By पं. संजीव शर्मा
तिथि, पूजन विधि, गूढ़ रहस्य और आध्यात्मिक महत्व
दुर्गा विसर्जन माँ दुर्गा की वार्षिक उपस्थिति के समापन का सबसे भावुक और पावन अवसर है। शारदीय नवरात्र और दुर्गा पूजन के दौरान प्रतिमा स्थापना से लेकर श्रद्धा और उत्साह सहित सम्पन्न अनुष्ठानों की पराकाष्ठा विजयादशमी के दिन विसर्जन के साथ होती है। यह पर्व माँ की विदाई का प्रतीक है और अच्छाई की विजय तथा देवी के दिव्य लोक लौटने का उत्सव है।
वर्ष 2025 में दुर्गा विसर्जन का आयोजन गुरुवार, 2 अक्टूबर को होगा। इस दिन प्रातः 6 बजकर 10 मिनट से 8 बजकर 35 मिनट तक का समय विसर्जन के लिए श्रेष्ठ रहेगा। इस अवधि में किये गये पूजन और अनुष्ठान अत्यधिक फलप्रद Siddh होते हैं।
आयोजन | तिथि और समय |
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दुर्गा विसर्जन दिवस | गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025 |
विसर्जन मुहूर्त | प्रातः 6:10 से 8:35 तक |
दशमी तिथि प्रारंभ | 1 अक्टूबर 2025, सायं 7:01 बजे |
दशमी तिथि समाप्त | 2 अक्टूबर 2025, सायं 7:10 बजे |
श्रवण नक्षत्र प्रारंभ | 2 अक्टूबर 2025, प्रातः 9:13 बजे |
श्रवण नक्षत्र समाप्त | 3 अक्टूबर 2025, प्रातः 9:34 बजे |
हिन्दू पंचांग में विसर्जन का काल प्रातःकाल और अपराह्न में श्रेष्ठ माना गया है। विशेष रूप से जब दशमी तिथि और श्रवण नक्षत्र का संयोग हो तब विसर्जन का महत्व अत्यधिक हो जाता है।
सुबह के शुभ समय में माँ दुर्गा की अंतिम पूजा सम्पन्न होती है। इसमें उनके प्रिय पुष्प, फल, मिष्ठान, नारियल और विविध नैवेद्य अर्पित किये जाते हैं। वातावरण में शंखनाद, घंटियों और भक्ति-गीतों की गूंज से श्रद्धा और आभार का वातावरण व्याप्त होता है। यह अनुष्ठान माँ दुर्गा को पूरे नवरात्रि में दिये गए संरक्षण और कृपा के लिए कृतज्ञता प्रकट करता है।
पूर्वी भारत, विशेषकर बंगाल में, एक विशेष परंपरा सिंदूर खेला की होती है। विवाहित स्त्रियाँ माँ दुर्गा की प्रतिमा को सिंदूर अर्पित करती हैं और परस्पर एक दूसरे को लगाती हैं। यह स्त्रियों के सौभाग्य, वैवाहिक स्थायित्व और देवी शक्ति की सामूहिक अभिव्यक्ति का समय है। यह रस्म स्त्रीत्व और सामुदायिक ऊर्जा का लालिमा-भरा विजय उत्सव मानी जाती है।
पूजा-पुष्प अर्पित करने के पश्चात दीपक और धूप से आरती की जाती है। सामूहिक भजनों, दुर्गा स्तुति और मंत्रों से वातावरण भक्ति में रँग जाता है। यह क्षण समुदाय के सम्मिलित भाव और माँ की कृपा प्राप्ति का सजीव साक्षात्कार है।
आरती उपरांत माता की प्रतिमा शोभा यात्रा के साथ नगर में निकाली जाती है। मार्गभर ढोल-नगाड़े, शंख, घंटियाँ और भक्तों के नृत्य-कीर्तन वातावरण को भक्ति भाव और हर्षोल्लास से भर देते हैं। भक्त देवी के जय घोष करते हुए, विश्वास के साथ प्रतिमा को नदी, तालाब या समुद्र के निकट लेकर जाते हैं।
प्रतिमा को धीरे-धीरे जल में विसर्जित किया जाता है। जल में प्रतिमा का प्रविष्ट होना जीवन-मृत्यु और पुनर्जन्म के चिरंतन सत्य का द्योतक है। मिट्टी प्रतिमा का विलय हमें स्मरण कराता है कि रूप नश्वर है, किन्तु देवी की शक्ति और कृपा शाश्वत है। यह माँ दुर्गा के कैलाश पर्वत, उनके दिव्य लोक लौटने का प्रतीक है।
दुर्गा विसर्जन केवल प्रतिमा की विदाई नहीं बल्कि जीवन का नूतन संकल्प है। यह हमें सिखाता है कि भौतिक रूप अनित्य हैं, किन्तु देवी की उपस्थिति सनातन है। यह हृदय में विश्वास जगाता है कि अंधकार कभी प्रकाश पर हावी नहीं हो सकता। 2 अक्टूबर 2025 को सम्पन्न विसर्जन के इस क्षण में भक्त माँ से साहस, विवेक, समृद्धि और आशीर्वाद प्राप्त कर जीवन का पथ प्रकाशित करेंगे। मिट्टी की प्रतिमा जल में लय होकर यह प्रतिज्ञान देती है कि माँ दुर्गा पुनः अवश्य लौटेंगी।
प्रश्न 1: दुर्गा विसर्जन 2025 किस दिन होगा?
उत्तर: गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025 को।
प्रश्न 2: विसर्जन का उत्तम मुहूर्त कब है?
उत्तर: 2 अक्टूबर को प्रातः 6:10 से 8:35 तक।
प्रश्न 3: सिंदूर खेला की परंपरा कहाँ प्रचलित है?
उत्तर: बंगाल और पूर्वी भारत के क्षेत्रों में।
प्रश्न 4: विसर्जन के आध्यात्मिक महत्व में प्रमुख संदेश क्या है?
उत्तर: सच्चाई और धर्म की विजय तथा देवी की अनश्वर कृपा का स्मरण।
प्रश्न 5: विसर्जन समय नारियल फोड़ने का लक्ष्य क्या है?
उत्तर: अहंकार का त्याग कर पूर्ण आत्मसमर्पण करना।
अनुभव: 15
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इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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