By पं. अभिषेक शर्मा
जानिए कैसे आदिशक्ति ब्रह्मा, विष्णु और शिव की जननी हैं और समस्त सृष्टि की आधारशक्ति हैं
भारतीय आध्यात्मिकता और शाक्त परंपरा में आदिशक्ति (मूल देवी) को सृष्टि, पालन और संहार-तीनों के मूल कारण के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। देवी पुराण, देवी भागवत, त्रिपुरा रहस्य और देवी गीता जैसे ग्रंथों में आदिशक्ति को परम सत्ता, परम सत्य और समस्त ब्रह्मांड की जननी बताया गया है। इन्हीं ग्रंथों के अनुसार, आदिशक्ति ने ही ब्रह्मा, विष्णु और शिव-तीनों को उत्पन्न किया और ब्रह्मांड की रचना, संचालन और संहार का चक्र प्रारंभ किया।
आदिशक्ति को "परम प्रकृति", "महादेवी", "पराशक्ति" और "त्रिपुरा सुंदरी" जैसे नामों से जाना जाता है।
देवी गीता में आदिशक्ति स्वयं कहती हैं- "मैं ही यह ब्रह्मांड हूँ। सृष्टि, पालन और संहार की समस्त शक्तियाँ मुझमें ही स्थित हैं।"
त्रिपुरा रहस्य और देवी भागवत के अनुसार, सृष्टि के आरंभ में केवल आदिशक्ति ही विद्यमान थीं।
देवी भागवत पुराण में आदिशक्ति स्वयं त्रिमूर्ति को आदेश देती हैं- "हे ब्रह्मा, तुम सृष्टि करो। हे विष्णु, तुम पालन करो। हे शिव, तुम संहार करो। तुम तीनों मेरी ही शक्तियों के अंश हो-रजोगुण, सत्त्वगुण और तमोगुण। जब तक मेरी शक्ति तुममें है, तुम अपने-अपने कार्य कर सकोगे। मेरे बिना तुम निर्जीव, निष्क्रिय और शक्तिहीन हो।"
देवी गीता और त्रिपुरा रहस्य में आदिशक्ति का विराट स्वरूप वर्णित है-
यह विराट रूप दिखाता है कि ब्रह्मा, विष्णु, शिव और समस्त सृष्टि देवी के ही अंग हैं।
देवी पुराण और शाक्त ग्रंथों के अनुसार, आदिशक्ति ही ब्रह्मा, विष्णु और शिव-तीनों की जननी हैं। वे ही सृष्टि, पालन और संहार की मूल चेतना हैं। त्रिमूर्ति के समस्त कार्य देवी की शक्ति के बिना असंभव हैं। आदिशक्ति की यह कथा हमें सिखाती है कि ब्रह्मांड का हर कण, हर शक्ति, हर चेतना-मूलतः उसी परम माता की अभिव्यक्ति है। जो देवी को जानता है, वह सृष्टि के रहस्य, शक्ति और प्रेम-तीनों को जान लेता है। यही है देवी की महिमा-सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक और सदा पूज्य।
अनुभव: 19
इनसे पूछें: विवाह, संबंध, करियर
इनके क्लाइंट: छ.ग., म.प्र., दि., ओडि, उ.प्र.
इस लेख को परिवार और मित्रों के साथ साझा करें