By पं. अभिषेक शर्मा
पंचमहाभूत, अनित्यता, वैराग्य और उपनिषद की शिक्षा
भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी से प्रारंभ होने वाला गणेश उत्सव दस दिनों तक चलता है और अनंत चतुर्दशी को इसका समापन होता है। वर्ष 2025 में भी यह पर्व पूरे भारत में अत्यंत श्रद्धा और भावनाओं के साथ मनाया जाएगा। इस दौरान घरों, मंदिरों और विशाल पंडालों में गणपति की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। इस स्थापना के साथ नियमपूर्वक पूजा, व्रत और अर्चन किए जाते हैं। सबसे महत्वपूर्ण क्षण अंतिम दिन आता है जब गणपति की विदाई जल में विसर्जन के रूप में की जाती है।
यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है बल्कि मानव जीवन के सबसे गहन सत्य को प्रत्यक्ष कराता है। मूर्ति का जल में विलय हमें स्मरण कराता है कि जिसका जन्म होता है वह अनिवार्य रूप से अपने मूल तत्वों में लौट जाता है।
पर्व | तिथि (2025) | दिन |
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गणेश चतुर्थी | 27 अगस्त 2025 | बुधवार |
गणेश विसर्जन (अनंत चतुर्दशी) | 6 सितम्बर 2025 | शनिवार |
गणेश विसर्जन केवल किसी प्रिय देवता का विदाई समारोह नहीं है। यह समय भक्तों को यह सोचने का अवसर देता है कि संसार अस्थायी है, जीवन अनंत परिवर्तनों से गुजरता है और अंततः हर वस्तु को शून्यता में विलीन होना है। भक्ति और श्रद्धा ही वह शक्ति है जो मनुष्य के जीवन को स्थायित्व देती है।
दरअसल, यह परंपरा व्यक्ति को धरातल पर रहने और धर्मग्रंथों के संदेश को आत्मसात करने की प्रेरणा देती है। इसी कारण विसर्जन का क्षण भावुक होते हुए भी आत्मा के लिए गहरा शिक्षाप्रद है।
स्कंद पुराण कहता है: “पृथिव्यापस्तेजो वायुः खं चैतानि महाभूतानि…”।
इस श्लोक का तात्पर्य है कि यह ब्रह्मांड पांच महाभूतों - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से निर्मित है। मानव भी इन्हीं तत्वों से बना है और मृत्यु के पश्चात इन्हीं में लीन हो जाता है।
गणेश प्रतिमाएं प्रायः मिट्टी की बनती हैं। जब यह पानी में डाली जाती हैं तो यह प्रकृति के उसी शाश्वत सत्य का प्रतीक बन जाती हैं - कि जीवन तत्वों से आरंभ होकर उन्हीं में समाप्त होता है।
पंचतत्व | जीवन में महत्व | गणेश विसर्जन में प्रतीक |
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पृथ्वी | स्थिरता और आधार | मिट्टी से बनी प्रतिमा |
जल | जीवन की ऊर्जा | प्रतिमा का जल में विलय |
अग्नि | परिवर्तन और शक्ति | दीप प्रज्वलन और आरती |
वायु | प्राण और चेतना | मंत्रों का उच्चारण |
आकाश | व्यापकता और अनंतता | जल में प्रतिमा का लीन होना |
गणेश पुराण स्पष्ट कहता है: “अनित्यं खलु सर्वं हि, भवेनित्यं गणेश स्मृतिः…”।
अर्थात इस संसार में सब कुछ अस्थायी है और नश्वरता ही इसका नियम है। केवल गणेश की भक्ति और उनका स्मरण शाश्वत है। विसर्जन इसीलिए हमें यह अहसास कराता है कि मोह, माया और भौतिक सुख स्थायी नहीं हैं, परंतु विश्वास और श्रद्धा ही मनुष्य को शांति और स्थिरता दे सकती है।
भक्त जब प्रतिमा के विगलन का दृश्य देखते हैं तो यह अनुभव गहरा होता है कि जिन्हें हम स्थायी मानते हैं वे भी क्षणिक हैं।
पौराणिक मान्यता है कि भगवान गणेश हर वर्ष धरती पर आगमन करते हैं। वे भक्तों के जीवन के विघ्नों को दूर करते हैं और अनंत चतुर्दशी को कैलाश पर्वत लौट जाते हैं। इस विश्वास का अर्थ यह है कि सृष्टि का नियम आगमन और प्रस्थान का है।
देवता के कैलाश लौट जाने का तात्पर्य भी यही है कि ईश्वर अनश्वर हैं और स्मरण द्वारा बार-बार उपस्थित किए जा सकते हैं। यह परंपरा भक्त को यह भरोसा देती है कि गणपति हर वर्ष आएंगे और इस मिलन का अवसर फिर प्राप्त होगा।
छांदोग्य उपनिषद कहता है: “यथा नद्यः स्यन्दमानाः समुद्रेऽस्तं गच्छन्ति नामरूपे विहाय…”।
अर्थात जैसे नदियां समुद्र में मिलकर अपना नाम और आकार खो देती हैं वैसे ही आत्मा परमात्मा में मिलकर शाश्वत सत्ता में एकाकार हो जाती है।
गणेश विसर्जन इसी महान सत्य का दार्शनिक प्रतीक है। यह दर्शाता है कि व्यक्तिगत आत्मा का अंतिम लक्ष्य ब्रह्म में मिलना है। मूर्ति के जल में लीन होने से यह सन्देश स्पष्ट होता है कि जीव और ईश्वर के बीच कोई भिन्नता नहीं है।
सभी शास्त्र इस बात को रेखांकित करते हैं कि त्याग सर्वोच्च गुण है। भौतिक वस्तुओं का मोह जीवन में दुख का कारण बनता है। विसर्जन हमें सिखाता है कि प्रियतम वस्तु या व्यक्ति को भी एक दिन छोड़ना पड़ सकता है। यह शिक्षा आत्मिक उन्नति और मोक्ष के मार्ग के लिए अनिवार्य है। इससे भक्त समझ पाता है कि भक्ति का अर्थ केवल प्राप्ति नहीं बल्कि त्याग से भी जुड़ा हुआ है। जब प्रतिमा विसर्जित की जाती है तब यह त्याग ही सबसे महत्वपूर्ण साधना बन जाता है।
हाल के वर्षों में पर्यावरण की दृष्टि से भी विसर्जन को लेकर जागरूकता बढ़ी है। परंपरा में मिट्टी से बनी प्रतिमाओं का महत्व इसी कारण और भी बढ़ गया है। जब प्रतिमा मिट्टी और शुद्ध पदार्थों से बनती है और जल में मिलती है तो यह प्रकृति की गोद में लौट आती है।
यह प्रक्रिया हमें यह भी सिखाती है कि मनुष्य का जीवन पर्यावरण से गहराई से जुड़ा है। पूजा केवल आस्था का विषय नहीं बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि के प्रति जिम्मेदारी का भाव भी है।
गणेश विसर्जन 2025 केवल उत्सव का अंतिम भाग नहीं है। यह मानव जीवन का दार्शनिक सत्य है। यह सिखाता है कि संसार नश्वर है, संबंध अस्थायी हैं और भौतिक वस्तुएं क्षणभंगुर हैं। किंतु भक्ति, श्रद्धा और विश्वास स्थायी हैं।
मनुष्य का आत्मिक पथ इसी बोध से प्रकाशित होता है। विसर्जन हमें यह भी सिखाता है कि वास्तविक स्वतंत्रता त्याग और आस्था से जन्म लेती है।
Q: गणेश विसर्जन 2025 कब होगा?
A: यह उत्सव 27 अगस्त 2025 से प्रारंभ होकर 6 सितम्बर 2025 की अनंत चतुर्दशी को सम्पन्न होगा।
Q: प्रतिमा को जल में ही क्यों विसर्जित किया जाता है?
A: क्योंकि मिट्टी की प्रतिमा पंचतत्वों से बनी होती है और जल में मिलकर उन्हीं में लौट जाती है।
Q: विसर्जन का दार्शनिक महत्व क्या है?
A: यह अस्थिरता और अनित्यता का बोध कराता है और आस्था को शाश्वत बताता है।
Q: विसर्जन आत्मा और परमात्मा से कैसे जुड़ा है?
A: उपनिषद के अनुसार आत्मा अंततः परमात्मा में मिल जाती है और विसर्जन इस सत्य का प्रतीक है।
Q: विसर्जन हमें क्या मूल्य सिखाता है?
A: यह त्याग, वैराग्य, आध्यात्मिक उन्नति और आस्था की शक्ति का बोध कराता है।
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