By पं. अभिषेक शर्मा
विष्णु की नाभि से निकले कमल से ब्रह्मा के प्राकट्य की दिव्य कथा
भारतीय आध्यात्मिकता और पुराणों में ब्रह्मा को सृष्टि के रचयिता के रूप में जाना जाता है। विष्णु पुराण में ब्रह्मा की उत्पत्ति को भगवान विष्णु की नाभि से निकले कमल से जोड़ा गया है। इस दृष्टिकोण में विष्णु को परम आधार और ब्रह्मा को सृष्टि का कार्यकारी माना गया है। यह कथा न केवल सृष्टि की उत्पत्ति की गूढ़ व्याख्या प्रस्तुत करती है, बल्कि ब्रह्मांड के आध्यात्मिक और दार्शनिक पहलुओं को भी उजागर करती है।
विष्णु पुराण के अनुसार, जब ब्रह्मांड का प्रारंभ हुआ, तब सारा जगत एक शून्य, अंधकारमय जलराशि में डूबा हुआ था। इस अनंत जल में भगवान विष्णु योगनिद्रा में शयन कर रहे थे। उनके नाभि से एक दिव्य और अलौकिक कमल का फूल प्रकट हुआ। इस कमल के फूल से ब्रह्मा प्रकट हुए, जिन्हें सृष्टि के निर्माता के रूप में स्थापित किया गया। यह कमल न केवल सृष्टि के आरंभ का प्रतीक है, बल्कि यह जीवन, चेतना और सृजन की ऊर्जा का स्रोत भी है। ब्रह्मा ने इसी ऊर्जा से सृष्टि की रचना की, जिसमें सभी जीव, देवता, मनुष्य और प्रकृति के तत्व शामिल हैं।
इस दृष्टिकोण में भगवान विष्णु को सृष्टि के परम आधार के रूप में माना गया है, जो सृष्टि के पालनहार और संरक्षक हैं। विष्णु की नाभि से निकला कमल ब्रह्मा का जन्मदाता है, जो यह दर्शाता है कि सृष्टि का निर्माण और विस्तार विष्णु की दिव्य ऊर्जा से संभव हुआ।
विष्णु पुराण में ब्रह्मा की उत्पत्ति की कथा न केवल सृष्टि के भौतिक आरंभ को दर्शाती है, बल्कि यह ब्रह्मांड की दिव्यता, चेतना और ऊर्जा के गूढ़ रहस्यों को भी उद्घाटित करती है। विष्णु की नाभि से निकले कमल से ब्रह्मा का जन्म यह संकेत देता है कि सृष्टि का आधार परम दिव्यता और चेतना है और ब्रह्मा उस चेतना के माध्यम से सृष्टि का कार्य करते हैं। यह कथा भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता में सृष्टि, ऊर्जा और चेतना के गहरे संबंध को समझने में सहायक है।
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