By पं. नीलेश शर्मा
जानिए महाभारत की प्रेरक नागकथाएँ, उलूपी-अर्जुन की प्रेमगाथा और नाग यज्ञ में छुपा है धर्म, करुणा व संतुलन का संदेश।
महाभारत केवल युद्ध, राजनीति और धर्म का महाकाव्य नहीं, बल्कि इसमें छुपी हैं नागों की रहस्यमयी, प्रेरक और करुणा से भरी कथाएँ भी। नागकन्या उलूपी और अर्जुन की प्रेमगाथा, नाग यज्ञ और आस्तिक मुनि की करुणा - ये सब भारतीय संस्कृति में नागों की गहराई, शक्ति और मानवीय भावनाओं का अद्भुत संगम हैं। आइए, इन कथाओं को विस्तार से जानें।
उलूपी नागराज कौरव्य की पुत्री थीं, जो नागलोक (पाताल) में निवास करती थीं। वे अत्यंत सुंदर, विदुषी और योगिनी थीं। नागों की शक्ति, रहस्य और गूढ़ता का प्रतीक उलूपी का चरित्र महाभारत में विशेष स्थान रखता है।
अर्जुन को अपने भाई युधिष्ठिर और द्रौपदी के साथ एक वर्ष का वनवास मिला था। एक दिन वे गंगा नदी के तट पर स्नान कर रहे थे। उसी समय उलूपी ने अर्जुन को देखा और उन पर मोहित हो गईं। उलूपी ने अर्जुन को जल में खींच लिया और नागलोक ले गईं।
नागलोक में उलूपी ने अर्जुन से अपने प्रेम का इज़हार किया। अर्जुन ने धर्म, मर्यादा और वनवास की बात कही, लेकिन उलूपी ने उन्हें समझाया कि नागलोक में वे सभी नियम शिथिल हैं। अर्जुन ने उलूपी से विवाह किया। उलूपी ने अर्जुन को वरदान दिया कि वे जल में अजेय रहेंगे और किसी भी जलचर या नाग से उन्हें कोई हानि नहीं होगी।
अर्जुन और उलूपी के पुत्र का नाम इरावान था, जो आगे चलकर महाभारत युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ। उलूपी ने अर्जुन को धर्म, साहस और करुणा का पाठ पढ़ाया। अर्जुन के जीवन में उलूपी का स्थान केवल पत्नी का नहीं, बल्कि मार्गदर्शक और रक्षक का भी था।
महाभारत युद्ध के बाद परीक्षित हस्तिनापुर के राजा बने। एक ऋषि के शाप के कारण तक्षक नाग ने परीक्षित को डस लिया। परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए विशाल नाग यज्ञ (सर्पसत्र) का आयोजन किया, जिसमें मंत्रबल से समस्त नागों को अग्नि में आहुति देने का प्रयास किया गया।
नाग यज्ञ की अग्नि इतनी प्रबल थी कि तक्षक नाग ने अपनी रक्षा के लिए इंद्र की शरण ली। इंद्र ने तक्षक को अपने सिंहासन के नीचे छुपा लिया, लेकिन यज्ञ की शक्ति से इंद्र सहित तक्षक भी यज्ञकुंड की ओर खिंचने लगे।
आस्तिक मुनि, जो एक ब्राह्मण माता और नाग पिता के पुत्र थे, नागों के विनाश से व्यथित हुए। वे यज्ञ स्थल पर पहुँचे और जनमेजय से यज्ञ रोकने का अनुरोध किया। आस्तिक की विद्वता, विनम्रता और तर्क से जनमेजय प्रभावित हुए। उन्होंने आस्तिक को वरदान देने का वचन दिया। आस्तिक ने नागों की रक्षा के लिए यज्ञ को रोकने का वर माँगा।
जनमेजय ने आस्तिक के अनुरोध पर यज्ञ रोक दिया। तक्षक नाग और अन्य नागों की प्राण रक्षा हुई। तभी से नाग पंचमी का पर्व मनाया जाता है, जिसमें नागों की पूजा और अभयदान की परंपरा है।
कथा | मुख्य पात्र | संदेश/महत्व |
---|---|---|
अर्जुन-उलूपी | अर्जुन, उलूपी | प्रेम, धर्म, नागलोक, वरदान |
नाग यज्ञ-आस्तिक | जनमेजय, आस्तिक, तक्षक | प्रतिशोध, करुणा, संतुलन, अभयदान |
महाभारत की नाग कथाएँ केवल पौराणिक नहीं, बल्कि आज के जीवन के लिए भी उतनी ही प्रासंगिक हैं। ये कहानियाँ प्रेम, करुणा, संतुलन और प्रकृति के सम्मान का संदेश देती हैं।
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