By पं. सुव्रत शर्मा
महाराष्ट्र से गोवा और ओडिशा तक, हर राज्य अपनी अनोखी परंपराओं से गणेश उत्सव को जीवंत करता है
गणेश चतुर्थी 2025 का पर्व बुधवार, 27 अगस्त 2025 को पूरे भारत में मनाया जाएगा। विघ्नहर्ता गणपति के स्वागत का यह उत्सव केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। हर राज्य अपनी विशिष्ट परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ इस पर्व को खास बनाता है, जिससे यह महोत्सव भारत की विविधता का अद्भुत दर्शन कराता है।
गणेश चतुर्थी का सबसे भव्य रूप महाराष्ट्र में देखने को मिलता है। मुंबई का लालबागचा राजा और पुणे का दगडुशेठ हलवाई गणपति लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। भक्त लंबी कतारों में खड़े होकर भजन, सांस्कृतिक कार्यक्रम और आरती में शामिल होते हैं। विसर्जन यात्रा के समय "गणपति बप्पा मोरया" के जयकारों से सड़कों का गूंजना भक्तों की असीम भक्ति को दर्शाता है।
गोवा में गणेश चतुर्थी को चावथ कहा जाता है। यहां परिवार मिट्टी की प्रतिमाएं स्वयं बनाते हैं, जिन्हें केले और पान के पत्तों से सजाया जाता है। खास मिठाइयों में नेउरी और मोदक प्रमुख रहते हैं। उत्सव का मुख्य आकर्षण होता है माटोली मंडप, जिसे मौसमी फलों और जड़ी-बूटियों से सजाया जाता है, जो प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करता है।
कर्नाटक में इस पर्व को विनायक चतुर्थी कहा जाता है। यहां लोकनृत्य, लोकसंगीत और विशेष रूप से पत्त्र पूजा (इक्कीस प्रकार की पत्तियों की पूजा) का विशेष महत्व है। मिठाइयों में कडुबू और शेंगदाणे लड्डू प्रसाद के रूप में बांटे जाते हैं। यह परंपरा स्थानीय लोक संस्कृति को जीवंत बनाए रखती है।
हैदराबाद और विजयवाड़ा जैसे शहरों में विशाल और थीम आधारित गणेश प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। विनायक निमज्जनम का नजारा यहां का मुख्य आकर्षण है। हुसैन सागर झील में प्रतिमाओं का विसर्जन लाखों भक्तों के लिए अविस्मरणीय अनुभव होता है।
तमिलनाडु में यह पर्व सादगी और श्रद्धा का परिचायक है। यहां घरों और मंदिरों में मिट्टी की प्रतिमाएं फूलों से सजाई जाती हैं। कोझुकट्टई (मोदक) का भोग लगाया जाता है। यह उत्सव अधिकतर पारिवारिक और आध्यात्मिक रूप से मनाया जाता है, जहां भक्ति की गहराई अधिक होती है।
हालांकि पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा का विशेष महत्व है, लेकिन धीरे-धीरे गणेश चतुर्थी भी लोकप्रिय हो रही है। कई घरों में गणेश और लक्ष्मी की संयुक्त पूजा की जाती है, जो समृद्धि और ज्ञान का प्रतीक मानी जाती है। बंगाल की कला-समृद्ध मूर्तियां इस पर्व को और भी खास बना देती हैं।
गुजरात में सामुदायिक पंडाल इस पर्व की जान होते हैं। यहां भजन, लोकनृत्य और नाटक का आयोजन होता है। मिठाईयों में मोतीचूर लड्डू गणेश जी को अर्पित किया जाता है। विसर्जन यात्रा संगीत और रंग-बिरंगी झांकियों से भरी होती है।
ओडिशा में गणेश पूजा का विशेष स्थान है। यहां विद्यालयों और महाविद्यालयों में गणेश पूजा होती है, जहां छात्र गणपति से ज्ञान और सफलता का आशीर्वाद मांगते हैं। यह परंपरा इस उत्सव को युवाओं से सीधे जोड़ती है।
यह पर्व बुधवार, 27 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा।
मुंबई और पुणे की विशाल प्रतिमाएं, भव्य पंडाल और विसर्जन यात्रा इस पर्व को अद्वितीय बनाते हैं।
यहां मिट्टी की प्रतिमाएं और माटोली मंडप परंपरा प्रमुख है, जो पर्यावरण मित्रता और प्रकृति से जुड़ाव को दर्शाती है।
इक्कीस पत्तियों की पूजा से विभिन्न देवताओं का आशीर्वाद माना जाता है और यह परंपरा लोक संस्कृति से जुड़ी है।
क्योंकि यहां छात्र और युवा वर्ग इसे विशेष रूप से शिक्षा और सफलता के लिए मनाते हैं।
अनुभव: 27
इनसे पूछें: विवाह, करियर, संपत्ति
इनके क्लाइंट: छ.ग., म.प्र., दि., ओडि
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