By पं. सुव्रत शर्मा
इस माह पड़ रही हैं दो पुण्यदायी एकादशियां-पुत्रदा और अजा एकादशी। जानें तिथियां, पारण का समय, और व्रत का महत्व।
जब मन की नदियां संसार के कोलाहल से थककर शांत हो जाती हैं, तब आस्था का एक छोटा सा दीया आत्मा के मार्ग को आलोकित कर देता है। हिंदू पंचांग में हर ग्यारहवीं तिथि (एकादशी) एक ऐसा ही अवसर है, जब व्रत और उपासना के माध्यम से भक्त अपनी आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का प्रयास करते हैं। यह केवल एक उपवास नहीं, बल्कि आत्म-संयम, शुद्धि और श्रीहरि विष्णु की कृपा प्राप्त करने का एक पवित्र अनुष्ठान है।
यह दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए समर्पित है। जो भक्त पूर्ण श्रद्धा और नियमों का पालन करते हुए एकादशी का व्रत करते हैं, उनके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। अगस्त 2025 का महीना इस दृष्टि से अत्यंत विशेष है, क्योंकि इस माह दो अत्यंत पुण्यदायी एकादशियां-पुत्रदा एकादशी और अजा एकादशी-पड़ रही हैं। आइए, इन पवित्र तिथियों, उनके शुभ मुहूर्त और व्रत के विधान को विस्तार से जानें।
व्रत का नाम | व्रत की तिथि | एकादशी तिथि का समय | पारण (व्रत खोलने का) समय |
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श्रावण पुत्रदा एकादशी | मंगलवार, 5 अगस्त 2025 |
प्रारंभ: 4 अगस्त, सुबह 11:41 बजे से समाप्त: 5 अगस्त, दोपहर 01:12 बजे तक | 6 अगस्त, सूर्योदय के पश्चात् |
अजा एकादशी | मंगलवार, 19 अगस्त 2025 |
प्रारंभ: 18 अगस्त, शाम 05:22 बजे से समाप्त: 19 अगस्त, दोपहर 03:32 बजे तक | 20 अगस्त, सूर्योदय के पश्चात् |
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली यह एकादशी अपने नाम के अनुरूप ही फल देने वाली मानी जाती है। जिन दंपतियों को संतान प्राप्ति की अभिलाषा है, उनके लिए यह व्रत किसी वरदान से कम नहीं है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पूरी श्रद्धा से भगवान विष्णु की आराधना करने और व्रत रखने से सुयोग्य एवं स्वस्थ संतान की प्राप्ति होती है और परिवार में सौभाग्य का आगमन होता है। इस वर्ष पुत्रदा एकादशी पर रवि योग और भद्रवास योग का निर्माण हो रहा है, जो इस दिन की शुभता को और भी बढ़ा देते हैं। ये योग पूजा-पाठ और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत फलदायी माने जाते हैं।
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली इस एकादशी को ‘अन्नदा एकादशी’ के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में इसका महत्व बताते हुए कहा गया है कि यह व्रत व्यक्ति को उसके पूर्व जन्मों और इस जन्म के ज्ञात-अज्ञात पापों से मुक्ति दिलाता है। यह व्रत आत्मा की शुद्धि का एक सशक्त माध्यम है। जो भी भक्त इस दिन निष्ठापूर्वक व्रत और पूजन करते हैं, वे न केवल सांसारिक बंधनों से मुक्त होते हैं, बल्कि मोक्ष की ओर अग्रसर होते हैं।
एकादशी का व्रत केवल भौतिक इच्छाओं की पूर्ति का साधन नहीं, बल्कि यह आत्मिक और मानसिक शुद्धि का एक महापर्व है। इस दिन उपवास रखने से शरीर के विषैले तत्व बाहर निकलते हैं और मन सात्विक विचारों से भर जाता है। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की संयुक्त कृपा से व्रती के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का प्रवाह होता है। यह तिथि हमें सांसारिक भागदौड़ से निकालकर आत्म-चिंतन और ईश्वर से जुड़ने का एक दिव्य अवसर प्रदान करती है।
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