By पं. अभिषेक शर्मा
जानिए कैसे देवगण, मनुष्यगण और राक्षसगण आपके स्वभाव व जीवनशैली को प्रभावित करते हैं
बहुत बार लोग पूछते हैं-‘‘आख़िर जन्म के नक्षत्र का हमारे व्यवहार या भाग्य से क्या संबंध है?’’ यदि आप भी यही सोचते हैं, तो एक सच्ची बात सुनें: जिस क्षण आप इस धरा पर आए, ठीक उसी क्षण के ग्रह-नक्षत्र आपके व्यक्तित्व की नींव रखते हैं। विशेषकर, आपका "गण"-जो कि आपके जन्म के नक्षत्र की गणना पर आधारित होता है-आपके स्वभाव, सोच, प्राथमिकताओं और यहां तक कि जीवन में चुनौतियों और उपलब्धियों की दिशा तय करता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, हर व्यक्ति तीन गणों में से किसी एक में आता है-देवगण, मनुष्यगण और राक्षसगण। ये गण मात्र टैग नहीं, आपकी भीतरी प्रकृति और ज़िंदगी की धारा की पहचान हैं।
यदि आपका जन्म अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, हस्त, स्वाति, अनुराधा, श्रवण या रेवती नक्षत्र में हुआ है-तो आप देवगण के हैं।
श्लोक
सुंदरों दान शीलश्च मतिमान् सरल: सदा।
अल्पभोगी महाप्राज्ञो तरो देवगणे भवेत्।।
Sundaro daan shilashcha matimaan saralah sadaa. Alpabhogi maha-praajnyo taro devagane bhavet.
Meaning: देवगण के जातक सुंदर, दयालु, बुद्धिमान, सादा जीवन के आदर्श और सेवाभावी होते हैं।
अगर आप भरणी, रोहिणी, आर्द्रा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद या उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में जन्मे हैं, तो आप मनुष्यगण में आते हैं।
श्लोक
मानी धनी विशालाक्षो लक्ष्यवेधी धनुर्धर:।
गौर: पोरजन ग्राही जायते मानवे गणे।।
Mani dhani vishalaksho lakshyavedhi dhanurdharah. Gaurah porajana graahi jayate manave gane.
Meaning: ऐसे जातक आत्मसम्मानी, धनवान, निर्णायक, सजग और समाज पर प्रभाव डालने वाले होते हैं।
अगर आप मघा, चित्रा, धनिष्ठा, शतभिषा, या ज्येष्ठा (अथवा अश्लेषा, विशाखा, कृत्तिका, मूल) नक्षत्र में जन्में हैं-तो आप राक्षसगण में आते हैं।
श्लोक
उन्मादी भीषणाकार: सर्वदा कलहप्रिय:।
पुरुषों दुस्सहं बूते प्रमे ही राक्षसे गण।।
Unmaadi bhishanakaarah sarvadaa kalahapriyah. Purushon dussaham boote prame hi rakshase gan.
Meaning: ऐसे जातक तीव्र स्वभाव, विवादप्रिय, तेज, और विश्व को चुनौती देने की मानसिकता के होते हैं।
हर नक्षत्र का एक गण होता है। अपनी कुंडली में चंद्रमा का नक्षत्र जानें और देख लें कि वो किस गण में आता है। उदाहरण: स्वाति नक्षत्र-देवगण; मघा-राक्षसगण; रोहिणी-मनुष्यगण।
ज्योतिष में गण दोष तब माने जाते हैं जब विवाह संबंधी विचार करते समय दोनों व्यक्तियों के नक्षत्र विपरीत गण के हों, जिससे स्वभाव या सोच में टकराव आ सकता है। गण दोष को समझना और सामान्य उपाय करना पारिवारिक सुख के लिए अच्छा माना गया है। हालांकि, सच्चा मेल केवल कुंडली नहीं, भावनाओं और समझ की मेल से होता है।
जिस गण में आप जन्मे वह आपके स्वभाव का मुख्य रंग है, लेकिन जीवन के अनुभव और आत्मसंस्कार आपको संतुलित बनाते हैं। देवगण की करुणा, मनुष्यगण की संतुलित सोच और राक्षसगण की तीक्ष्णता-तीनों में से कुछ न कुछ हर व्यक्ति में होता है, बस मात्रा अलग होती है। हर नक्षत्र, हर गण, एक नई संभावना, एक नई दिशा की कहानी है-अपनी कुंडली को समझिए, अपने स्वभाव को अपनाइए और जीवन को अपने अनुरूप गढ़िए। यही है नक्षत्र गण का सार, और यही है जीवन जीने की कला।
अनुभव: 19
इनसे पूछें: विवाह, संबंध, करियर
इनके क्लाइंट: छ.ग., म.प्र., दि., ओडि, उ.प्र.
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