By पं. नीलेश शर्मा
वेदों में सोम और मृगशिरा का संबंध रचनात्मकता, स्वास्थ्य और आत्मिक तृप्ति का गहरा प्रतीक है
मृगशिरा नक्षत्र का अधिदेवता सोम (चंद्रमा) है, जिसे वेदों में अमरता, औषधि, वनस्पति, रस और आनंद का स्वामी कहा गया है। सोम का संबंध केवल चंद्रमा से ही नहीं, बल्कि जीवन में तृप्ति, रचनात्मकता, मानसिक शांति और आध्यात्मिक खोज से भी है। मृगशिरा नक्षत्र के जातकों के जीवन में सोम का प्रभाव गहरा और बहुआयामी होता है-यह नक्षत्र खोज, कल्पना, आनंद और आत्म-संतुष्टि का वैदिक प्रतीक है।
सोम, तारा और बृहस्पति की कहानी यहां जानें।
गुण/प्रभाव | जीवन में महत्व |
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आनंद और तृप्ति | बाहरी सुख के साथ-साथ आंतरिक संतोष की खोज |
औषधि और स्वास्थ्य | प्राकृतिक चिकित्सा, योग, आयुर्वेद में रुचि |
रचनात्मकता | संगीत, कला, साहित्य, विज्ञान में अद्वितीय प्रतिभा |
आत्म-खोज | ध्यान, साधना, आत्म-विकास की ओर झुकाव |
संवेदनशीलता | भावनाओं की गहराई, सौम्यता, कल्पनाशीलता |
सोम (चंद्रमा) और मृगशिरा नक्षत्र का संबंध वेदों में जीवन के आनंद, औषधि, रचनात्मकता और आत्म-खोज का प्रतीक है। मृगशिरा नक्षत्र के जातक सोम के प्रभाव से जीवन में शांति, सौम्यता, कल्पना और संतुलन लाते हैं। वे न केवल बाहरी संसार में, बल्कि अपने भीतर भी आनंद और तृप्ति की तलाश करते हैं। मृगशिरा और सोम की यह वैदिक संगति हमें सिखाती है कि असली अमृत, असली तृप्ति-साधना, ज्ञान और आत्म-खोज में छुपी है।
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