By पं. संजीव शर्मा
अन्नकूट उत्सव का आध्यात्मिक महत्व और पूजन विधि
गोवर्धन पूजन जिसे अन्नकूट उत्सव भी कहा जाता है, दीपावली के अगले दिन पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह पर्व दीपावली की आनंदमयी भावना को आगे बढ़ाता है और उस दैवीय घटना का स्मरण कराता है जब श्रीकृष्ण ने इन्द्रदेव द्वारा बरसाए गए प्रलयंकारी जलवृष्टि से वृंदावनवासियों की रक्षा हेतु गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर धारण किया था। यह उत्सव कृतज्ञता, भक्ति, प्रकृति के प्रति श्रद्धा, विनम्रता और सामुदायिक एकता जैसे गहन संदेशों को जीवंत करता है, इसीलिए इसे हिन्दू पंचांग के सबसे आध्यात्मिक पर्वों में गिना जाता है।
प्राचीन काल में गोकुलवासी समय पर वर्षा और भरपूर फसल प्राप्ति की आशा में इन्द्रदेव की पूजा करते थे। किंतु बाल्यावस्था में ही भगवान श्रीकृष्ण ने यह समझाया कि सच्ची श्रद्धा का केंद्र इन्द्र नहीं बल्कि स्वयं प्रकृति है, जो गोवर्धन पर्वत के रूप में जीवन के लिए आवश्यक जल, चारा, निवास और अन्न प्रदान करती है।
गोकुलवासियों ने श्रीकृष्ण की प्रेरणा से गोवर्धन पूजन आरंभ किया। तभी क्रोधित होकर इन्द्र ने गोकुल पर भीषण वर्षा और तूफानी जलधारा का प्रकोप छोड़ा। उस भयावह घड़ी में श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर सम्पूर्ण गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सात दिन सात रात तक अपने ग्राम और गौधन को उसकी छाया में सुरक्षित रखा। इस समय में मनुष्य से लेकर पशु तक सभी निर्भीक होकर सुरक्षित रहे। जब इन्द्र ने यह चमत्कार देखा तो उन्होंने श्रीकृष्ण की सर्वोच्चता को स्वीकार किया और अपने अभिमान का त्याग किया।
यह कथा भगवान की करुणा, भक्तों की निष्ठा और मानव तथा प्रकृति के पारस्परिक संबंध का गहन प्रतीक है। गोवर्धन पूजन प्रतिवर्ष हमें ईश्वर की कृपा, प्रकृति के उपकार और विनम्र जीवनचर्या की महत्ता का स्मरण कराता है।
प्रातःकाल के इस शुभ मुहूर्त में सम्पन्न किया गया पूजन ब्रह्मांडीय शक्तियों के अनुरूप होता है और साधकों को दैवीय आशीर्वाद, पारिवारिक सौहार्द और गृहलक्ष्मी की कृपा प्रदान करता है।
गोवर्धन पूजन धर्म, कृतज्ञता और आध्यात्मिक चेतना के शाश्वत मूल्यों को प्रकाशित करता है।
इस दिन संपन्न की जाने वाली पूजा-विधि अत्यंत अर्थपूर्ण और व्यापक होती है।
भक्तजन विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भंडार तैयार करते हैं, प्रायः ५६ या इससे अधिक प्रकार के पकवानों का अर्पण किया जाता है। इनमें खिचड़ी, पूरी, मिठाइयाँ, दालें, सब्जियाँ और फल सम्मिलित होते हैं। इन व्यंजनों को पर्वत के समान सजाकर भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किया जाता है। यह जीवन के पोषण के लिए कृतज्ञता की अभिव्यक्ति है।
गोवर्धन पर्वत का miniature रूप गोबर, मिट्टी, धान या आटे से बनाया जाता है। इसे पुष्प, हल्दी-चावल, पत्तियों और गौ-प्रतिमाओं से सजाया जाता है। इसके समीप श्रीकृष्ण की प्रतिमा रखी जाती है और भक्तजन उसकी परिक्रमा कर मंत्रोच्चारण एवं स्तुति करते हैं।
दीप प्रज्वलित कर भगवान की आरती की जाती है, साथ ही कृष्ण भक्ति के गीत गाए जाते हैं। यह विधि अंधकार का नाश और आलोक का आह्वान करती है।
भगवान कृष्ण को गोपाल मानते हुए गायों का पूजन किया जाता है। उन्हें स्नान कराकर हल्दी-कुमकुम और पुष्पमालाओं से सजाया जाता है तथा घास, फल और चारे का नैवेद्य अर्पित किया जाता है। यह संस्कार जीवन, समृद्धि और प्रकृति के पोषण का प्रतीक है।
रंग-बिरंगे रंगोलियों, पुष्पवर्षा और दीपों से घरों व पूजा स्थलों को सजाया जाता है। दीपक प्रकाशित कर वातावरण में आध्यात्मिकता और सौंदर्य का संचार किया जाता है।
पूजा के समय अर्पित पकवान और प्रसाद परिवार और समाज के बीच वितरित किए जाते हैं। यह सामूहिक सहयोग और आनंद का प्रतीक है।
गोवर्धन पूजन और अन्नकूट परंपराएँ स्थान-स्थान पर विभिन्न रूपों में प्रचलित हैं।
बुधवार, २२ अक्टूबर २०२५ को मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजन केवल एक त्योहार नहीं बल्कि श्रद्धा, कृतज्ञता, साझेदारी और पर्यावरणीय संवेदनशीलता की जीवंत प्रेरणा है। प्रातःकाल के शुभ मुहूर्त में सम्पन्न यह पूजन केवल आध्यात्मिक उन्नति ही नहीं देता बल्कि समुदाय को जोड़ने और करुणा व प्रेम का भाव उत्पन्न करने का माध्यम है।
यह उत्सव हमें प्रकृति के प्रति संतुलित दृष्टिकोण, धार्मिक श्रद्धा और विनम्र जीवनशैली अपनाने की प्रेरणा देता है, जिससे मानव जीवन का प्रत्येक पहलू आलोकित और संतुलित बन सके।
प्रश्न १. वर्ष २०२५ में गोवर्धन पूजन कब होगा?
उत्तर: गोवर्धन पूजन बुधवार, २२ अक्टूबर २०२५ को सम्पन्न होगा।
प्रश्न २. पूजन के लिए सबसे शुभ समय कौन सा है?
उत्तर: प्रातः ६:१५ से ८:४२ बजे तक का समय शुभ मुहूर्त है, इस समय पूजा करने से सर्वोत्तम फल प्राप्त होता है।
प्रश्न ३. अन्नकूट बनाने का क्या महत्व है?
उत्तर: अन्नकूट विभिन्न व्यंजनों की अर्पण परंपरा है जो प्रकृति और अन्नदाता के प्रति आभार स्वरूप है। यह दानशीलता और संपन्नता का प्रतीक है।
प्रश्न ४. गोपूजन क्यों किया जाता है?
उत्तर: गायों का पूजन भगवान कृष्ण के गोपाल स्वरूप को स्मरण कर किया जाता है। इससे समृद्धि, धर्म और पोषण का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
प्रश्न ५. विभिन्न क्षेत्रों में इस पर्व के आयोजन में क्या अंतर है?
उत्तर: मथुरा वृंदावन में पर्वत परिक्रमा होती है, गुजरात में इसे नववर्ष के साथ मनाया जाता है, राजस्थान में अन्नकूट भोज प्रमुख होता है, महाराष्ट्र में बली प्रतिपदा और अन्य राज्यों में गोपूजन की परंपराएँ प्रमुख रहती हैं।
अनुभव: 15
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इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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