By पं. संजीव शर्मा
मृगशिरा नक्षत्र की उत्पत्ति से जुड़ी कथा और उसमें छिपे गहरे वैदिक और ज्योतिषीय संकेत
हिंदू पौराणिक कथाएँ केवल मनोरंजन या प्रतीक नहीं, बल्कि गहरे नैतिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक संदेशों का भंडार हैं। मृगशिरा नक्षत्र की उत्पत्ति से जुड़ी ब्रह्मा, सरस्वती और शिव की कथा न केवल एक रोचक आख्यान है, बल्कि आत्म-नियंत्रण, मर्यादा और अनंत जिज्ञासा का भी गूढ़ प्रतीक है। यह कथा वेद, पुराण और विशेष रूप से शिव पुराण में वर्णित है।
सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा जी ने अपने मन से सरस्वती जी को उत्पन्न किया। सरस्वती ज्ञान, कला और वाणी की देवी बनीं। किंतु ब्रह्मा, जो स्वयं सृष्टि के रचयिता हैं, अपनी ही मानस पुत्री के सौंदर्य और गुणों पर मोहित हो गए। ब्रह्मा की यह आकांक्षा और आकर्षण वैदिक साहित्य में ‘सगोत्रगामी’ भाव के रूप में वर्णित है, जिसे धर्म और मर्यादा के विरुद्ध माना गया।
ब्रह्मा के मोह से बचने के लिए सरस्वती ने मादा हिरण (हरिणी) का रूप धारण किया और आकाश में भाग गईं। उनका यह रूपांतरण नारी की स्वतंत्रता, विवेक और मर्यादा की रक्षा का प्रतीक है। सरस्वती की यह चंचलता और गति हिरण के स्वभाव से जुड़ती है-जो मृगशिरा नक्षत्र का मूल प्रतीक है।
ब्रह्मा जी ने भी हिरण का रूप लेकर सरस्वती का पीछा किया। यह पीछा केवल शारीरिक नहीं, बल्कि जिज्ञासा, आकर्षण और अनंत खोज का भी प्रतीक है। लेकिन सृष्टि के संतुलन और मर्यादा की रक्षा के लिए भगवान शिव प्रकट हुए। शिव ने ब्रह्मा के इस अनुचित व्यवहार पर क्रोध किया और उनका पाँचवाँ सिर अपने त्रिशूल से काट दिया। यही सिर आकाश में जाकर मृगशिरा नक्षत्र के रूप में स्थापित हो गया।
मृगशिरा नक्षत्र का प्रतीक ‘हिरण का सिर’ है। यह नक्षत्र जिज्ञासा, अन्वेषण, कल्पना और कभी-कभी मृगतृष्णा (मायाजाल) का भी प्रतीक है।
तत्व | प्रतीक/कथा में अर्थ |
---|---|
ब्रह्मा | सृष्टि, जिज्ञासा, आकर्षण, मोह |
सरस्वती | ज्ञान, मर्यादा, स्वतंत्रता, विवेक |
हिरण का सिर | खोज, चंचलता, कल्पना, अनंत जिज्ञासा |
शिव का बाण | न्याय, संतुलन, मर्यादा की रक्षा |
मृगशिरा नक्षत्र | आत्म-अन्वेषण, रचनात्मकता, मृगतृष्णा |
मृगशिरा नक्षत्र की यह कथा हमें सिखाती है कि जीवन में जिज्ञासा और खोज जरूरी हैं, लेकिन मर्यादा, विवेक और आत्म-नियंत्रण के बिना यह खोज विनाशकारी भी हो सकती है। हिरण का सिर केवल आकर्षण या मृगतृष्णा का नहीं, बल्कि अनंत संभावनाओं, रचनात्मकता और आत्म-विकास का भी प्रतीक है।
मृगशिरा नक्षत्र: जहाँ खोज है, वहाँ मर्यादा भी है-यही वैदिक संतुलन का संदेश है।
(यह लेख आपकी रुचि, पौराणिक व्याख्या और वैदिक कथाओं की गहराई को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।)
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