By पं. अभिषेक शर्मा
शैव पुराण में वर्णित कथा जिसमें शिव से ब्रह्मा और विष्णु की उत्पत्ति और सृष्टि का आरंभ होता है
भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में सृष्टि की उत्पत्ति को लेकर अनेक दृष्टिकोण मिलते हैं। विष्णु पुराण में जहाँ ब्रह्मा को विष्णु की नाभि से निकले कमल से उत्पन्न बताया गया है, वहीं शैव पुराण में शिव को सृष्टि का परम आधार और ब्रह्मा-विष्णु दोनों का जन्मदाता बताया गया है। यह कथा न केवल शिव की महिमा को स्थापित करती है, बल्कि त्रिमूर्ति की एकता, सृष्टि के चक्र और ब्रह्मांड के गहरे रहस्यों को भी उजागर करती है।
कथा की शुरुआत होती है उस समय से, जब न आकाश था, न पृथ्वी, न दिशाएँ-केवल अनंत, असीम, मौन और दिव्य ऊर्जा का विस्तार था। इस शून्य में केवल एक ही सत्ता थी-महेश्वर शिव। उन्हीं से सृष्टि का आरंभ हुआ।
शैव पुराण के अनुसार, शिव ने अपनी दिव्य शक्ति (शक्ति) के साथ सृष्टि की रचना का संकल्प किया।
इस प्रकार, त्रिमूर्ति-ब्रह्मा, विष्णु और शिव-एक ही परम सत्ता (महेश्वर) के विभिन्न रूप हैं, जो सृष्टि, पालन और संहार के चक्र को संचालित करते हैं।
शैव पुराण में वर्णित है कि अलग-अलग कल्पों (युगों) में कभी शिव से ब्रह्मा और विष्णु उत्पन्न होते हैं, तो कभी ब्रह्मा से शिव और विष्णु, तो कभी विष्णु से शिव और ब्रह्मा। यह चक्रीय दृष्टिकोण दर्शाता है कि ब्रह्मांड में कोई भी सत्ता पूर्ण स्वतंत्र नहीं, बल्कि सब एक-दूसरे से जुड़े हैं। “तीनों ही महेश्वर के अंश हैं-सृष्टि, पालन और संहार के लिए। जब-जब ब्रह्मांड का विस्तार होता है, शिव अपनी शक्ति से ब्रह्मा और विष्णु को प्रकट करते हैं।”
शैव पुराण में एक रोचक प्रसंग आता है- एक बार ब्रह्मा और विष्णु में यह विवाद हुआ कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। तभी एक अनंत अग्नि-स्तंभ (ज्योतिर्लिंग) प्रकट हुआ। ब्रह्मा उस स्तंभ का सिरा खोजने ऊपर गए, विष्णु नीचे। कोई भी अंत तक नहीं पहुँच सका। तभी शिव उस ज्योतिर्लिंग से प्रकट हुए और दोनों को बताया कि वे ही आदि और अनंत हैं-सृष्टि के मूल कारण। यह कथा शिव की सर्वोच्चता, ब्रह्मा-विष्णु की सीमितता और त्रिमूर्ति की एकता को दर्शाती है।
देवता | उत्पत्ति (शैव पुराण) | कार्य |
---|---|---|
ब्रह्मा | शिव के दाएँ अंग से | सृष्टि (Creation) |
विष्णु | शिव के बाएँ अंग से | पालन (Preservation) |
रुद्र (शिव) | स्वयं शिव | संहार (Destruction) |
शैव पुराण के अनुसार, ब्रह्मा और विष्णु दोनों शिव के शरीर से प्रकट हुए हैं। यह कथा न केवल शिव की महिमा को स्थापित करती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि ब्रह्मांड का हर कार्य-सृजन, पालन और संहार-एक ही परम सत्ता की लीला है। शिव ही आदि, शिव ही अनंत-सृष्टि के आरंभ और अंत दोनों में वही परम आधार हैं। यह दृष्टिकोण भारतीय दर्शन में एकता, चक्रीय सृष्टि और अहंकार से ऊपर सत्य की खोज का प्रेरक संदेश देता है।
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