By पं. संजीव शर्मा
क्यों हर समाज, हर युग और हर साधना में कहानी का केंद्र स्थान है चंडी पाठ और देवी माँ की कथा से सीख
सदियों से, लोगों ने कभी आग के चारों ओर, मंदिरों की चौपालों में, या तारों के नीचे बैठकर कहानियाँ सुनी और सुनाईं। कहानियाँ केवल मनोरंजन नहीं बल्कि समय, संस्कृति और यादों की बुनियाद रही हैं। कहानी कहना केवल किसी जमाने का चलन या आधुनिक ट्रेंड नहीं यह उतना ही पुराना है, जितना पहला भय, पहली आशा, या पहला प्रश्न। आदिम चित्रकथाएँ, झील के किनारे दादी की कहानियाँ, नगरों में लोकनाट्य; हर जगह यह देखने को मिलता है कि कहानी सुनना-सुनाना मानव हृदय की जरूरत है।
आज सोशल मीडिया पर, हज़ारों साल पहले ग्रामीण सभाओं में, कहानियाँ हमारी भावनाओं, आस्थाओं और आचरण को गहराई से प्रभावित करती रही हैं। जैसा नाइजीरियाई लेखक बेन ओकरी ने लिखा “हम समुद्र में तैरती कहानियाँ हैं।” पुरातन कथाएँ वीरता, छल, संघर्ष, मानसिक द्वंद्व हर युग में नया अर्थ और अनुभव देती हैं।
हर आस्था के केंद्र में कहानी है:
हर कहानी, चाहे वह शाब्दिक सच हो या रूपक ऐसा कैनवास रचती है, जिसमें इंसान अपने प्रश्न, दर्द और जवाब तलाश सकता है। महान संतों, ऋषियों और अज्ञात कवियों ने, हमेशा कहानी का रास्ता चुना वे जानते थे, जो बुद्धि से न बताया जा सके, वह दिल से समझाया जा सकता है।
हर कथा ऐतिहासिक तथ्य नहीं होती; कुछ काल्पनिक, कुछ शिक्षाप्रद, कुछ व्यंग्य और कुछ प्रेरणा के रूप में रची जाती हैं। उनका सच केवल आँकड़ों में नहीं बल्कि अर्थ और भाव में छुपा होता है। कहानियाँ मानव मन को चुनौती, राहत और दिशा देती हैं; उन्हें समझना एक मानवीय विकास यात्रा है।
दुर्गा सप्तशती (या चंडी पाठ) शाक्त परंपरा का अद्भुत ग्रंथ है कहानी, उपदेश, स्तुति, मन्त्र, शक्ति और प्रेम का गाढ़ा संगम। यहाँ देवी चंडी केवल युद्ध यशस्विनी ही नहीं, प्रेम, करूणा और आत्म-परिवर्तन की नायिका भी हैं।
जहाँ अद्वैत वेदांत में अनासक्ति और वैराग्य पर बल है, वहीं शाक्त साधना में भावनाओं की अतल गहराई माँ के प्रति प्रेम, समर्पण, हृदय के आखिरी कोने तक लगाव का महत्त्व है। यह ममता कमजोरी नहीं; बल्कि यही आत्म-परिवर्तन, साहस और आनंद का बीज है।
एक राजा, जिसे राज्य से बेदखल कर दिया गया; एक व्यापारी, जिसे अपने ने धोखा दिया दोनों दुख और भ्रम से घिर जाते हैं। वे वन में तपस्वी मेधा ऋषि के आश्रम में शरण मांगते हैं। ऋषि उन्हें देवी की पूजा करने की सलाह देते हैं। भक्ति से, दोनों को जीवन का नया अर्थ, साहस और शांति मिलती है। कथा का सार दुखी और हताश आत्माएँ माँ के आश्रय में नया विश्वास पाती हैं।
ब्रह्मा के कानों से उत्पन्न दो राक्षस मधु और कैटभ योगनिद्रा में सोते विष्णु से ब्रह्मा को मारने जाते हैं। भयभीत ब्रह्मा, माँ महा-माया की स्तुति करते हैं दुर्गा उन्हें मोह की शक्ति से भर देती हैं। राक्षसों ने वरदान दिया कि केवल विष्णु ही उनका वध कर सकते हैं। शक्तिशाली विष्णु उनका वध कर ब्रह्माण्ड का संतुलन लौटाते हैं। प्रतीक: मधु कैटभ तमस (अंधकार) और रजस (चंचलता) के रूप; इनका अंत सतोगुण (ज्ञान) की विजय का प्रतीक है।
महिषासुर, भैंस का रूप धरने वाला एक शक्तिशाली असुर, त्रिलोक में विध्वंस करता है देवी चंडी, सभी देवताओं की संयुक्त शक्ति से उत्पन्न, उसका नाश करती हैं। रक्तबीज, शुम्भ-निशुम्भ हर असुर मानवीय दोष (क्रोध, अहंकार, मोह, लोभ, भ्रम) का रूपक है। हर जीत, आत्म-सुधार और साहस का संदेश देती है।
हिंदू दार्शनिक धारा मानती है ईश्वर हर बुराई को तत्क्षण नहीं मिटाता; बुराई बाहर और भीतर रहती है। संघर्ष होकर ही शक्ति जागती है, आत्मज्ञान होता है। बुराई का अस्तित्व पाप या अशुभ नहीं; बल्कि मानव का आत्म-विकास है। देवी बुराई को मिटाती नहीं बल्कि चुनौती देती हैं कि हर युग, हर मन, सत्कर्म और सत्य को फिर पुनर्स्थापित करे।
गीता और चंडी दोनों स्वीकारती हैं कि जीवन में सतत संघर्ष, द्वंद्व, निरंतरता है संतुलित योगी (स्थितप्रज्ञ) को 'राग-द्वेष' से ऊपर उठना होता है। चंडी साधना का चरम लक्ष्य ‘असुर’ (राग, द्वेष, अहंकार) का आत्मिक वध है, न कि बाहरी शत्रुओं से ही युद्ध।
चंडी पाठ में असुर, मनुष्य के भीतर बसे वे दोष हैं, जिन्हें पराजित किए बिना मुक्ति नहीं। स्वामी विवेकानंद के अनुभव माँ काली की आराधना में आर्थिक संकट में, जीवन की दुविधा में; रमकृष्ण ने कहा "माँ से भक्ति मांगो," भौतिक वस्तुओं से पहले। यही सच्चा धन है।
आज भी कथा, सोशल मीडिया से लेकर फिल्मों तक, हर जगह है। कभी सच, कभी कल्पना, कभी प्रेरणा हर जगह कहानी जड़ों से जोड़ती है, मन को स्वस्थ कर, समाज को आगे बढ़ाती है। समय बदल सकता है, लेकिन कहानी कहने-सुनने की जरूरत, महत्व और सुंदरता शाश्वत हैं।
राम-रावण की कथा हो या चंडी का संवाद, देवी की पूजा हो या आत्मचिंतन हर कहानी, स्वयं के भीतर झाँकने का, प्रकाश और छाया को पहचानने का, हर पराजय में फिर से आशा का, प्रेम को दुर्बलता नहीं, परिवर्तन की शक्ति मानने का संदेश देती है।
जिस प्रकार राजा सूरथ और समाधि ने दुख में शरण ली; जिस तरह विवेकानंद ने भक्ति मांगी उसी तरह आज भी हर कठिनाई में, हर संघर्ष में, देवकथा, देवी की ओर ध्यान लौटने का अवसर बनी रहती है। यही है कथा की शक्ति जो समय, धरती, भाषा, संस्कृति से परे अनंत है।
यह केवल युद्ध की नहीं बल्कि आत्म-सुधार, ज्ञान और भक्ति की महागाथा है ॐ के स्पंदन जैसी कालातीत।
बुराई बाहर और भीतर दोनों जगह है स्वरूप बदलती है; जीत संघर्ष से, परिश्रम से होती है।
मानसिक, पारिवारिक, सामाजिक विघ्न दूर करने, आत्म-बल, भक्ति व साहस बढ़ाने हेतु किया जाता है।
नहीं, वे हर उम्र के लिए हैं उनमें जीवन, साधना, क्रांति, प्रेम और आत्म-अन्वेषण सब समाहित है।
जो दिल-दिमाग छू जाए, सवाल करे, जवाब दे, मन बदल दे असल में वही सच्ची और कालजयी कहानी कहलाती है।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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