By पं. सुव्रत शर्मा
यह वैदिक कथा प्रेम, धर्म, न्याय और बुद्धि के जन्म की गूढ़ व्याख्या प्रस्तुत करती है
वैदिक साहित्य और पुराणों में वर्णित सोम, तारा और बृहस्पति की कथा न केवल एक रोचक आख्यान है, बल्कि यह प्रेम, धर्म, न्याय और बुद्धि के जन्म का गहरा प्रतीक भी है। यह कथा हमें बताती है कि जीवन के जटिल संबंधों में भी अंततः धर्म और ज्ञान की विजय होती है।
बृहस्पति, देवताओं के गुरु और धर्म के प्रतीक, की पत्नी तारा अत्यंत रूपवती और बुद्धिमती थीं। एक बार जब तारा ने चंद्रदेव (सोम) को देखा, जो सौंदर्य और भावनाओं के देवता हैं, तो वे उनकी ओर आकर्षित हो गईं। सोम भी तारा के प्रेम में पड़ गए। यह आकर्षण इतना प्रबल था कि तारा ने बृहस्पति को छोड़कर सोम के साथ रहने का निर्णय लिया।
तारा के सोम के साथ चले जाने से देवलोक में हलचल मच गई। बृहस्पति क्रोधित हो गए और देवताओं से सहायता माँगी। सोम को दानवों का समर्थन प्राप्त था, जिसके कारण देवताओं और दानवों के बीच भीषण संघर्ष छिड़ गया। यह युद्ध इतना विकट हुआ कि सृष्टि संकट में पड़ गई।
जब संघर्ष असहनीय हो गया, तो ब्रह्मा जी ने हस्तक्षेप किया। उन्होंने तारा से सच्चाई जाननी चाही। तारा ने स्वीकार किया कि वह सोम से प्रेम करती हैं और उनसे गर्भवती हैं। ब्रह्मा जी ने न्यायपूर्वक तारा को बृहस्पति के पास लौटने का आदेश दिया। तारा ने ब्रह्मा के आदेश का पालन किया और बृहस्पति के पास वापस आ गईं।
तारा ने बृहस्पति के घर में एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। इस बालक का नाम बुद्ध रखा गया, जो आगे चलकर ज्ञान, कौशल और विवेक के प्रतीक बने। बुद्ध के जन्म ने इस कथा को अमर बना दिया, क्योंकि वह संघर्ष के बाद ज्ञान के उदय का प्रतीक थे।
पात्र | प्रतीकात्मक अर्थ |
---|---|
सोम | मन, भावनाएँ और कामना |
तारा | बुद्धि, निर्णय और मार्गदर्शन |
बृहस्पति | धर्म, नैतिकता और ज्ञान |
बुद्ध | विवेक, करुणा और आत्मज्ञान |
सोम, तारा और बृहस्पति की कथा वैदिक साहित्य का एक अमर आख्यान है जो हमें जीवन के तीन मूलभूत सत्य सिखाती है:
"तारा की वापसी और बुद्ध का जन्म हमें याद दिलाता है कि अंधकार के बाद ही प्रकाश का जन्म होता है।"
यह कथा न केवल पौराणिक महत्व रखती है, बल्कि आज के युग में भी प्रासंगिक है-जहाँ मनुष्य को प्रेम, धर्म और ज्ञान के बीच संतुलन बनाकर चलना है।
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