By पं. नरेंद्र शर्मा
जानिए रथ यात्रा की तिथि, पौराणिक कथा, रथ निर्माण की प्रक्रिया और ज्योतिषीय महत्व
जगन्नाथ रथ यात्रा भारत के सबसे भव्य, प्राचीन और आध्यात्मिक पर्वों में से एक है, जो हर वर्ष ओडिशा के पुरी नगर में आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि को आयोजित होती है। यह यात्रा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सांस्कृतिक एकता, भक्ति और मोक्ष के मार्ग का भी अद्भुत संगम है। 2025 में यह यात्रा 27 जून से शुरू होकर 5 जुलाई तक चलेगी, जिसमें लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से भाग लेंगे।
पुरी का श्री जगन्नाथ धाम हिंदू धर्म के चार धामों में से एक है, जिसे धरती का वैकुंठ भी कहा गया है। रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा तीन विशाल लकड़ी के रथों में विराजमान होकर मुख्य मंदिर से गुंडिचा मंदिर (मौसी का घर) तक यात्रा करते हैं। यह यात्रा आत्मा के परम लक्ष्य-मोक्ष-की ओर बढ़ने का प्रतीक मानी जाती है। मान्यता है कि इस यात्रा में भाग लेने, रथ को छूने या खींचने से पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-शांति, समृद्धि तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।
रथ यात्रा की कथा अत्यंत भावपूर्ण और गहन है। कहा जाता है कि एक बार भगवान श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा ने पुरी नगर के दर्शन की इच्छा प्रकट की। उनकी इच्छा पर भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) और बलभद्र ने उन्हें रथ पर बैठाकर नगर भ्रमण कराया। इसी घटना की स्मृति में हर वर्ष यह रथ यात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा का उल्लेख नारद पुराण, पद्म पुराण और स्कंद पुराण सहित कई शास्त्रों में मिलता है। एक अन्य कथा के अनुसार, पुरी के राजा इन्द्रद्युम्न को समुद्र किनारे एक दिव्य काष्ठ मिला, जिससे भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां निर्मित कीं। मूर्तियों का निर्माण अधूरा रह गया, लेकिन आकाशवाणी हुई कि भगवान इसी रूप में रहना चाहते हैं। तभी से इन काष्ठ मूर्तियों की स्थापना और रथ यात्रा की परंपरा चली आ रही है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि चंद्रमा की शुभता, उत्साह और समाज में समरसता का प्रतीक है। रथ यात्रा के दौरान ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति विशेष रूप से अनुकूल मानी जाती है, जिससे साधक को आध्यात्मिक ऊर्जा, मानसिक शांति और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। रथ यात्रा में भाग लेना या भगवान के रथ का स्पर्श करना ग्रहों के अशुभ प्रभाव को शांत करता है और जीवन में सकारात्मकता लाता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह भगवान की करुणा, समता और लोकमंगल का प्रतीक है। यह पर्व दर्शाता है कि भगवान अपने भक्तों के बीच स्वयं आते हैं, सबको एक समान दृष्टि से देखते हैं और किसी भी जाति, वर्ग या धर्म का भेद नहीं करते। यह यात्रा भक्ति, सेवा, समर्पण और सामाजिक एकता का सशक्त संदेश देती है।
जगन्नाथ रथ यात्रा 2025, आध्यात्मिकता, भक्ति और सांस्कृतिक गौरव का पर्व है। यह यात्रा न केवल मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है, बल्कि जीवन में आशा, विश्वास और सकारात्मकता का संचार भी करती है। रथ यात्रा में भाग लेकर, सेवा, दान और भक्ति से जीवन को पवित्र और सार्थक बनाएं। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के चरणों में श्रद्धा से समर्पित होकर यह पर्व मनाएं-यही जीवन की सच्ची सफलता और शांति का मार्ग है।
अनुभव: 32
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