुप्पी जब सत्य को दबा दे तब बोलना जानती है।
जब गंगा ने अपने नवजात बच्चों को नदी में छोड़ा, यह क्रूरता लगी, किन्तु इसमें एक शपथ, एक भाग्य के प्रति ईमानदारी छुपी थी। वे पुत्र दिव्य वसु थे, जिनके लिए मुक्त करना करुणा थी। आधुनिक जीवन में यह पवित्र पीड़ा कई रूपों में है, देखभाल करने वाला स्वप्न छोड़ता है, मित्र पीछे हटता है ताकि दूसरा आगे बढ़े, संबंध को बंद करना ताकि कोई अपमान न हो।
| परिस्थिति | छुपी पीड़ा | उसकी पवित्रता |
|---|---|---|
| देखभाल करने वाली | व्यक्तिगत बलिदान | पवित्र कर्तव्य निभाना |
| मित्र पीछे हटता है | निकटता का खोना | दूसरे को आत्म-विकास देना |
| संबंध बंद करना | दुख | दोनों आत्माओं को मुक्ति देना |
हम डरते हैं कि पकड़ ढीली करने का अर्थ है कि हमने कभी प्रेम नहीं किया। गंगा सिखाती हैं, प्रेम का अर्थ अगला साथी को पकड़े रखना नहीं बल्कि कभी-कभी उसे स्वतंत्र करना होता है। हर विराम श्रद्धा है; 'मैं आपके रास्ते को आशीर्वाद देती हूं, भले वह मेरे पास लौटे न लौटे', यही साहसिक प्रेम है।
शांतनु के शपथबंध मौन ने एक सौम्य शांति दी, पर सत्य छुपा रहा। आठवें जन्म पर बोले तो जादू टूट गया। चुप्पी कभी करुणा है, कभी अपराध। प्रत्युत्तर में कोमलता सबसे आवश्यक है।
| संबंध में मौन | कब मदद करता है | कब हानि करता है |
|---|---|---|
| सुनना | झगड़े से बचाव | विश्वास बनाता है |
| सत्य छुपाना | विवाद टालना | मौन शिकायत बनता है |
| कोमल संवाद | उपचार को राह देता है | भावनाओं को दबाता है |
गंगा ने भीष्म को संभाला नहीं बल्कि उसे शिक्षा और आशीर्वाद के साथ लौटाया। प्रेम का अर्थ पकड़ना नहीं, मार्गदर्शन देना है। कभी-कभी, दूर रहकर किसी के पथ को आशीर्वाद देना ही सबसे सच्चा कार्य होता है।
'मूव ऑन' कोई मंजिल नहीं, एक प्रवाह है। गंगा अब भी बहती हैं; प्रेम भी शोक के बाद चलता है, कभी तेज, कभी मंद, कभी खत्म नहीं होता। दीप जलाना, नाम लेना, पत्र लिखना, ये शोक को प्रवाह देते हैं, कठोरता नहीं।
हर परित्याग बुद्धिमत्ता नहीं होता; कुछ घावों को भाग्य का रूप दिया जाता है। नैतिक परित्याग पूछता है:
जब ये उत्तर ईमानदार हों, तो छोड़ना अनुष्ठान बनता है।
गंगा के कर्म बाहर से झकझोरते हैं, भीतर सत्य, भाग्य और परमात्मा के प्रति प्रतिज्ञा है। 'कम्फर्ट से ज्यादा ईमानदारी का दर्द चुनें।' अधिकांश प्रतिज्ञाएँ अदृश्य होती हैं, फिर भी निभाइये।
| अभ्यास | विवरण |
|---|---|
| संध्या का नदी अनुष्ठान | नाम लिखें, दीप जलाएं, आशीर्वाद पढ़ें, और पानी पेड़ की जड़ में अर्पित करें। |
| चुप्पी से पहले बोले | सत्य को कोमलता से साझा करें, स्पष्टता को विजय से अधिक महत्व दें। |
| दूर से प्रेम | 11 रातों तक मौन शुभकामना भेजें - बिना संपर्क के, केवल सद्भाव से। |
"मैं तुम्हारी निश्चितता नहीं; मैं तुम्हारी यात्रा हूं।" गंगा की तरह जीना, मन कठोर होने से पहले बह जाना, प्रेम बिगड़ने से पहले छोड़ना और बहना, करुणा से करुणा तक, जब तक समुद्र को सभी आशीर्वाद और दर्द मिल न जाए।
प्रश्न 1: गंगा ने अपने बच्चों को नदी में क्यों छोड़ा?
उत्तर: गंगा के बच्चे वसु थे, जिन्हें श्रापित होकर मानव जन्म में आना पड़ा; गंगा ने करुणा से उन्हें मुक्त किया ।
प्रश्न 2: गंगा की कथा से प्रेम और छोड़ने के संबंध में क्या सीख मिलती है?
उत्तर: सच्चा प्रेम पकड़ना नहीं, छोड़ना सिखाता है; सच्ची श्रद्धा दूसरों के पथ का सम्मान करती है।
प्रश्न 3: मौन का सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष क्या है?
उत्तर: मौन कभी सुकून देता है, कभी दम घोंटता है; समय पर संवाद जरूरी है।
प्रश्न 4: शोक और हानि के साथ स्वस्थ कैसे रहें?
उत्तर: शोक को जीना चाहिए, जीतना नहीं; स्मरण और अनुष्ठान प्रवाह में मदद करते हैं।
प्रश्न 5: सही और नैतिक छोड़ना किसे कहते हैं?
उत्तर: सही छोड़ना दूसरे की सच्चाई का सम्मान है, ईमानदारी, साहस और जिम्मेदारी से।

अनुभव: 27
इनसे पूछें: विवाह, करियर, संपत्ति
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