By पं. संजीव शर्मा
कार्तिक अमावस्या पर लक्ष्मी पूजन का महत्व और उपाय
कार्तिक मास की अमावस्या को होने वाला लक्ष्मी पूजन दीपावली महोत्सव का सर्वाधिक प्रमुख और पवित्र अंग माना जाता है। यह दिन केवल भौतिक ऐश्वर्य की प्राप्ति का साधन नहीं है बल्कि गहन आध्यात्मिक अनुभव, पारिवारिक सामंजस्य और समग्र कल्याण का माध्यम भी है। वर्ष २०२५ में लक्ष्मी पूजन सोमवार, २० अक्टूबर को संपन्न होगा। अमावस्या और सोमवार का यह विशेष योग अपनी दिव्यता और फलप्रदता के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन लक्ष्मी माता, जो धन, समृद्धि और सौभाग्य की अधिष्ठात्री देवी हैं और विघ्नविनाशक श्री गणेश, जो शुभारंभ और सफलता के दाता हैं, की आराधना की जाती है। इस पूजन के माध्यम से घरों, व्यापार और जीवन के सभी क्षेत्रों में स्थायी सुख, शांति और संपन्नता का आमंत्रण किया जाता है।
वर्ष २०२५ में प्रदोष काल सायं ६ बजकर ४८ मिनट से रात ८ बजकर २० मिनट तक रहेगा। इस अवधि को लक्ष्मी पूजन के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। मान्यता है कि प्रदोष काल में देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और जिस घर में स्वच्छता, अनुशासन और दीपों का उजाला होता है, वहाँ उनकी कृपा स्वतः ही प्राप्त होती है। कहा जाता है कि इस काल में किया गया पूजन केवल तात्कालिक सुख ही नहीं देता बल्कि जीवनभर की आर्थिक स्थिरता और परिवार में सौभाग्य के द्वार खोलता है। इस समय में ध्यानपूर्वक किए गए प्रत्येक मंत्र, प्रत्येक दीप और प्रत्येक अर्पण से देवी की कृपा की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
महानिशीथ काल रात्रि का वह विशेष गहन समय है, जब ब्रह्मांडीय शक्तियाँ स्थिर और गहन रूप से जाग्रत मानी जाती हैं। इस समय की साधना सामान्य उपासना से कहीं अधिक गहन फल प्रदान करती है। इस काल में लक्ष्मी पूजन करने से साधक की मानसिक एकाग्रता बढ़ती है, आध्यात्मिक अनुभव गहरे होते हैं और देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद जीवन को पूर्णतया बदल सकता है। अनेक साधकों और संतों ने इस काल में सम्पन्न साधना को असाधारण सफल और फलदायी बताया है। विशेषकर २०२५ की सोमवारी अमावस्या के अवसर पर यह काल और भी प्रखर फल देने वाला होगा।
लक्ष्मी पूजन को केवल एक परंपरा या लोकाचार मानना उसके गूढ़ महत्व को समझना नहीं है। यह उपासना जीवन में संतुलन, सामंजस्य और सकारात्मक उर्जा के प्रसार का आधार है। दीपावली की अमावस्या की अंधकारमय रात्रि में जब घर-घर दीपक प्रज्वलित किए जाते हैं तब यह केवल भौतिक प्रकाश का ही नहीं बल्कि अंतर्मन के अंधकार को दूर करने और आत्मा में आशा का संचार करने का भी प्रतीक होता है। पूजन के परिणाम विविध स्तरों पर अनुभव होते हैं।
वर्ष २०२५ में सोमवारी अमावस्या पर लक्ष्मी पूजन का फल कई गुना माना गया है। सोमवार भगवान शिव का दिन है और शिव के आशीर्वाद के साथ लक्ष्मी पूजन करना साधक को दोहरी दिव्यता और सुरक्षा प्रदान करेगा।
लक्ष्मी पूजन से पूर्व घर और मन को सज्जित करना अनिवार्य है। हिन्दू शास्त्र कहते हैं कि लक्ष्मी जी केवल उन घरों में प्रवेश करती हैं जो शुद्ध, सुव्यवस्थित और आलोकित होते हैं।
प्रत्येक सामग्री अपनी विशिष्ट भूमिका निभाती है और देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति में सहायक होती है।
पूजा से पूर्व प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं। घर और पूजा स्थल को गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया जाता है। यह चरण वातावरण को देवी के आगमन के योग्य बनाता है।
चौकी पर जल से भरा कलश रखा जाता है। इसके ऊपर आम की पत्तियाँ और नारियल रखा जाता है। यह संपूर्ण ब्रह्मांडीय शक्तियों का प्रतीक है और देवी लक्ष्मी का आवाहन माना जाता है।
प्रथमतः गणेश जी का पूजन कर सभी विघ्नों को दूर करने की प्रार्थना की जाती है। बिना गणेश पूजन के कोई भी कार्य पूर्ण फलदायी नहीं माना जाता।
इसके पश्चात् लक्ष्मी जी का पूजन पुष्प, धूप, अक्षत, कुमकुम, मिठाई, फल, मुद्राओं और मंत्रोच्चारण के साथ किया जाता है। यह चरण मां लक्ष्मी की कृपा को आमंत्रित करता है।
दीप जलाकर लक्ष्मी और गणेश की आरती की जाती है, साथ ही घंटानाद और मंगल गीतों से वातावरण को दैवीय बनाया जाता है। यह देवी का स्वागत करने का सबसे महत्वपूर्ण चरण है।
पूजन के बाद प्रसाद को परिवार, पड़ोसियों और आगंतुकों में वितरित किया जाता है। यह दैवीय आशीर्वाद को साझा करने और सामाजिक समरसता बढ़ाने का प्रतीक है।
लक्ष्मी पूजन २०२५ का अवसर केवल एक अलंकारिक परंपरा नहीं है, यह प्रत्येक साधक के जीवन को प्रकाशित करने का एक विशेष अवसर है। प्रदोष काल अर्थात् शाम ६:४८ से ८:२० तक तथा महानिशीथ काल में किया गया विधिवत पूजन साधक को देवी लक्ष्मी की कृपा से सम्पन्न करता है। दीपावली की रात्रि को प्रज्वलित दीपक केवल बाहरी वातावरण को ही आलोकित नहीं करते बल्कि साधक के अंतर्मन को भी ज्योतिर्मय बनाते हैं। यह पूजा जीवन को समृद्धि, संतोष और शांति से परिपूर्ण करने का माध्यम है।
प्रश्न १. वर्ष २०२५ में लक्ष्मी पूजन किस दिन है?
उत्तर: सोमवार, २० अक्टूबर २०२५ को कार्तिक मास की अमावस्या है और इसी दिन लक्ष्मी पूजन सम्पन्न होगा। यह दिन सोमवारी अमावस्या होने के कारण विशेष रूप से शुभ है।
प्रश्न २. सबसे उपयुक्त पूजन का समय कौन सा है?
उत्तर: संध्या का प्रदोष काल सबसे श्रेष्ठ है, जो इस वर्ष ६ बजकर ४८ मिनट से ८ बजकर २० मिनट तक रहेगा। इस समय को देवी लक्ष्मी के पृथ्वी लोक में भ्रमण का काल माना गया है।
प्रश्न ३. लक्ष्मी पूजन की प्रमुख सामग्री कौन सी हैं?
उत्तर: मुख्य सामग्री में माँ लक्ष्मी और गणेश की प्रतिमा, कलश, गंगाजल, पंचामृत, पुष्प, धूप-दिया, सिक्के, फल, मिठाई और लाल वस्त्र सम्मिलित हैं। यह सभी सामग्री अपनी विशेष प्रतीकात्मक भूमिका निभाती है।
प्रश्न ४. लक्ष्मी पूजन से कौन-कौन से लाभ सिद्ध होते हैं?
उत्तर: इस पूजन द्वारा आर्थिक संपन्नता, परिवार में आपसी प्रेम, मानसिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा का संचार और नकारात्मक प्रभावों से रक्षा प्राप्त होती है।
प्रश्न ५. क्या सोमवार को पड़ने वाला लक्ष्मी पूजन अतिरिक्त महत्व रखता है?
उत्तर: हाँ, सोमवार भगवान शिव को समर्पित दिन है और शिव की कृपा से लक्ष्मी पूजन का फल और भी अधिक होता है। इस संगम के कारण पूजा विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
इस लेख को परिवार और मित्रों के साथ साझा करें