By अपर्णा पाटनी
जानें 24 अगस्त को व्रत की सही तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और भगवान बलराम से जुड़ी पावन कथा।
जब धरती अपनी सौंधी सुगंध से प्रकृति को महकाती है और एक माँ का हृदय अपनी संतान के लिए प्रार्थना में लीन होता है, तब आता है हल षष्ठी का पावन पर्व। इसे ललही छठ या चंदन छठ भी कहते हैं, और यह पर्व केवल एक व्रत नहीं, बल्कि धरती के पुत्र, भगवान बलराम के प्रति श्रद्धा और मातृत्व के अटूट समर्पण का उत्सव है। भगवान बलराम का मुख्य शस्त्र 'हल' है, जो कृषि और सम्पन्नता का प्रतीक है। उन्हीं के नाम पर यह पर्व हमें याद दिलाता है कि एक माँ का प्रेम भी धरती की तरह ही उर्वर और जीवनदायी होता है, जो अपनी संतान को हर विपत्ति से बचाता है।
हर वर्ष भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हल छठ का व्रत रखा जाता है। इस वर्ष तिथि को लेकर कुछ संशय की स्थिति है, जिसे पंचांग के अनुसार समझना आवश्यक है:
हल षष्ठी की पूजा दोपहर के समय करने का विधान है। पंचांग के अनुसार, षष्ठी तिथि 24 अगस्त को दोपहर में आरंभ हो रही है, जो पूजा के लिए उपयुक्त समय है। यद्यपि उदयातिथि 25 अगस्त को है, लेकिन उस दिन षष्ठी तिथि सुबह 10:11 बजे ही समाप्त हो जाएगी। इसलिए, जो व्रती महिलाएं दोपहर में पूजन करती हैं, उनके लिए 24 अगस्त 2024, शनिवार का दिन शास्त्रसम्मत और श्रेष्ठ रहेगा।
विवरण | तिथि और समय |
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षष्ठी तिथि प्रारंभ | 24 अगस्त 2024, दोपहर 12:30 बजे |
षष्ठी तिथि समाप्त | 25 अगस्त 2024, सुबह 10:11 बजे |
व्रत और पूजन की श्रेष्ठ तिथि | 24 अगस्त 2024, शनिवार |
इस व्रत का सबसे बड़ा महत्व संतान की सुरक्षा और दीर्घायु से जुड़ा है। यह व्रत रखने वाली माताओं की संतान को भगवान बलराम का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे वे रोग, भय और सभी प्रकार के अनिष्टों से सुरक्षित रहते हैं। यह व्रत न केवल संतान की रक्षा करता है, बल्कि घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का भी संचार करता है।
इस दिन की पूजा प्रकृति से गहराई से जुड़ी होती है और इसके नियम भी विशेष होते हैं:
इस व्रत से जुड़ी दो कथाएं प्रचलित हैं जो इसके महत्व को दर्शाती हैं:
एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी के जन्म से पूर्व, उनकी माता रोहिणी ने उनकी सुरक्षा और कल्याण के लिए यह व्रत रखा था। इसी व्रत के प्रभाव से बलराम जी को अपार बल, शक्ति और लंबी आयु का वरदान प्राप्त हुआ।
एक अन्य कथा बहुत मार्मिक और शिक्षाप्रद है। एक ग्वालिन थी जो दूध-दही बेचकर अपना गुजारा करती थी। एक बार जब वह गर्भवती थी, तो दूध बेचने जाते समय उसे रास्ते में ही प्रसव पीड़ा होने लगी। उसने एक झरबेरी के पेड़ के नीचे एक पुत्र को जन्म दिया। उसे दूध खराब होने की चिंता सता रही थी, इसलिए वह अपने नवजात पुत्र को पेड़ के नीचे सुलाकर पास के गांव में दूध बेचने चली गई।
उस दिन हल छठ का व्रत था और सभी को भैंस का दूध चाहिए था। लेकिन ग्वालिन ने लालच में आकर गाय के दूध को भैंस का बताकर बेच दिया। उसके इस झूठ से छठ माता अत्यंत क्रोधित हुईं और उन्होंने उसके पुत्र के प्राण हर लिए। जब ग्वालिन लौटकर आई और अपने पुत्र को मृत पाया, तो वह फूट-फूटकर रोने लगी। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने सभी के सामने अपना अपराध स्वीकार किया और छठ माता से क्षमा मांगी। उसकी सच्ची पश्चाताप से छठ माता प्रसन्न हुईं और उसके पुत्र को फिर से जीवित कर दिया। तभी से यह व्रत पुत्रों की लंबी आयु की कामना के लिए पूरी श्रद्धा से किया जाता है।
हल षष्ठी का यह पर्व हमें सिखाता है कि एक माँ की प्रार्थना में असीम शक्ति होती है। यह व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति, ईमानदारी और मातृत्व के प्रति सम्मान का प्रतीक है। इस दिन की गई पूजा और सच्ची श्रद्धा से रखा गया व्रत संतान के जीवन में एक सुरक्षा कवच का काम करता है और उसे हर संकट से बचाता है।
अनुभव: 15
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इनके क्लाइंट: म.प्र., दि.
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