By पं. संजीव शर्मा
लक्ष्मी-गणेश पूजन और दीपोत्सव का आध्यात्मिक संगम
भारतीय संस्कृति में दीपावली या दीवाली केवल एक पर्व नहीं बल्कि सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक मूल्यों का अनूठा संगम है। इस पर्व को प्रकाश का त्योहार कहा जाता है क्योंकि यह अंधकार को दूर कर प्रकाश के आगमन की प्रतीक है। यह पर्व हर वर्ष आनंद, उत्साह और धार्मिक श्रद्धा का वातावरण निर्मित करता है। घरों में दीपक प्रज्वलित किये जाते हैं, देवताओं की पूजा होती है, स्वादिष्ट पकवान बनते हैं और परिजनों, मित्रों में उपहार तथा प्रसन्नता का आदान-प्रदान होता है। विशेष रूप से इस पर्व में भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की उपासना का विधान है जिनकी कृपा से जीवन में ऐश्वर्य, सुख और समृद्धि आती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार अमावस्या तिथि होने पर ही दीपावली मनाई जाती है। 2025 की कार्तिक अमावस्या तिथि 20 अक्टूबर को प्रातः 03 बजकर 44 मिनट से प्रारंभ होगी और 21 अक्टूबर को प्रातः 05 बजकर 54 मिनट तक रहेगी। पंचांग और ज्योतिषीय गणनाओं के सम्यक विश्लेषण से यह सुनिश्चित हुआ है कि दीपावली सोमवार, 20 अक्टूबर 2025 को मनाई जाएगी।
दीपावली केवल दीप प्रज्वलन का पर्व नहीं है। यह आत्मिक शुद्धि, सकारात्मकता और धार्मिक मूल्यों को जीवन में उतारने का अवसर भी है।
विधि-विधान से किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पूर्व भगवान गणेश की उपासना की जाती है। दीपावली पर यह आस्था और भी गहन होती है। पूजन के आरंभ में गणेश पूजन करने से सभी कार्यों में अवरोध दूर होते हैं और जीवन सुचारु रूप से आगे बढ़ता है।
दीपावली के समय देवी लक्ष्मी घर-घर में भ्रमण करती हैं। मान्यता है कि स्वच्छ, सुंदर और ज्योतियों से आलोकित घरों में लक्ष्मी का स्थायी वास होता है। इसी कारण लोग इस दिन घर को स्वच्छ करते हैं, रंगोली बनाते हैं और दीप प्रज्वलित करते हैं ताकि देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो। उनकी पूजा से धन, सुख-संपन्नता और आध्यात्मिक उन्नति का आशीर्वाद मिलता है।
मिट्टी के दीपक केवल प्रकाश देने तक सीमित नहीं हैं बल्कि वे ज्ञान, आस्था और आत्म जागरण का प्रतीक हैं। प्रत्येक दीपक अज्ञान के अंधेरे को दूर करता है और आत्मा में दिव्य प्रकाश भरता है। चारों ओर प्रदीप्त दीपावली की रात यह संदेश देती है कि धर्म की ज्योति से पाप और अंधकार का अंत संभव है।
दीपावली पूजन को सफल बनाने के लिए विभिन्न विशेष सामग्रियों की आवश्यकता होती है जो न केवल धार्मिक बल्कि आध्यात्मिक प्रतीक भी हैं।
सामग्री का नाम | महत्व और प्रतीक |
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गणेश-लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र | पूजन के मुख्य केंद्र, श्रद्धा और उपासना का आधार |
लाल वस्त्र | पूजा चौकी पर बिछाने हेतु, पवित्रता और शक्ति का प्रतीक |
पंचामृत | दूध, दही, घी, शहद और चीनी से निर्मित, देव स्नान और शुद्धिकरण हेतु |
गंगाजल | स्थल और सामग्री की पवित्रता हेतु |
हल्दी, कुमकुम और अक्षत | मंगल संकेत और आराधना का अभिन्न अंग |
धूप, अगरबत्ती और इत्र | देव प्रसन्नता और सुगंधित वातावरण हेतु |
पुष्प और मालाएँ | देवताओं को अर्पण और स्वागत के प्रतीक |
सुपारी, लौंग, इलायची, मेवे, गुड़, नारियल | समृद्धि और आभार के प्रतीक |
चाँदी के सिक्के | धन और महत्व का प्रतीक |
दीपक और सरसों का तेल/घी | अंधकार को दूर करने और धृति का प्रतीक |
कलश | पूर्णता और ब्रह्माण्ड के प्रतीक स्वरूप |
1.प्रातः तैयारी
प्रातःकाल स्नान कर घर की संपूर्ण साफ-सफाई करना। घर को शुद्ध और उज्ज्वल बनाना ताकि देवी लक्ष्मी का आगमन हो। पूजा स्थान को गंगाजल से पवित्र करना।
2.पूजा चौकी की स्थापना
पूजा स्थल पर लाल अथवा पीला वस्त्र बिछाकर उस पर अक्षत का आसन बनाना। उस पर गणेश-लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित कर उन्हें पुष्पमाला और आभूषणों से सजाना।
3.दीप प्रज्वलन और अखंड दीपक
चावल के ढेर पर एक बड़ा दीपक रखकर उसे अखंड दीपक के रूप में प्रज्वलित करना। यह दीपक पूरी रात्रि जलता रहे और अंधकार निवारण का संदेश दे।
4.कलश स्थापना
एक जलपूर्ण कलश में चाँदी का सिक्का, सुपारी, हल्दी डालकर उसके ऊपर आम्रपल्लव और नारियल रखना। यह कलश ब्रह्मांडीय ऊर्जा और जीवन का प्रतीक है।
5.पूजन और अर्पण
प्रतिमाओं का तिलक कर पुष्प, नैवेद्य और फल अर्पित करना। मंत्रोच्चार और भजन गाकर गणेश जी से विघ्ननाश की और देवी लक्ष्मी से ऐश्वर्य और सुख की प्रार्थना करना।
6.आरती और क्षमा प्रार्थना
दीपमालिकाओं से आरती करना और अंत में पूजन में हुई त्रुटियों के लिए क्षमा याचना करना। इसके पश्चात घर में सभी दीपक जलाना।
7.रात्रि की सज्जा और उत्सव
आँगन, खिड़कियों और छत पर दीयों की पंक्ति सजाकर घर को आलोकित करना। मिठाइयाँ बाँटना और परिजनों के साथ हर्षोल्लास करना।
दीपावली आस्था, प्रेम और आत्म-ज्योति का पर्व है। प्रत्येक दीपक हमें यह स्मरण कराता है कि कठिनाइयों और अज्ञान के अंधकार को दूर करके ही जीवन का वास्तविक उन्नयन संभव है। यह पर्व आत्मचिंतन और आत्मनवीनीकरण का अवसर प्रदान करता है। दीपावली का उत्सव केवल भौतिक आनंद नहीं बल्कि आत्मिक समृद्धि का प्रतीक है।
दीपावली 2025 का यह पर्व केवल रोशनी का ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक जागरण का भी अवसर बने। इस दिन जब दीपक घरों को रोशन करें तो वह हृदय और आत्मा को भी प्रकाशमान करें। यह पर्व हमें सिखाता है कि सत्य की ज्योति और धर्म का प्रकाश सदा अंधकार और अधर्म को नष्ट करता है।
1.दीवाली 2025 कब मनाई जाएगी?
2.देवी लक्ष्मी पूजन का सबसे शुभ समय कौन सा है?
3.इस दिन किस देवता की पूजा की जाती है?
4.पूजन में किन सामग्रियों का महत्व है?
5.दीवाली का मुख्य संदेश क्या है?
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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