By पं. संजीव शर्मा
दशहरा 2025 : शुभ तिथि, पूजा विधियाँ, विविध राज्य और हर परिवार के लिए सीख
दशहरा 2025 का पर्व गुरुवार, 2 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन देश के अलग-अलग इलाकों में विशेष पूजा, अनुष्ठान और उत्सव होते हैं। इस साल दशहरा की तिथि दशमी 1 अक्टूबर को दोपहर 3:16 बजे से प्रारंभ होकर 2 अक्टूबर की शाम 4:26 बजे तक रहेगी। सबसे शुभ मुहूर्त विजय मुहूर्त दोपहर 2:23 बजे से 3:11 बजे तक रहेगा और अपराह्न पूजा का समय 1:35 बजे से 3:59 बजे तक निर्धारित है। शमी पूजा, अपराजिता पूजा और सीमा अवलंघन जैसे अनुष्ठान इसी अवधि में किए जाते हैं।
पर्व | तिथि और समय | अवधि |
---|---|---|
दशमी तिथि प्रारंभ | 1 अक्टूबर, 3:16 PM | |
दशमी तिथि समाप्त | 2 अक्टूबर, 4:26 PM | |
विजय मुहूर्त | 2 अक्टूबर, 2:23-3:11 PM | 48 मिनट |
अपराह्न पूजा | 2 अक्टूबर, 1:35-3:59 PM | 2 घं 23 मिनट |
शाम के समय मैदानों में विशाल रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतलों का दहन भारतीय समाज के अंदर गहराई से रचा-बसा आयोजन है। बच्चों के कंधों पर बूढ़े बुजुर्ग पुरानी कहानियाँ सुनाते हैं। हर साल क्यों जलाया जाता है रावण को? इसका उत्तर है नकारात्मकता कितनी भी प्रबल क्यों न हो, आखिरकार उसे झुकना ही पड़ता है। राम की धैर्य, मर्यादा और दुर्गा का साहस जीवन में हर अत्याचारी, अहंकारी और अन्यायी ताकत को मात देता है। इसी गाथा को परिवार और समाज पीढ़ी-दर-पीढ़ी दोहराते हैं।
रामायण के प्रसंग के अनुसार, श्रीराम ने लक्ष्मण और हनुमान के साथ रावण पर दस दिन का युद्ध किया। अंतिम दिन राम ने रावण का वध किया और सीता को वापिस लाए। दशहरा को इसी सत्य, भक्ति और धर्म के विजयी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
यहीं दूसरी ओर, दुर्गा माँ ने भी महिषासुर नामक राक्षस से नौ दिनों के भीषण युद्ध के बाद विजय प्राप्त की। दशहरा को दुर्गा पूजा का समापन मानते हैं, जब मां की मूर्तियों का विसर्जन नदी में किया जाता है।
इन दोनों कथाओं में शिक्षा स्पष्ट है सत्य धीमा हो सकता है मगर हारता कभी नहीं। राम का धैर्य और दुर्गा का साहस मुश्किल समय में भी मार्गदर्शक है।
भारत के अलग-अलग राज्य इस त्योहार को अपने-अपने रंग में रंग लेते हैं:
रामलीला नाटकों का मंचन, विशाल मैदानों में पुतला दहन और सभी की सामूहिक भागीदारी दशहरा का मुख्य आकर्षण है।
यहां दुर्गापूजा श्रृंखला का आखिरी दिन दशहरा है। महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर विदाई देती हैं।
मैसूर का दशहरा शाही महल रोशनी से जगमगाता है, सजे-धजे हाथी, वाद्य यंत्र और पारंपरिक जुलूस स्थानीय संस्कृति की भव्यता के प्रतीक बन जाते हैं।
घरों में सीढ़ी बनाकर देवी-देवताओं और कथाओं की गुड़ियों की सजावट होती है। पड़ोसी, बच्चे और रिश्तेदार भजन-कीर्तन, प्रसाद और कथा सुनाने के लिए जुटते हैं।
कुल्लू में सौ से अधिक गांवों के देवता एकत्रित होते हैं। पूरे सप्ताह उत्सव चलता है, जिससे यह आयोजन विश्वभर में अद्वितीय बन जाता है।
दशहरा का असल महत्व बाहरी नहीं, भीतरी है। हर साल रावण दहन आत्म-शुद्धि का रूपक है क्रोध, लोभ, ईर्ष्या और अहम को जलाना जीवन में शान्ति लाने का संदेश देता है। यह दिन नया कार्य, नई शिक्षा आरम्भ करने का भी श्रेष्ठ समय है।
तेजी से बदलती जिंदगी में दशहरा की प्रासंगिकता बढ़ी है:
नवरात्रि की साधना का फलीभूत परिणाम दशहरा है। घर-घर व्रत-पूजन के पश्चात पर्व पर व्रत के समापन और नए आरंभ का उत्साह जगा रहता है।
नहीं, गंगा दशहरा (जो जून में आता है) गंगा नदी के अवतरण पर आधारित है, जबकि विजयदशमी शरद ऋतु में बुराइयों के अंत, विजय और पुनर्नवता का उत्सव है।
आज दशहरा केवल उत्सव, आतिशबाजी, या मिठाइयों तक सीमित नहीं है। यह जीवन को निखारने, असली ताकत पहचानने और परिवार-समाज को एक साथ लाने का मौका है। त्याग, धैर्य और साहस के मूल्यों के साथ जीना, यही दशहरा सिखाता है।
जैसे-जैसे रावण दहन होता है, भीतर के नकारात्मकता जलाने, साहस और नई शुरुआत के बीज बोने का संकल्प आकार लेता है।
सभी को दशहरा की ढेर सारी शुभकामनाएँ।*
2025 में दशहरा 2 अक्टूबर, गुरुवार को पूरे भारत में मनाया जाएगा।
2 अक्टूबर को विजय मुहूर्त दोपहर 2:23-3:11 बजे और अपराह्न पूजा 1:35-3:59 बजे है।
नहीं, दोनों अलग-अलग पर्व हैं; गंगा दशहरा जून में होता है, विजयदशमी शरद ऋतु में मनाई जाती है।
दशहरा सत्य की विजय, आत्म-शुद्धि और नए आरंभ का प्रतीक है।
उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश (कुल्लू), कर्नाटक (मैसूर), पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में दशहरा विभिन्न रंग में मनाया जाता है।
अनुभव: 15
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इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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