By पं. संजीव शर्मा
नवरात्रि-आध्यात्मिक साधना, दशहरा-विजय उत्सव, क्षेत्रीय विविधता और सामाजिक एकता
भारत में शरद ऋतु आते ही मंदिरों के घंटे, गरबा के ताल, रंग-रंगोली और आतिशबाज़ी के धमाके हर जगह गूंजने लगते हैं। नवरात्रि और दशहरा ये सिर्फ दो तारीखें या कैलेंडर की निशानी नहीं। ये आत्म-शुद्धि, भक्ति, याद और एकता भरे मौसम का दिल हैं, जहाँ लाखों लोग आंतरिक परिवर्तन और सार्वजनिक उल्लास का साझा अनुभव करते हैं। दोनों त्यौहार अपने-अपने उद्देश्य और भाव में अद्वितीय हैं नवरात्रि में आत्म-अनुशासन, साधना और माँ की कृपा की साधना है; दशहरा बाहरी उत्सव, सामूहिक नवीनीकरण और विजय का जश्न है।
‘नवरात्रि’ ‘नव’ (नौ), ‘रात्रि’ (रात) माँ दुर्गा और उनके नौ रूपों की उपासना का संगीत है। हर रूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री स्त्री शक्ति के भिन्न रंग हैं: मासूमियत, विवेक, साहस, क्रिएटिव ऊर्जा और आत्म-उन्नति। कथा के مرکز में दुर्गा-महिषासुर युद्ध है यह सिर्फ देवी की विजय नहीं बल्कि हर मानव के भीतर चल रहे धर्म-अधर्म, अहंकार-पुरुषार्थ और आत्मनिर्माण की भी कथा है।
क्षेत्र | प्रमुख परंपरा, रंग, सामाजिक गतिविधि |
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पश्चिम बंगाल, असम | अंतिम ५ दिन दुर्गा पूजा, पंडाल, नाट्य, विसर्जन |
उत्तर भारत | चैत्र/शारदीय नवरात्रि, मेले, मंदिर उत्सव, उपवास |
दक्षिण भारत | गोलू, सरस्वती पूजा, औजार पूजा, कथा |
नवरात्रि केवल बाहरी पर्व नहीं यह तमस (जड़ता) को छोङ, रजस (चंचलता) को साध कर, सात्त्विक ऊर्जा में आगे बढ़ने की प्रेरणा है। यह स्वयं, सामाजिकता, व नई शुरुआतों का उत्सव है।
दशहरे की कथाएँ दो बड़ी धाराओं में बहती हैं:
क्षेत्र | अनूठी विशेषता, परंपरा, सांस्कृतिक रंग |
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मैसूर (कर्नाटक) | रॉयल जुलूस, सजे-धजे हाथी, किले की रोशनी, हफ्तेभर उत्सव |
तमिलनाडु/आंध्र | गोलू समापन, सामाजिक विधि, सरस्वती और आयुध पूजा |
कुल्लू, हिमाचल | सप्ताहभर चलने वाला दशहरा, देवी-रथयात्रा, अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन |
दशहरा केवल कोई बाहरी तमाशा नहीं; यह जीवन में बैठे रावण क्रोध, गर्व, जलन, जड़ता को जलाने का, विजय-आरंभ का आह्वान है। यह बदलाव की शुरुआत का दिवस है।
पहलू | नवरात्रि | दशहरा (विजयदशमी) |
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अवधि | ९ रातें, १० दिन | १ दिन (नवरात्रि के बाद) |
मुख्य भाव | दुर्गा के ९ रूप; आंतरिक शुद्धि | राम/दुर्गा की विजय, बाहरी उत्सव |
अनुष्ठान | व्रत, भजन, गीत, गरबा/गोलू, पूजा | पुतला दहन, रामलीला, पूजा, विसर्जन |
क्षेत्रीयता | गरबा (गुजरात), गोलू (दक्षिण), दुर्गा पूजा (बंगाल) | मैसूर (जुलूस), कुल्लू (हफ्तार), उत्तर (रावण दहन) |
सामाजिकता | समुदाय नृत्य, भजन, मिलन | मेले, जुलूस, भोज और सामुहिकता |
प्रतीकवाद | शक्ति, रूपांतरण, नारी दिव्यता | धर्म, बुराई का अंत, नए कार्य का शुभारंभ |
नवरात्रि और दशहरा दो चरण हैं नवरात्रि साधना, आत्म-पुनर्जीवन; दशहरा उस साधना का विजय पर्व। उत्तर भारत में पूरी नवरात्रि से रामलीला, दशहरे को रावण दहन; बंगाल में दुर्गापूजा crescendo पर विजयदशमी को देवी-विदाई; दक्षिण में गोलू समापन। दोनों ही सिखाते हैं आत्मिक कसौटी से ही बाहरी जीत संभव है।
आज के भारत में
नवरात्रि-दशहरा इतिहास नहीं; वे हर साल आत्मशक्ति, साधना, बदलाव और नए आरंभ की पुकार हैं। इन पावन पर्वों की सीख है विजय तत्काल नहीं आती, पर सतत श्रम, श्रद्धा, साधना और देवी-कृपा से हर बाधा पर जीत निश्चित है।
"जय माता दी" और "जय श्री राम" के कदम-कदम पर, हर मिलन, हर आरती, हर उत्सव में उजाला ही उजाला!"
हाँ, दोनों का उद्देश्य, विधि, भाव अलग है पर दोनों अंतर्निहित रूप से जुड़े हैं।
व्रत आत्म-संयम का, पूजा आत्म-अनुभूति और माँ के रूपों की आराधना का माध्यम है।
ये बुराई के अंत, नई शुरुआत और विनम्रता-कर्मठता का आह्वान हैं। हर कर्म, ज्ञान, साधन का पूजन प्रगति की शपथ है।
हर क्षेत्र में, सामुदायिक नृत्य, सांस्कृतिक नाटक, मेले, भजन, फूल-दीप, भोज जैसी गतिविधियाँ होती हैं।
नवरात्रि २५ सितम्बर से ३ अक्टूबर; दशहरा ४ अक्टूबर को। देशभर में रंग, उमंग, एकता और नई ऊर्जा का संचार होगा।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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