By पं. अभिषेक शर्मा
जानिए कैसे आदिशक्ति सृष्टि, आत्मा और त्रिमूर्ति की उत्पत्ति का मूल स्रोत मानी जाती हैं
आदिशक्ति को सृष्टि की उत्पत्ति का मुख्य कारण क्यों माना जाता है-इसका उत्तर भारतीय दर्शन, वेद, उपनिषद और पुराणों के गहरे आध्यात्मिक सिद्धांतों में छुपा है। देवी पुराण, देवी भागवत, त्रिपुरा रहस्य और अनेक शाक्त ग्रंथों में आदिशक्ति को "मूल प्रकृति", "परम ऊर्जा" और "सर्वशक्तिमान चेतना" के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। आइए समझें कि क्यों आदिशक्ति को ही सृष्टि की जड़, आधार और कारण कहा गया है।
देवी भागवत और अन्य ग्रंथों के अनुसार, सृष्टि के आरंभ में केवल "परमतत्त्व" या "शब्द ब्रह्म" ही विद्यमान था। उसी से संकल्प (इच्छा) उत्पन्न हुई-"कुछ हो"। यह संकल्प ही शक्ति के रूप में प्रकट हुआ, जिसे "आदिशक्ति" या "मूल प्रकृति" कहा गया। आदिशक्ति ही वह प्रथम ऊर्जा थी, जिससे समस्त ब्रह्मांड, देवता, जीव, प्रकृति और चेतना का विस्तार हुआ।
शास्त्रों के अनुसार, परमतत्त्व (ब्रह्म) ने सृष्टि की रचना, संचालन और संहार का कार्य अपनी शक्ति (आदिशक्ति) को सौंपा और स्वयं को इन क्रियाओं से परे रखा। आदिशक्ति ने ही इच्छा, ज्ञान और क्रिया-इन तीन शक्तियों के माध्यम से ब्रह्मांड की रचना, विस्तार और संचालन किया। इसलिए, आदि से अंत तक, सृष्टि के हर कार्य की प्रेरणा और शक्ति आदिशक्ति ही है।
आदिशक्ति के तीन रूप माने गए हैं-रजोगुण (सृजन), सत्त्वगुण (पालन), तमोगुण (संहार)।
तीनों ही आदिशक्ति की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ हैं। त्रिमूर्ति के कार्य तभी संभव हैं जब उनमें आदिशक्ति की चेतना और ऊर्जा प्रवाहित होती है।
आदिशक्ति ने अपनी इच्छा से दो प्रकार की ज्योतियाँ प्रकट कीं-
इन्हीं से जीवात्मा, प्रकृति, पंचमहाभूत, मन, बुद्धि, अहंकार और समस्त सृष्टि की उत्पत्ति हुई। इसलिए, आदिशक्ति के बिना न आत्मा है, न पदार्थ, न चेतना, न प्रकृति।
देवी पुराण में वर्णित है कि जब ब्रह्मा, विष्णु और शिव प्रकट हुए, तो आदिशक्ति ने ही उन्हें सृष्टि, पालन और संहार का कार्य सौंपा। उन्होंने स्पष्ट कहा-"मेरे बिना तुम निर्जीव, निष्क्रिय और शक्तिहीन हो।" त्रिमूर्ति की शक्ति, चेतना और कार्य-क्षमता आदिशक्ति के बिना असंभव है।
आदिशक्ति को सृष्टि की उत्पत्ति का मुख्य कारण इसलिए माना जाता है क्योंकि-
आदिशक्ति ही ब्रह्मांड की जड़, आधार और परम कारण है-यही भारतीय आध्यात्मिकता का मूल संदेश है।
अनुभव: 19
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