By पं. नीलेश शर्मा
नाग पंचमी के पौराणिक आरंभ, दूध अर्पण की परंपरा और नागों को अभयदान देने वाली प्रेरक कथाओं का विस्तार से विवरण।
नाग पंचमी भारतीय संस्कृति का एक अत्यंत पवित्र और रहस्यमयी पर्व है। यह पर्व नागों की पूजा, दूध चढ़ाने की परंपरा और अभयदान की अद्भुत कथाओं से जुड़ा है। हर वर्ष श्रावण मास की शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को नाग पंचमी मनाई जाती है। इस दिन नाग देवता की पूजा कर उनसे रक्षा, सुख समृद्धि और अभयदान की कामना की जाती है।
महाभारत के अनुसार अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित को तक्षक नाग ने डस लिया था। परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने प्रतिशोध में नाग यज्ञ (सर्पसत्र) का आयोजन किया, जिसमें समस्त नागों को अग्नि में आहुति देने का प्रयास हुआ। नागों की रक्षा के लिए आस्तिक मुनि ने यज्ञ को रोकने का वर माँगा। जनमेजय ने यज्ञ रोक दिया और नागों को अभयदान मिला। मान्यता है कि उसी दिन पंचमी तिथि थी, तभी से नाग पंचमी का पर्व मनाया जाता है।
एक किसान के हल से नागिन के तीन बच्चे मर गए। रात को नागिन ने किसान और उसके पुत्र को डस लिया। किसान की पुत्री ने नागिन के सामने दूध का कटोरा रखकर क्षमा मांगी। नागिन ने प्रसन्न होकर पिता और भाई को जीवित कर दिया। उस दिन पंचमी तिथि थी, तभी से नाग पंचमी पर नागों की पूजा और दूध चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
एक सेठ की छोटी बहू ने मिट्टी खोदते समय सर्प को बचाया। सर्प ने उसे अपनी बहन मान लिया और हर संकट में उसकी रक्षा की। छोटी बहू ने नाग पंचमी के दिन सर्प को भाई मानकर पूजा की। तभी से स्त्रियाँ नाग पंचमी पर नागों को भाई मानकर पूजा करती हैं।
विषय | विवरण |
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पर्व | नाग पंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) |
पूजा | नाग देवता, दूध से स्नान, अभयदान की कामना |
प्रमुख कथाएँ | नाग यज्ञ, आस्तिक मुनि, किसान-नागिन, छोटी बहू-सर्प |
परंपरा | दूध चढ़ाना, अभयदान, घर के द्वार पर नाग आकृति |
अभयदान | आठ प्रमुख नागों का नाम, सर्पदंश से रक्षा |
नाग पंचमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति, जीवों और मानव के बीच संतुलन, करुणा और अभयदान का प्रतीक है। यह पर्व सिखाता है कि जीवन में क्षमा, संतुलन और करुणा से ही सच्ची शांति और समृद्धि मिलती है।
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