By पं. सुव्रत शर्मा
इस माह पड़ रही है श्रावण शिवरात्रि। जानें सही तिथि, निशिता काल पूजा का शुभ मुहूर्त, शुभ योग और व्रत का महत्व।
जब ब्रह्मांड की ऊर्जा अपने केंद्र में सिमटती है और प्रकृति मौन होकर ध्यान में लीन हो जाती है, तब आती है कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि की वह दिव्य रात्रि। यह केवल एक तिथि नहीं, बल्कि भगवान शिव और आदिशक्ति मां पार्वती के मिलन का, उनके प्रेम और वैराग्य के एकाकार होने का महापर्व है-मासिक शिवरात्रि। यह रात्रि साधकों के लिए अपनी चेतना को शिव-तत्व से जोड़ने का एक अनमोल अवसर लेकर आती है।
धार्मिक मान्यता है कि इस दिन महादेव और मां पार्वती की भक्तिभाव से की गई उपासना साधक के जीवन में सुख, सौभाग्य और समृद्धि का संचार करती है। विवाहित स्त्रियों को अखंड सौभाग्य का वरदान मिलता है, तो वहीं अविवाहित जातकों के जीवन में शीघ्र विवाह के मंगलकारी योग बनते हैं। आइए, श्रावण मास में पड़ने वाली इस पवित्र शिवरात्रि की सही तिथि, शुभ मुहूर्त और इस दिन बन रहे दिव्य योगों के विषय में विस्तार से जानते हैं।
पंचांग की गणना के अनुसार, भगवान शिव की आराधना के लिए सबसे महत्वपूर्ण समय निशिता काल (मध्यरात्रि) का होता है। अतः व्रत और पूजन उसी दिन किया जाता है, जिस रात्रि में चतुर्दशी तिथि और निशिता काल का संयोग होता है।
ज्योतिषीय गणना के अनुसार, इस वर्ष श्रावण मास की शिवरात्रि पर कई शुभ योगों का निर्माण हो रहा है, जो इस दिन के महत्व को कई गुना बढ़ा देते हैं।
मुहूर्त | समय |
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सूर्योदय | सुबह 05:53 बजे |
सूर्यास्त | शाम 06:54 बजे |
ब्रह्म मुहूर्त | सुबह 04:26 बजे से 05:10 बजे तक |
विजय मुहूर्त | दोपहर 02:34 बजे से 03:26 बजे तक |
गोधूलि मुहूर्त | शाम 06:54 बजे से 07:16 बजे तक |
प्रत्येक मास की शिवरात्रि भगवान शिव की कृपा पाने का अवसर होती है, परंतु श्रावण मास में पड़ने वाली शिवरात्रि का महत्व और भी बढ़ जाता है। श्रावण मास स्वयं महादेव को समर्पित है। इस पवित्र महीने में जब शिवरात्रि का पर्व आता है, तो मानो प्रकृति स्वयं शिव की भक्ति में डूब जाती है। इस दिन किया गया व्रत, जलाभिषेक और पूजन साधक की हर मनोकामना को पूर्ण करने की शक्ति रखता है। यह केवल एक उपवास नहीं, बल्कि अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर, अंतर्मन में स्थित शिव-तत्व को जागृत करने की एक आध्यात्मिक यात्रा है।
मासिक शिवरात्रि का व्रत हमें स्मरण कराता है कि जीवन में सुख और सौभाग्य का आधार शिव और शक्ति का संतुलन ही है। यह दिन केवल बाहरी अनुष्ठानों का नहीं, बल्कि आंतरिक समर्पण का भी है। इस पावन अवसर पर पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ महादेव और मां पार्वती का स्मरण करें, उनकी पूजा-अर्चना करें और अपने जीवन को उनकी दिव्य कृपा से कृतार्थ करें। महादेव की करुणा से साधक के सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में मंगल का उदय होता है।
अनुभव: 27
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