By पं. अभिषेक शर्मा
जानिए हिरण्यगर्भ से ब्रह्मा के प्राकट्य और सृष्टि की रहस्यमयी शुरुआत की कथा
भारतीय आध्यात्मिकता में ब्रह्मा को सृष्टि के आदि रचनाकार, ज्ञान के स्रोत और वेदों के उद्घाटक के रूप में जाना जाता है। वे त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) के प्रथम देवता हैं, जिनकी भूमिका सृष्टि की रचना और विस्तार है। ब्रह्मा की उत्पत्ति की कथा न केवल आध्यात्मिक रहस्य से भरी है, बल्कि यह ब्रह्मांड के जन्म, चेतना के विस्तार और सृष्टि के चिरंतन चक्र को भी दर्शाती है।
कथा की शुरुआत होती है उस समय से, जब न आकाश था, न पृथ्वी, न दिशाएँ, न समय-केवल एक अनंत, असीम, मौन और अंधकारमय जलराशि थी। यह था प्रलय का काल, जब सारा ब्रह्मांड एक अनंत जल में विलीन था। इस महासागर के गर्भ में छुपा था सृष्टि का बीज-एक दिव्य संभावना, जो समय के सही क्षण की प्रतीक्षा कर रही थी।
इसी अनंत जलराशि से एक अद्भुत, तेजस्वी, स्वर्णिम अंडा प्रकट हुआ, जिसे हिरण्यगर्भ (स्वर्ण अंडा) कहा गया। यह अंडा ब्रह्मांड का गर्भ था-जिसमें अपार ऊर्जा, चेतना और सृष्टि की समस्त संभावनाएँ समाहित थीं। इस अंडे के भीतर, गहन ध्यान और योग में लीन, स्वयं ब्रह्मा उपस्थित थे, परंतु अभी तक वह सृष्टि के कार्य के लिए जागृत नहीं हुए थे।
समय के चक्र ने गति पकड़ी। हिरण्यगर्भ का अंडा फूटा और उसके भीतर से ब्रह्मा का प्राकट्य हुआ। जैसे ही ब्रह्मा जागे, उन्होंने चारों दिशाओं में देखा-उनके चार मुख प्रकट हुए, जो चार वेदों, चार युगों, चार दिशाओं और चार आश्रमों का प्रतीक हैं। ब्रह्मा ने सबसे पहले "ॐ" का उच्चारण किया, जिससे ब्रह्मांड में पहली ध्वनि और कंपन पैदा हुई-यही थी सृष्टि की पहली नाद, पहला कंपन, पहला जीवन।
ब्रह्मा ने अपने मन से (मनसा) दस प्रजापतियों (मनसपुत्रों) की रचना की, जो सृष्टि के विस्तार के लिए उत्तरदायी बने। उन्होंने सप्तर्षियों, देवताओं, असुरों, मनुष्यों, पशु-पक्षियों, वनस्पतियों और समस्त प्राणियों की रचना की। ब्रह्मा ने सृष्टि की विविधता, जीवन के चक्र और कर्म के सिद्धांत को स्थापित किया।
प्रतीक | अर्थ/महत्व |
---|---|
चार मुख | चार वेद, चार दिशाएँ, चार युग, चार आश्रम |
चार भुजाएँ | शक्ति, सृजन, संरक्षण, ज्ञान |
कमल का आसन | शुद्धता, दिव्यता, सृष्टि का आधार |
हंस (वाहन) | विवेक, शुद्धता, ज्ञान |
वेद, जपमाला, कमंडल | ज्ञान, तप, संयम |
दाढ़ी और लाल/स्वर्ण वर्ण | प्राचीनता, तेज, सृजनशीलता |
ब्रह्मा की उत्पत्ति की कथा केवल एक पौराणिक आख्यान नहीं, बल्कि भारतीय दर्शन, वेदांत और आध्यात्मिकता का मूल है। हिरण्यगर्भ से ब्रह्मा का प्राकट्य, उनके द्वारा सृष्टि की रचना और ज्ञान का विस्तार-यह सब हमें यह सिखाता है कि सृजन, ज्ञान और विवेक के बिना जीवन अधूरा है। ब्रह्मा के चार मुख और चार भुजाएँ हर दिशा में ज्ञान, सृजन और संतुलन का संदेश देती हैं। हर बार जब हम कुछ नया रचते हैं, अपने भीतर की चेतना को जागृत करते हैं, तब हम ब्रह्मा की ही ऊर्जा को जीते हैं-यही है सृष्टि का सनातन चक्र।
अनुभव: 19
इनसे पूछें: विवाह, संबंध, करियर
इनके क्लाइंट: छ.ग., म.प्र., दि., ओडि, उ.प्र.
इस लेख को परिवार और मित्रों के साथ साझा करें