By पं. सुव्रत शर्मा
मानसिक भ्रम से मुक्ति और अंतर्निहित निश्चितता प्राप्ति के लिए गीता की अमूल्य शिक्षाएँ

कुछ दिन ऐसा भी होता है कि हमारा प्रतिबिंब सही दिखाई नहीं देता। जो आवाज़ पहले विश्वास से भरी थी, अब डगमगाती है: “क्या मैं पर्याप्त हूँ?” “क्या मैं सही मार्ग पर हूँ?” आत्मसंदेह तेज़ तूफान की तरह नहीं आता बल्कि जैसे कोहरा धीरे-धीरे छाया हो, किनारों को मद्धम करता, प्रकाश को मंद करता और आसान कदम भी अनिश्चित कर देता है।
गीता इसे गहराई से समझती है। यह युद्धभूमि में खुलती है, लेकिन असली लड़ाई अंदर की होती है, अर्जुन की पहचान, उद्देश्य और साहस की जंग। कृष्ण की शिक्षा नारों में नहीं, दृष्टि में संजीवनी है। ये सात शिक्षाएँ उस दृष्टि को प्रायोगिक रूप में बदलती हैं, जब मन भूलभुलैया बन जाता है।
“आत्मा नित्य, अमर और परीलक्षित से परे है। यह न नष्ट होती है, न नाश करती है।”
जब विचार कहें कि हम सक्षम नहीं, वे आग्रह करते हैं कि “मैं वही हूँ।” गीता की पहली भलाई है: असली स्वयं साक्षी है, विचारों का तूफान नहीं। संदेह एक पैटर्न है; जागरूकता वह आकाश है जो सभी पैटर्न रखता है।
प्रयास करें: अगली बार जब संदेह बोले, prefix लगाएं: “एक विचार उभर रहा है जो कहता है, ‘मैं नहीं कर सकता।’” फिर पूछें: “इसे कौन देख रहा है?” देखना तूफ़ान नहीं, आकाश है।
“अपने धर्म में विफल होना दूसरों के धर्म में सफल होने से श्रेष्ठ है।”
तुलना भ्रम बढ़ाती है। जब ऊर्जा किसी और की सफलता के पीछे दौड़ती है तो अपने पथ की ऊर्जा घटती है। धर्म ब्रांड नहीं, सामंजस्य है, जहाँ स्वभाव, प्रतिभा और सत्य मिलकर लाभ करते हैं। संदेह तब बढ़ता है जब जीवन आस-पास नहीं होता।
प्रयास करें: तीन ऐसे कार्य लिखें जो बिना नज़र आने पर भी अर्थपूर्ण लगें। सात दिन हर दिन कर देखें, स्पष्टता आती है।
“आपके कर्म करने का अधिकार है, फल पाने का नहीं।”
आत्मसंदेह परिणाम की गारंटी मांगता है, कर्म सीखाता है। गीता प्रयास और फल के बंधन को तोड़ती है जिससे साहस लौटता है। यह उदासीनता नहीं, आंतरिक स्वतंत्रता है, अगला सही कार्य करें, चलचित्र मत सोचें।
प्रयास करें: अगले कदम के लिए न्यूनतम अभ्यास तय करें, 10 मिनट, एक ईमेल, कॉल। बिना प्रतिक्रिया देखे पूरा करें।
“मन से स्वयं को उठाओ, नीचे नहीं गिराओ। मन संयमित का मित्र और असंयमित का शत्रु है।”
प्रेरणा मनोदशा है; अनुशासन योजना। गीता नित्य अभ्यासों की महत्ता बताती है, छोटे, नियमित अभ्यास जो ध्यान को स्थिर बनाए।
प्रयास करें: एक आदत चुनें (उठना, श्वास, लेखन, सैर) और २१ दिन करें। इसे दंड नहीं, स्थिरता की अनुमति समझें।
“जो जानता है क्या करना है, क्या नहीं; क्या भय है, क्या साहस, वही सच्चा विवेक है।”
सभी संदेह नष्टि नहीं; कभी विवेक होता है। बुद्धिमत्ता पहचानती है क्या सीमा है या भय का नकाब। कृष्ण की दवा है विवेक जो ऊर्जा बचाता है।
प्रयास करें: किसी भी संदेह पर तीन प्रश्न पूछें:
“जो दुःख-सुख से अप्रभावित, स्थिर, बुद्धिमान हो, वह सच्चा मुक्त होता है।”
आत्मसंदेह बाहर की राय से पोषित होता है। गीता नया केंद्र बताती है: योग्यता के लिए नहीं, योग्यता से कर्म। मान्यता सूचना होती है, जीवन की जरूरत नहीं। यह देखभाल से हटना नहीं, निर्भरता से मुक्ति है।
प्रयास करें: सात दिन रोज़ कुछ प्रकाशित करें। २४ घंटे परिणाम न देखें। तंत्रिका तंत्र को स्थिरता प्राथमिकता बनाएं।
“सभी धर्म छोड़कर मुझमें समर्पित हो जाओ, मैं तुम्हें सब पापों से छुड़ाऊंगा, भय न करो।”
अंतिम शिक्षा निष्क्रियता नहीं, दृष्टिकोण है। समर्पण नियंत्रण की भ्रांति छोड़ना है, जिम्मेदारी नहीं। यह कृपा के द्वार खोलता है।
प्रयास करें: कोई बोझ चुने जो जबरदस्ती हल न हो सके। हर रात लिखें: “मैं प्रयास करूँगा; परिणाम तुम संभालो।” फिर चैन से सोएं।
| समय | अभ्यास | उद्देश्य |
|---|---|---|
| प्रातःकाल | ५ गहरी श्वास लें, पूछें “मेरा क्या कार्य है?” और तीन कार्य लिखें | दिन की स्पष्टता और लक्ष्य निर्धारण |
| मध्याह्न | देखें क्या कार्य मूल्य के अनुरूप हैं; आवश्यक हो तो समायोजन करें | कार्य में संरेखण |
| संध्या | नियंत्रित प्रयास और परिणामों की सूची बनाएं; परिणाम त्यागें | मानसिक विश्राम |
| साप्ताहिक | एक साहसी आदान-प्रदान और एक दयालु सीमा निर्धारित करें | साहस और दया का संमेलन |
आत्मसंदेह आए पर वह स्थायी किरायेदार न बने। गीता हमें याद दिलाती है कि हम वह आकाश हैं जो तूफान को देखता है पर स्वयं तूफान नहीं। पहली कामयाबी का कदम उठाइए और जब आवाज़ सवाल करे मुस्कुराइए। चुप करने की जरूरत नहीं; सिर्फ याद रखिए कौन सुन रहा है।
प्रश्न 1: भगवद गीता के अनुसार आत्मसंदेह क्या है और हम उससे कैसे लड़ सकते हैं?
उत्तर: आत्मसंदेह विचारों का एक पैटर्न है जो असली स्व के साक्षी होने की समझ के अभाव से होता है। गीता हमें सिखाती है कि हम कर्म करते रहें, परिणाम से स्वतंत्र रहें और अपने विचारों को देख कर पहचानें।
प्रश्न 2: गीता के कौन से उपाय आत्मसंदेह को दूर करने में मदद करते हैं?
उत्तर: जागरूकता, छोटे कार्यों को निरंतर करना (अनुशासन), विवेकपूर्ण निर्णय और समर्पण मुख्य उपाय हैं जो मन को स्थिर और साहसी बनाते हैं।
प्रश्न 3: भगवद गीता की शिक्षा में 'धर्म' को कैसे समझना चाहिए?
उत्तर: धर्म वह कार्य है जो हमारे स्वभाव, प्रतिभा और सत्य के अनुरूप हो। इसे ध्यान में रखते हुए कर्म करना चाहिए, भले ही परिणाम असफल हो।
प्रश्न 4: मानसिक शंका और चिंता के समय हमें कैसे प्रतिक्रिया करनी चाहिए?
उत्तर: शंका को एक विचार के रूप में देखना चाहिए और स्वयं से यह पूछना चाहिए कि इसे कौन देख रहा है। इस वश में न आकर जागरूक दृष्टि अपनाएं।
प्रश्न 5: गीता के अनुसार समर्पण का क्या अर्थ है?
उत्तर: समर्पण नियंत्रण छोड़ना है मगर जिम्मेदारी निभाना जारी रखना है। यह आंतरिक शांति और जीवन में कृपा प्राप्ति का मार्ग है।

अनुभव: 27
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