हिन्दू पंचांग में आश्विन मास की पूर्णिमा का दिव्य दिन अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह केवल एक खगोलीय घटना नहीं बल्कि धर्म और अध्यात्म से जुड़कर आत्मा, मन और समाज के संतुलन का उत्सव बन जाता है। आश्विन पूर्णिमा को विशेष रूप से स्नान, दान, उपवास और चंद्र पूजन से जोड़ा गया है। इस अवसर पर भगवान सत्यनारायण की पूजा, चंद्रमा को अर्घ्य और माता लक्ष्मी की आराधना कर भक्त अपने जीवन में सुख, समृद्धि और मानसिक शांति की कामना करते हैं। यह दिन भौतिक और आध्यात्मिक जीवन को एक साथ संतुलित करने के लिए मार्गदर्शक माना जाता है।
आश्विन पूर्णिमा 2025 की तिथि और समय
- पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 6 अक्टूबर 2025, दोपहर 12:23 बजे
यह समय पूर्णिमा की तिथि के आरंभ का है, जब शुभ कार्यों की शुरुआत की जाती है। इस समय से लेकर अगले दिन तक पुण्यकारी गतिविधियाँ की जाती हैं।
- पूर्णिमा तिथि समाप्ति: 7 अक्टूबर 2025, प्रातः 9:16 बजे
यह वह समय है जब पूर्णिमा तिथि समाप्त हो जाएगी और धार्मिक महत्व की दृष्टि से उसका प्रभाव समाप्त माना जाता है।
- चंद्रोदय का समय: 6 अक्टूबर को सायं 5:27 बजे
इस समय को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसी समय चंद्रमा प्रत्यक्ष रूप से अपने पूर्ण तेज और सौंदर्य के साथ आकाश में दिखाई देता है।
- चंद्रास्त का समय: 7 अक्टूबर को प्रातः 6:14 बजे
धार्मिक मान्यता है कि चंद्रमा के अस्त तक उसका पुण्यमयी प्रभाव भक्तों पर बना रहता है।
आश्विन पूर्णिमा 2025 के शुभ मुहूर्त
- ब्रह्म मुहूर्त (प्रातः 4:39 से 5:28):
यह मुहूर्त साधना, जप और ध्यान के लिए सर्वोत्तम है। इस समय किए गए स्नान और ध्यान आत्मिक पवित्रता तथा दिव्य शक्ति प्रदान करते हैं।
- अभिजीत मुहूर्त (11:45 से 12:32):
किसी भी बाधारहित समय का श्रेष्ठ काल। इसे दैनिक जीवन में विशेष रूप से पूजन, हवन और नए कार्यों की शुरुआत के लिए उत्कृष्ट माना जाता है।
- निशीथ मुहूर्त (रात्रि 11:45 से 12:34):
यह समय रात्रि का मध्य होता है, जब वातावरण पूर्णतः शांति और स्थिरता से भरा रहता है। इसे विष्णु और लक्ष्मी आराधना के लिए अद्वितीय समय कहा गया है।
ज्योतिषीय विशेषताएँ
- विशेष ग्रह योग: इस वर्ष राहु, मंगल और बृहस्पति की स्थिति विशेष रूप से प्रभावकारी है। यह संयोग वर्क ट्राएंगल योग कहलाता है, जो कर्म, प्रयास और भाग्य पर विशेष प्रभाव डालता है।
- योग परिवर्तन: दिन का प्रारंभ वृद्धि योग से होता है, जो दोपहर 1:24 बजे तक रहेगा और जीवन में विकास तथा लाभ की राह प्रशस्त करेगा। उसके बाद शुरू होने वाला ध्रुव योग स्थिरता, दीर्घकालिक सफलता और अचल सुख प्रदान करता है।
- नक्षत्र प्रभाव: उत्तराभाद्रपद नक्षत्र इस दिन विद्यमान रहेगा और अगले दिन प्रातः 4:01 बजे तक रहेगा। धार्मिक कार्यों, साधना, जप-तप, दान और सेवा कार्यों के लिए यह नक्षत्र शुभ माना जाता है।
उपवास और पूजन-विधान
- व्रत अनुष्ठान: भक्त दिनभर व्रत रखकर फलाहार या दूध का सेवन करते हैं। इससे शरीर की शुद्धि के साथ मानसिक संयम प्राप्त होता है।
- सत्यनारायण पूजन: प्रातः या दोपहर के समय सत्यनारायण भगवान का पूजन और कथा सुनना इस दिन विशेष रूप से अनिवार्य माना गया है।
- चंद्र पूजन: सूर्यास्त के बाद चंद्रोदय काल में चंद्रमा को जल, दूध और सफेद पुष्प अर्पित कर अर्घ्य दिया जाता है। यह कार्य समस्त बाधाओं और रोगों के निवारण हेतु किया जाता है।
- लक्ष्मी पूजन: संध्याकाल में दीप प्रज्वलन कर माता लक्ष्मी की पूजा वंदना की जाती है। यह घर में ऐश्वर्य बनाए रखने हेतु आवश्यक है।
भद्रा और पंचक का प्रभाव
- भद्रा: आश्विन पूर्णिमा के दिन 12:23 बजे दोपहर से रात 10:53 बजे तक भद्रा का काल रहेगा। इसमें शुभ कार्य और नए आरंभ पर रोक होती है। हालांकि पूजा अनुष्ठान जारी रखे जा सकते हैं।
- पंचक: यह स्थिति पूरे दिन बनी रहेगी। पंचक सामान्यतः गृह निर्माण और संपत्ति संबंधी कार्यों में अवरोधक माना जाता है, किंतु पूजा और व्रत करने में कोई व्यवधान नहीं उत्पन्न करता।
स्नान और दान का महत्व
- ब्रह्म मुहूर्त स्नान: प्रातःकालीन स्नान आत्मा की शुद्धि और पापों की निवृत्ति के लिए शुभ होता है।
- श्रेष्ठ स्नान काल: प्रातः 9:13 से दोपहर 1:37 बजे तक का समय स्नान व दान दोनों के लिए दिव्य फल प्रदान करता है।
- अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त स्नान व दान (12:09 से 1:37): यह काल सबसे उत्तम माना गया है। इस समय किए गए स्नान, दान और ध्यान अत्यधिक फलकारी होते हैं, जो जीवन में मनोकामना सिद्धि कराते हैं।
दान में चावल, गेहूँ, वस्त्र, फल और सब्जियाँ देना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। यह न केवल समाज के कल्याण में सहायक होता है बल्कि आत्मा के लिए भी शुद्धिकर अनुभव प्रदान करता है।
आश्विन पूर्णिमा का महत्व
- मानसिक शांति और स्थिरता: उपवास और साधना करने से मन में शांति का संचार होता है।
- धन और संपन्नता: लक्ष्मी पूजन से आर्थिक क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि प्राप्त होती है।
- शारीरिक शुद्धि: स्नान और दान करने से शरीर की शुद्धि होती है और रोग दूर होते हैं।
- आध्यात्मिक प्रगति: सत्यनारायण कथा और पूजा से मनुष्य का जीवन धर्म मार्ग पर अग्रसर होता है।
- करुणा भाव का विकास: दान करने से करुणा, सेवा और परोपकार की भावना प्रबल होती है।
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1: आश्विन पूर्णिमा 2025 कब है और इसका समय क्या रहेगा?
उत्तर: सोमवार, 6 अक्टूबर को। तिथि दोपहर 12:23 बजे आरंभ होकर 7 अक्टूबर प्रातः 9:16 बजे समाप्त होगी।
प्रश्न 2: इस दिन चंद्रोदय कब होगा?
उत्तर: चंद्रोदय 6 अक्टूबर को सायं 5:27 बजे और चंद्रास्त 7 अक्टूबर को प्रातः 6:14 बजे होगा।
प्रश्न 3: इस दिन कौन से योग और नक्षत्र रहेंगे?
उत्तर: दिन का प्रारंभ वृद्धि योग से होगा, उसके बाद ध्रुव योग रहेगा। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र पूर्णिमा रात्रि तक प्रभावी रहेगा।
प्रश्न 4: इस दिन के अनुष्ठान क्या हैं?
उत्तर: उपवास, सत्यनारायण पूजा, चंद्र अर्घ्य, लक्ष्मी पूजन और स्नान-दान।
प्रश्न 5: आश्विन पूर्णिमा मनाने का मुख्य लाभ क्या है?
उत्तर: जीवन में शांति, समृद्धि, वैभव, पापों की निवृत्ति और आत्मिक संतोष।