By पं. संजीव शर्मा
तिथियाँ, पूजन-विधान और अच्छाई की विजय का गहन सार
विजयादशमी जिसे दशहरा के नाम से भी जाना जाता है, नवरात्रि के नौ दिवसीय उत्सव का भव्य समापन है। यह एक ऐसा दिन है जो अधर्म पर धर्म की, असत्य पर सत्य की और बुराई पर अच्छाई की विजय का सनातन प्रतीक है। वर्ष 2025 में यह शुभ अवसर गुरुवार, 2 अक्टूबर को मनाया जाएगा, जब दुर्गा विसर्जन और दशहरा उत्सव दोनों ही देशभर में श्रद्धा, उल्लास और भव्यता के साथ सम्पन्न होंगे।
भारत के विविध भागों में इस दिवस की विशेष अभिव्यक्तियाँ देखने को मिलती हैं। उत्तर और पश्चिम भारत में यह रामकथा और रावण-वध से जुड़ा है, जबकि बंगाल और पूर्वी भारत में इसे माँ दुर्गा की प्रतिमाओं के विसर्जन से जोड़ा जाता है। इस प्रकार विजयादशमी एक ऐसा पर्व बनकर सामने आता है जो धर्मगाथा, संस्कृति, अनुष्ठान और आध्यात्मिक संदेश का संगम है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष 2025 में विजयादशमी और दुर्गा विसर्जन का आयोजन इस प्रकार रहेगा:
शास्त्रों के अनुसार दशमी तिथि में सुबह (प्रातःकाल) अथवा अपराह्न के समय दुर्गा विसर्जन सर्वोत्तम रहता है। यदि दशमी तिथि और श्रवण नक्षत्र का योग हो, तो यह मुहूर्त और भी शुभफल प्रदान करता है।
देवी के अंतिम पूजन में उनके प्रिय फल, पुष्प, नारियल और मिष्ठान अर्पित किए जाते हैं। दुर्गा मंत्रों और वैदिक स्तोत्रों के उच्चारण के बीच श्रद्धालु देवी को अंतिम वंदन करते हैं। यह श्रद्धाभाव और विदाई का क्षण होता है।
बंगाल और पूर्वी भारत के क्षेत्रों में विवाहित स्त्रियाँ देवी की प्रतिमा को सिंदूर अर्पित करती हैं और स्वयं पर भी लगाती हैं। लाल-वस्त्रों और सिंदूर से सजी यह परंपरा स्त्री शक्ति, सौभाग्य, दाम्पत्य सुख और समृद्धि का प्रतीक है।
अंतिम पूजा के बाद देवी की आरती की जाती है जिसमें शंख, घंटे, ढाक और भक्ति-गीतों से वातावरण गूंज उठता है। तत्पश्चात माँ की प्रतिमा भव्य शोभायात्रा के साथ विदाई के लिए निकाली जाती है। शहर की गलियाँ भक्ति और उत्सव के रंगों से भर जाती हैं।
यात्रा पूर्ण होने पर प्रतिमा को नदी, तालाब या समुद्र में विसर्जित किया जाता है। यह न केवल देवी के कैलाश पर्वत लौटने का प्रतीक है बल्कि जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के अनन्त चक्र का दार्शनिक संदेश भी देता है। देवी को विदाई देते हुए भक्त अगले वर्ष उनके पुनः आगमन की प्रतिज्ञा का स्मरण करते हैं।
उत्तर भारत में दशहरा रामलीला के भव्य प्रदर्शन द्वारा जीवंत होता है। इसमें भगवान राम के वनवास से लेकर रावण-वध तक की कथा नाट्यशैली में प्रस्तुत की जाती है। यह केवल मनोरंजन नहीं बल्कि धर्मपालन और आदर्श जीवन की शिक्षा देने वाला आयोजन होता है।
उत्तर और पश्चिम भारत के अधिकांश क्षेत्रों में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के विशाल पुतले जलाए जाते हैं। पटाखों और आतिशबाजी बीच उनका दहन दम्भ, पाप और अधर्म के नाश का सशक्त प्रतीक है।
दक्षिण भारत में विजयादशमी आयुध पूजन से जुड़ा रहता है। इस दिन किसान अपने हल, कारीगर अपने औजार, व्यापारी अपनी खाता-बही और विद्यार्थी अपनी पुस्तकें पूजते हैं। यह कृतज्ञता और साधन-पूजन का अनन्य उदाहरण है।
पूर्वी भारत में दशहरा दुर्गा विसर्जन के बिना अधूरा है। माँ की अद्भुत शोभायात्राएँ और उनका जल में विलय भक्तों को आँसुओं से भरी विदाई के साथ अगले आगमन की आशा भी देता है।
इस वर्ष 2 अक्टूबर को प्रातःकाल दुर्गा विसर्जन का मोहक दृश्य होगा और अपराह्न में दशहरे का विजय मुहूर्त रहेगा। यह संगम इस दिन की आध्यात्मिक महत्ता को और भी गहन बना देगा। भक्त सुबह माँ को विदाई देंगे और संध्या को रावण के पुतलों का दहन देखेंगे। यह दिन भारत की विविध परंपराओं को एक ही सूत्र में पिरोते हुए यह शाश्वत संदेश देगा:
"सत्य, धर्म और प्रकाश की विजय अवश्य होती है, चाहे अंधकार कितना भी प्रबल क्यों न प्रतीत हो।"
प्रश्न 1: दुर्गा विसर्जन 2025 किस दिन होगा?
उत्तर: गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025 को।
प्रश्न 2: दशहरा 2025 का विजय मुहूर्त कब है?
उत्तर: 2 अक्टूबर 2025 को अपराह्न 2:27 से 3:15 तक।
प्रश्न 3: दुर्गा विसर्जन का श्रेष्ठ समय क्या है?
उत्तर: प्रातः 6:10 से 8:35 तक का समय उत्तम है।
प्रश्न 4: सिंदूर खेला किस क्षेत्र में विशेष रूप से प्रचलित है?
उत्तर: यह बंगाल और पूर्वी भारत में विशेष रूप से मनाया जाता है।
प्रश्न 5: दशहरा में रावण दहन का प्रतीकात्मक महत्व क्या है?
उत्तर: यह अहंकार, दंभ और अधर्म के विनाश का प्रतीक है।
अनुभव: 15
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इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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