By पं. संजीव शर्मा
षक्ति के प्रतीक, पुराणों में देवी का गौरव, महिषासुर वध की कथा और उसका सांस्कृतिक महत्व
दुर्गा का अर्थ है अभेद्य, अजेय, विपत्तियों का अंत करने वाली। संस्कृत शब्द ‘दुर्गा’ दो भागों से बना है ‘दुर्ग’ (किला) तथा ‘गम्’ (जाना), यानी जो किसी के लिए भी आसान नहीं। देवी दुर्गा को शाक्त परंपरा की सबसे प्रधान देवी माना गया है। वे शक्ति (शक्ति), माया (मोह) और कृति (प्रकृति) की सर्वाधिक सशक्त अभिव्यक्ति हैं न सिर्फ रक्षा बल्कि न्याय, पालन, मातृत्व और योग की भी प्रतीक हैं।
देवी के 9 रूप (नवदुर्गा) | मुख्य प्रतीक | रंग |
---|---|---|
शैलपुत्री | हिमालय पुत्री, साधना | सफेद |
ब्रह्मचारिणी | तपस्या, संतुलन | लाल |
चंद्रघंटा | साहस, निश्छलता | नीला |
कूष्मांडा | सृजन, नवीनता | पीला |
स्कंदमाता | मातृत्व व शक्ति | हरा |
कात्यायनी | युद्ध शक्ति | ग्रे |
कालरात्रि | निडरता, अज्ञानता का अंत | नारंगी |
महागौरी | सौंदर्य, निर्मलता | मोर हरित |
सिद्धिदात्री | सिद्धियां, समापन | गुलाबी |
‘महिष’ का अर्थ है भैंस। ‘असुर’ देवताओं के मूल शत्रु, ऊर्जा का असंतुलन। महिषासुर का जन्म असुरों के राजा ‘रंभ’ और जल-भैंस रूपी श्यामा (शापित राजकुमारी) के प्रेम संबंध से हुआ था। महिषासुर का खास वरदान था कि वह अपनी इच्छानुसार मानव या भैंस का रूप धर सकता था। महिषासुर ने 10,000 वर्ष तक ब्रह्मा को प्रसन्न करने का कठोर तप किया। जब ब्रह्मा ने उससे वरदान मांगने को कहा, तो उसने अमरता मांगी। ब्रह्मा ने अस्वीकार किया। तब महिषासुर ने मांगा “कोई पुरुष या पशु मुझे न मार सके,” जिसके अनुसार सिर्फ ‘स्त्री’ ही उसका अंत कर सकती थी।
यही गर्व उसका पतन बना। महिषासुर, देवताओं और त्रिलोक (तीनों लोक स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल) का दमनकर्ता बन गया। वह समझता रहा कि स्त्रियां कमजोर हैं, पर नियति का चक्र कुछ और ही तय कर रहा था।
तीनों देव ब्रह्मा (रचना), विष्णु (पालन) और शिव (संहार) ने अपनी शक्तियों को एकत्र किया। उनसे प्रकट हुईं देवी दुर्गा दस भुजाओं वाली, शेर की सवारी करती हुई, हर हाथ में शस्त्र लिए, जिनमें हर देवता का शस्त्र सम्मिलित था (चक्र, त्रिशूल, तलवार, धनुष, शंख, गदा, आदि)। देवी दुर्गा वही आद्याशक्ति, जो समस्त सृष्टि की संचालिका हैं।
मार्कण्डेय पुराण, देवी भागवत और देवी महात्म्यम में वर्णन है कि देवताओं की प्रार्थना पर दुर्गा ने महिषासुर का वध किया। महिषासुर लगातार अपना रूप बदलता रहता (सिंह, भैंस, पुरुष, हाथी आदि) पर देवी दुर्गा ने अपनी अटल शांति और तिब्र उर्जा से उसका अंत किया। महिषासुर के वध का उत्सव शारदीय नवरात्रि, दुर्गा अष्टमी और विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है।
देवी दुर्गा को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है महिषासुर-मर्दिनी, चंडिका, अंबिका, वैष्णवी, दुर्गति-नाशिनी (सभी बाधाएं हरने वाली), वध करने वाली। ‘अष्टोत्तर शत नामावली’ (108 नामों की स्तुति) के द्वारा उनकी आराधना की जाती है। उनका उल्लेख ‘देवी सूक्तम्’, ‘मुण्डक उपनिषद’, ‘तैत्तिरीय आरण्यक’, ‘महाभारत’, ‘रामायण’, ‘स्कंद पुराण’, आदि में मिलता है।
देवी दुर्गा के प्रतीक | अर्थ | कर्म/संदेश |
---|---|---|
शेर या सिंह | साहस, शक्ति | विपत्ति से संघर्ष |
अनेक भुजाएँ | विविध शक्ति | बहुआयामी कर्तव्यों का प्रतीक |
शांत चेहरा | संतुलन, करुणा | युद्ध में भी आत्म-नियंत्रण |
विविध शस्त्र | सामूहिक सहयोग | सबकी शक्ति में एकता |
कई नृवंशीय कथाओं के अनुसार, महिषासुर आर्य-अनार्य टकराव का भी प्रतीक है; कहीं वह पर्वतीय क्षेत्र का राजा तो कहीं उसने उत्तर भारत के आर्य क्षेत्र पर विजय पायी। स्थानीय कथाओं में नंदा देवी, विंध्यवासिनी देवी, हिमालय की कन्या आदि रूप मिलते हैं जो दुर्गा के जनजातीय और स्थानीय स्वरूप हैं। यही भारतीय संस्कृति की विविधता और अपनत्व का प्रमाण है।
दुर्गा-मूर्ति की आराधना नेपाल, बांग्लादेश, दक्षिण भारत, श्रीलंका, इंडोनेशिया, कंबोडिया, तिब्बत आदि में होती है। वैष्णव, शैव, जैन, बौद्ध और सिख परंपराओं में भी दुर्गा का वर्णन है। भारतमाता का स्वरूप, राष्ट्रगीत (‘वन्दे मातरम्’), भारतीय सेना का जयघोष (‘दुर्गा माता की जय’) दुर्गा के राष्ट्रीय और सांस्कृतिक प्रतिरूप हैं।
महिषासुर-मर्दिनी की गाथा केवल प्राचीन कथा नहीं हर असमानता, अन्याय और अहंकार के खिलाफ संघर्ष की प्रेरणा है। नवरात्रि और दुर्गा पूजा के पर्वों में भारतीय समाज आत्म-परीक्षा, नव जागृति और नये उत्साह से आगे बढ़ता है।
"दुर्गति नशिनी माता के चरणों में समर्पण ही जीवन का सम्पूर्ण उत्थान है।"
दुर्गा केवल युद्ध और शक्ति का नहीं, संतुलन, सजा, करुणा और मातृत्व का भी प्रतिरूप हैं। वे नारी के आत्मविश्वास और सशक्तिकरण की प्रेरणा हैं।
महिषासुर के हर बदलते रूप, हमारे भीतर छिपे दोषों का प्रतीक हैं क्रोध, अहंकार, लोभ, असंतुलन। दुर्गा का वध आत्म-उन्नयन का संकेत है।
कलश स्थापना, देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा, पंडाल सजावट, सिंदूर खेला, बलि, वैदिक स्तुति, भजन-संध्या, कंजक भोज, विसर्जन आदि।
नहीं, दुर्गा प्रतीक हैं मातृत्व और शक्ति की सार्वभौमिक अवधारणा की, जैन, बौद्ध, सिख, स्थानीय जनजातीय और वैश्विक संस्कृतियों में भी उनकी मान्यता है।
समय के साथ, दुर्गा की छवि शक्ति संपन्न युद्ध देवी से मातृत्व की करुणामयी देवी तक विकसित हुई है। हिंदू, शैव, शाक्त, वैष्णव, बौद्ध व जैन परंपराओं ने उन्हें अपने-अपने तरीके से अपनाया है।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
इस लेख को परिवार और मित्रों के साथ साझा करें