By पं. संजीव शर्मा
देवी सप्तशती: शक्ति, संतुलन, उद्देश्य और नारीत्व की बदलती परिभाषा
दुर्गा सप्तशती, जिसे चंडी पाठ या देवी महात्म्य भी कहा जाता है, भारतीय जीवन के हर पहलू-आध्यात्म, मनोविज्ञान, साहस, संकट, नारी-शक्ति और सामाजिक बदलाव का स्थायी ग्रंथ है। इसके 700 श्लोक और अद्वितीय कथाएँ न केवल भक्ति या पूजा के लिए हैं बल्कि भीतर के संघर्ष, उद्देश्य और संसार में समरसता और शक्ति खोजने का गूढ़ सूत्र हैं। यह ग्रंथ उन साधकों, गृहस्थों, विद्यार्थियों और परिवारों के लिए भी है, जो सामान्य व्यवहारिक भाषा, रोचक कथानक और गहरे मनोवैज्ञानिक संदेश में आध्यात्म का सार खोजते हैं।
सनातन परंपरा में देवी शक्ति को ब्रह्मांड की उत्पत्ति, रक्षा और संहार-तीनों का आधार माना गया है। वेदों में "एकं सत् विप्रा बहुधा वदन्ति" (सत्य एक है, मार्ग अनेक हैं) का उल्लेख, इस महाग्रंथ का केंद्रीय सूत्र है। देवी सप्तशती के दूसरे अध्याय में यही दिखाया गया है कि कैसे शिव, विष्णु, ब्रह्मा और देवगण अपनी ऊर्जा मिलाते हैं-वहीं से आदिशक्ति साकार रूप में अवतरित होती हैं।
रामायण में भी जब राम, रावण के विरुद्ध लड़ने जाते हैं तब अगस्त्य मुनि राम को आदित्य-ह्रदय स्तोत्र का पाठ करने को कहते हैं, जिसमें सूर्य, शक्ति और दिव्यता की स्तुति है। इस स्तोत्र से राम को उत्साह, साहस और नई दिशा मिलती है-यह आधुनिक व्यक्ति के लिए भी प्रतीक है कि संकट और भ्रम के क्षणों में भीतर की ऊर्जा, श्रद्धा और दिव्यता ही सच्चा मार्ग है।
जब-जब समाज, परिवार या व्यक्ति घोर संकट में होता है-आर्थिक, मानसिक या भावनात्मक-तब-तब देवी का कोई न कोई रूप प्रेरणा, रक्षक और मार्गदर्शक बनकर सामने आता है। महाभारत में द्रौपदी, अंतहीन अपमान और पीड़ा में अपने ईष्ट, अपने भीतर की शक्ति को पुकारती है; भागवत पुराण में सीता, वनवास और अग्नि-परीक्षा में कभी हार नहीं मानती। देवी सप्तशती के हर प्रसंग में शक्ति, धैर्य, करुणा, विनम्रता और नेतृत्व के जीवन्त उदाहरण मिलते हैं।
इन तीनों असुरों का बाहरी युद्ध सिर्फ प्रतीक है-वास्तविक युद्ध हमारे भीतर के अहंकार, भय, लोभ, क्रोध और नकारात्मक सोच से है। रक्तबीज, जिसका हर रक्तकण नए असुर को जन्म देता है-असल जीवन में तनाव, आघात या आलोचना बाद नई चिंताओं, डर, या नकारात्मक प्रतिक्रियाओं में प्रकट होता है।
दुर्गा का प्रत्येक अस्त्र, शक्ति और कथा यह सिखाती है कि अगर भीतर का भय, मोह, द्वेष और संकोच मूल से समाप्त नहीं किया जाए, तो जीवन में स्थायी विजय असंभव है।
देवी दुर्गा और महिषासुर की पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
रामायण में हनुमान सिर्फ बाहुबल के कारण ही विजय नहीं पाते बल्कि आत्मधैर्य, विनम्रता और बिगड़ी परिस्थिति में सही दिशा चुनने के कारण हर असंभव कार्य संभव करते हैं। महाभारत के अर्जुन युद्ध-भूमि पर भ्रमित होते हैं, किंतु जब श्रीकृष्ण से गीता का मार्गदर्शन (साहस, उद्देश्य, आसक्ति-विन्यास) मिलता है, तभी वे भीतरी युद्ध जीत पाते हैं।
दुर्गा सप्तशती की कथा में राजा सुरथ ने शत्रु-विजय और राज्य की कामना की; समाधि नामक वैश्य ने आत्मज्ञान, लोभ-मुक्ति और मोक्ष की इच्छा की। देवी दोनों को स्वीकारती हैं, यह दर्शाता है-हर युग, स्थिति और व्यक्ति के लिए धर्म, संतुलन और विवेक सबसे जरूरी हैं।
रामायण में भरत के लिए राज्य, लक्ष्मण के लिए सेवा, विभीषण के लिए न्याय, हनुमान के लिए समर्पण-हर पात्र का लक्ष्य भिन्न है, पर विनम्रता और सचाई हर उद्देश्य के मूल में है।
सप्तशती केवल आत्म-साक्षात्कार या तंत्र-साधना की बात नहीं करती बल्कि परिवार, संबंध, समाज के भीतर नेतृत्व, संवाद, धैर्य और त्याग की भी सीख देती है। देवी के कमंडल, सिंह, शंख, कमल आदि सभी प्रतीकों में सामूहिकता, पवित्रता, संवाद और तपस्या का सूत्र छिपा है।
मुश्किल करियर, पढ़ाई का दबाव, रिश्तों की उलझनें-इन सबके बीच भी देवी सप्तशती अपने युगांतकारी दृष्टिकोण से प्रासंगिक है। यह बताती है कि प्रत्येक महिला, पुरुष, बच्चा भीतर से दिव्य, सामर्थ्यवान और समर्थ है; बशर्ते वह हिम्मत, अनुशासन और विश्वास से कठिनाइयों को चुनौती दे।
प्रसंग / अध्याय | शिक्षा | आज के जीवन में प्रासंगिकता |
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शक्ति की एकता | अनेक धर्म, कई रास्ते | धार्मिक सद्भाव, विविधता की स्वीकृति |
भीतर का युद्ध | अहंकार, भय पर विजय | मानसिक स्वास्थ्य, आत्मबल |
कई लक्ष्य | सभी उद्देश्य यदि धर्मसम्मत | करियर, परिवार, अध्यात्म में संतुलन |
नारी शक्ति | निर्माण, साहस, नेतृत्व | महिला सशक्तिकरण, सकारात्मक प्रेरणा |
हर युग में अवतरण | सही समय पर नया रूप | चुनौती, बदलाव में साहसिक समाधान |
दुर्गा सप्तशती की उत्पत्ति की पूरी कहानी यहां पढ़ें।
प्र1. क्या सप्तशती बच्चों, युवाओं, महिलाओं, पुरुषों, सभी के लिए प्रासंगिक है?
हाँ, क्योंकि यह हर व्यक्ति के भीतर की शक्ति, आत्मबल, नेतृत्व, क्षमा, धैर्य और सीख को बढ़ाता है।
प्र2. क्या देवी के अस्त्र-शस्त्र व कथा केवल पुराण या रिवाज भर हैं?
नहीं, हर शस्त्र, कथा, संघर्ष आज के जीवन की समस्याओं, आत्मनियंत्रण और सही रास्ते का संकेत हैं।
प्र3. क्या आधुनिक परिवार, करियर, समाज में देवी की शिक्षा से संतुलन बन सकता है?
बिल्कुल, जब सब सदस्य मान, संवाद, त्याग और सही उद्देश्य के साथ आगे बढ़ें।
प्र4. क्या देवी की पूजा या साधना से महिलाओं को विशेष आत्मबल या सामाजिक मान्यता मिलती है?
हाँ, यह न केवल आत्मविश्वास बल्कि निर्णायक नेतृत्व, आत्मनिर्भरता और प्रत्येक मोड़ पर सही निर्णय ले पाना सिखाता है।
प्र5. क्या देवी महात्म्य सिर्फ पूजा या अनुष्ठान तक सीमित है?
नहीं, यह आत्मविकास, नेतृत्व, करियर, संवाद, आत्नबल, कर्म और परिवारिक सामंजस्य के लिए जीवनभर का मार्गदर्शन है।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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