By पं. संजीव शर्मा
घटस्थापना से प्रारंभ होने वाली नवरात्रि में शक्ति, समृद्धि और नव ऊर्जा
हर वर्ष जब शारदीय नवरात्रि का पहला ऊषा-प्रहर आता है, लाखों भारतीय घरों में घटस्थापना का अनुष्ठान सजीव हो उठता है। 2025 में यह अत्यंत पावन पर्व 22 सितंबर, सोमवार को मनाया जाएगा। यह परंपरा केवल एक धार्मिक कर्मकांड नहीं बल्कि ऋषियों के अनुभव, प्रकृति के चक्र और ऊर्जा के गहरे रहस्य का प्रतीक है। घटस्थापना के साथ माँ दुर्गा के नौ दिवसीय आगमन, परिवार, समाज और संपूर्ण ब्रह्मांड में जागृति, सकारात्मकता और दिव्यता का बीज बोया जाता है।
भारतीय सांस्कृतिक पहचान में घटस्थापना सबसे शक्तिशाली कर्मों में मानी जाती है। यह सिर्फ धार्मिक या पारंपरिक आयोजन की शुरुआत नहीं बल्कि मन, शरीर, घर, समाज-सबकी ऊर्जा का संकलन है।
ज्योतिष शास्त्र कहता है कि जहाँ कलश स्थापित है, वहाँ विशेष ऊर्जा-संचय, सुरक्षा, निकटता और शुभता प्रतिष्ठित होती है। कलश स्वयं सृष्टि-बीज का प्रतीक है, मिट्टी भाग्य की भूमि है, अंकुरण संकल्प की वृद्धि का चिह्न है।
ऋग्वेद में भी जल से भरे कलश और अधिष्ठान अंकुरण का हवाला मिलता है-"यत्र कलशा स्थलि: सिक्तासु बध्नन्ति धेनव:।" यहाँ घट परम स्वागतयुक्त आह्वान है।
अश्विन शुक्ल प्रतिपदा-22 सितंबर, 2025 को ब्रह्ममुहूर्त से मध्याह्न पूर्व तक
राहुकाल, अमावस्या और सूर्यास्त से बचना आवश्यक है।
पूजन की पूर्ण दिव्यता के लिए स्वच्छता, जुनून और निस्वार्थ भाव से तैयार रहें।
1. पूजा स्थल की तैयारी:
घर का उत्तर-पूर्व दिशा, जहाँ सूर्य की पहली किरण पड़े, वहाँ स्थल चुनें। श्रद्धा और पवित्रता से सप्तधान्य लाकर चौड़े पात्र में फैलाएँ। मिट्टी में गीलीता और ताजगी रखें, ताकि नवजीवन तैयार हो सके।
2. कलश की स्थापना:
मिट्टी, पीतल या तांबे का सुवासित कलश लें। इसमें शुद्ध जल और गंगाजल जोड़कर सुपारी, चावल, तांबे या चांदी का सिक्का, हल्दी, दूर्वा, पुष्प डालें। आम के पाँच पत्तों का मुकुट बनाएँ। कलश के ऊपर लाल कपड़े में लिपटा नारियल रखें। गर्दन पर कलावा बाँधें और सामने सिंदूरी स्वस्तिक बनाएँ।
3. बीज बोना व अंकुरण:
मिट्टी में सात प्रकार के बीज-जौ, गेहूं, तिल, चना, मूंग, मक्का और सरसों बोएँ। पूरे नौ दिन अंकुरण देखना अत्यंत शुभ माना जाता है। जैसे-जैसे बीज अंकुरित होते हैं, वैसे-वैसे घर में समृद्धि, विकास और मंगल की वृद्धि होती है। यह प्रक्रिया मानस के बीज और आशावाद का भी संकेत है।
4. अखंड ज्योति और दीप-आराधना:
घट के पास घी का दीपक जलाएँ, जो पूरे नौ दिनों तक अनवरत जलता रहे। यह माँ की अजर-अमर ऊर्जा, सुरक्षा और आभा का प्रतीक है। घर में अखंड ज्योति जलती रहे, तो घर में नकारात्मकता प्रवेश नहीं कर पाती।
5. मंत्रोच्चार, आरती और ध्यान:
देवी की आवाहना कर "संकल्प" लें। दुर्गासप्तशती, नवदुर्गा मंत्र, दुर्गा चालीसा, पुष्पांजलि और आरती से देवी रूपों का आह्वान करें।
सुबह व शाम कलश पर फूल, अक्षत, सिंदूर, हल्दी और चंदन अर्पित करें। ईश्वर का चिंतन, भक्ति मेडिटेशन और नवदुर्गा का नाम-स्मरण पूरे व्रत का आधार है।
6. हर दिन का विशेष भोग व साधना:
रोज़ कलश को ताजे पुष्प, फल, मेवा व नैवेद्य अर्पित करें। बच्चों के लिए रोज़ नई कहानी सुनाना-जैसे राम, सीता, कौशल्या, धर्मराज युधिष्ठिर या संत कबीर की त्याग, नेतृत्व और भक्ति से जुड़ी कथाएँ-मानसिक ऊर्जा बढ़ाते हैं।
माता का नामजप, आरती, लयवद्ध ध्यान घर का वातावरण पवित्र, प्रेरक और स्वास्थ्यवर्द्धक बनाता है।
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महिषासुर वध के समय देवी का प्रताप और घट की परंपरा एक-साथ शुरू होती है। महाभारत में अर्जुन जब जीवन के सबसे बड़े संघर्ष में होते हैं, उनका ध्यान, संकल्प और आह्वान माता को न्योता देने का ही दूसरा रूप था।
रामायण में माता कौशल्या का अपने पुत्र श्रीराम को वनवास भेजते समय निराश न होकर प्रभु के उज्ज्वल भविष्य के लिए घट की तरह शुभकामना, संरक्षण और आशीर्वाद देना-पारिवारिक कल्याण व त्याग का महान आदर्श है।
इतिहास में अनेक राजाओं, संतों और वीरांगनाओं का भी घटस्थापना से जुड़ा स्मरण मिलता है। संकट काल में घट पूजन और अखंड ज्योति ने घर-परिवार को विजय, सुरक्षा व शांति दिलाई है। वेदों में भी सुख, शुद्धता और शक्ति के अभिन्न प्रतीक के रूप में घट की व्याख्या की गई है।
देवी दुर्गा और महिषासुर की पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
हर घर में घटस्थापना से एक समवेत ऊर्जा का संचार होता है। मात्र एक कलश नहीं बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड की ऊर्जा उसी में प्रतिष्ठित मानी जाती है। यह प्रक्रिया घर को स्वच्छ, ऊर्जस्वित, सकारात्मक और सुरक्षित बनाती है। जैसे शास्त्रों में कहा गया है-"कलशस्थे सर्वतीर्थानि"-अर्थात घट में सभी तीर्थों का वास होता है।
सामूहिक पूजन या परिवार संग आराधना से घर का हर सदस्य आपसी प्रेम, सहयोग, मनोबल और भरोसे से आपूरित होता है। बच्चों को रोज़ पुराणों से प्रेरणा देने वाली कथाएँ सुनाएँ, जिससे वे कर्तव्य, भक्ति, त्याग और नेतृत्व के गुण ग्रहण करें।
नवरात्रि के नौ दिन संयम, साधना, उपवास और जागरण का अभ्यास घर के सदस्यों में मानसिक शक्ति, तंदुरुस्ती और सकारात्मक दृष्टि बढ़ाने का साधन भी बन गया है।
चरण | वस्तु | गूढ़ भावार्थ |
---|---|---|
पूजा स्थल | स्वच्छता, पूर्व/ईशान दिशा | ऊर्जा का केंद्र, सूर्य-संयोग |
मिट्टी | शुद्ध भूमि | सृजन, आधार, माता पृथ्वी का आशीर्वाद |
सप्तधान्य | सात बीज | विविधता, अनुकूलता, समृद्धि और आशा |
कलश | जल, सुपारी, सिक्का | ब्रह्मांड, शुद्धता, संचरण |
आम पत्ते | पाँच पत्ते | दीर्घायु, ताजगी, आदान-प्रदान |
नारियल | लाल कपड़े में लिपटा | शुभता, अंकुरण, विशिष्टता |
स्वस्तिक | हल्दी/सिंदूर/रोली | शुभता, रक्षा, सकारात्मकता |
दीपक, अखंड ज्योति | घी का दीप | ऊर्जा, सतत निगरानी, सुरक्षा |
मंत्र-पूजन | सप्तशती, चालीसा, ध्यान | चेतना-संयोजन, समर्पण, आत्मशक्ति |
तारीख | दिन | देवी/कार्य | भावार्थ/विशेषता |
---|---|---|---|
22 सितंबर | सोमवार | घटस्थापना, शैलपुत्री | सृजन, शक्ति, मासूमियत |
23 सितंबर | मंगलवार | ब्रह्मचारिणी | अनुशासन, जिज्ञासा, साधना |
24 सितंबर | बुधवार | चंद्रघंटा | सतर्कता, निडरता, साहस |
25 सितंबर | गुरुवार | कूष्मांडा | नवसृजन, ऊर्जा, साकार शक्ति |
26 सितंबर | शुक्रवार | स्कंदमाता | मातृत्व, त्याग, परिवार |
27 सितंबर | शनिवार | कात्यायनी | जिम्मेदारी, नेतृत्व, विजय |
28 सितंबर | रविवार | कालरात्रि | भय-नाश, प्रबलता, रक्षा |
29 सितंबर | सोमवार | महागौरी | निर्मलता, करुणा, क्षमाशीलता |
30 सितंबर | मंगलवार | सिद्धिदात्री | पूर्णता, मार्गदर्शन, विजय |
1 अक्टूबर | बुधवार | महानवमी | विशेष कन्या पूजन, विजय की तैयारी |
2 अक्टूबर | गुरुवार | विजयदशमी | समापन, बुराई पर विजय |
प्र1. घटस्थापना के समय कौन-सी भावनाएँ रखनी चाहिए?
मन में पवित्रता, श्रद्धा और निःस्वार्थ भाव रखें। हर वस्तु को दिव्यता की दृष्टि से देखें।
प्र2. क्या नवरात्रि में घट के अंकुरण से घर में समृद्धि बढ़ती है?
जी हाँ, यह गृह-कल्याण, ऊर्जा और सकारात्मकता का सूचक है।
प्र3. क्या घटस्थापना और उपवास एक साथ करना आवश्यक है?
संयम व्रत उत्साह, स्फूर्ति और मानसिक गति बढ़ाते हैं, किंतु सबसे प्रमुख स्तुति, साधना और भक्ति है।
प्र4. क्या विशेष मंत्र का उच्चारण जरूरी है?
दुर्गा सप्तशती, नवदुर्गा मंत्र, महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र का पाठ मन, बुद्धि और वातावरण को शुद्ध करता है।
प्र5. परिवार या समुदाय में मिल-जुलकर पूजन करने का लाभ क्या है?
सामूहिक साधना एकजुटता, प्रेम, सहयोग और मानसिक शुद्धि का मार्ग है-हर सदस्य को नया उत्साह, उदारता और आत्मविश्वास प्राप्त होता है।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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