By पं. संजीव शर्मा
दस शस्त्र, देवी शक्ति का विज्ञान, पौराणिक कथा, स्वयं के जीवन को बदलने वाली शिक्षाएँ
दुर्गा का नाम सुनते ही एक सजीव छवि उभरती है-दस भुजाएँ, प्रत्येक भुजा में अलग अस्त्र, सिंह-वाहन, तेजस्वी सूर्य के समान प्रकाश और निर्मम करुणा का समन्वय। शक्ति का स्रोत, ऊर्जा का मूल और हर संघर्षकर्ता के लिए नारीत्व का तेजस्वरूप-यही देवी दुर्गा हैं। वेद, पुराण, महाभारत और रामायण सभी, देवी के weapons, उनके रूपों और गूढ़ प्रतीकों से भरे हैं। इन अस्त्रों के भीतर इतिहास, जीवन के असली संघर्ष और आत्मशक्ति के गूढ़ पाठ बार-बार छिपे हुए हैं।
शक्ति, जिसका हर कण चेतनता से परिपूर्ण है, कभी पार्वती, कभी काली, सरस्वती, लक्ष्मी रूप लेती हैं। जगती के हर रचनात्मक स्वरूप और विध्वंसक प्रवृत्ति में यही मातृशक्ति प्रवाहित दिखती है। देवी दुर्गा का महाभारती और देवी-भागवत पुराण में विशेष स्थान है। महिषासुर-राक्षस द्वारा माँ दुर्गा का आविर्भाव केवल बाहरी युद्ध नहीं बल्कि भीतर के अहंकार, डर, अधर्म के खिलाफ आत्मबल का प्रकट रूप है।
महाबली महिषासुर जब सभी देवों को हराता है और कोई भी देवता उसे मार नहीं सकता, तभी ब्रह्मा, विष्णु, शिव-तीनों की संयुक्त ऊर्जा से एक अपूर्व तेजोमय स्तंभ प्रकट होता है। उसी से देवी प्रकट होती हैं, दस भुजाओं में दसों दिशाओं की प्रतिक्रिया, सुरक्षा और उज्ज्वलता समेटे।
यहां दस भुजाओं वाली देवी दुर्गा के दिव्य प्रतीकवाद की खोज करें।
शिव अपने त्रिशूल का महत्त्व देवी को सौंपते हैं। त्रिशूल के तीन फलक त्रिगुण, कालचक्र, सृष्टि-स्थितिविनाश के प्रतीक हैं। महाभारत में, पार्वती का उग्र रूप काली भी इसी त्रिशूल से कई दानवों का वध करती हैं। जब देवी महिषासुर को हराती हैं, अंतिम वार त्रिशूल से ही होता है जो अधर्म का शमन है।
सुदर्शन चक्र, जो विष्णु का सर्वशक्तिमान अस्त्र है, देवी के हाथ में ब्रह्मांड की सतत गति का प्रतीक है। रामायण में श्रीराम और महाभारत में श्रीकृष्ण अपने रूपों में सुदर्शन चक्र का उपयोग राक्षसों, अधर्मियों के नाश के लिए करते हैं। देवी के लिए यह शस्त्र, ऊर्जा के निरंतर अस्तित्व और अनुशासन का प्रतिनिधित्व करता है।
ब्रह्मा जो सृष्टि के महान कल्पनाकार हैं, वह देवी को कमंडल देते हैं। महाभारत की कथाओं में कमंडल जीवन, नई सृष्टि और शुद्धता का मूल प्रतीक है। ब्रह्मा जब नया जगत बनाते हैं, तो जप और ध्यान से जल भरते हैं। देवी को कमंडल उनके भीतर रचनात्मकता, पालन और निर्मलता लाता है।
इन्द्र ने अपना वज्र देवी को अर्पित किया। ऋग्वेद के मार्तण्ड्य यज्ञ और दधीचि ऋषि की हड्डियों से बना वज्र, अपराजेयता का प्रतीक है। यह शस्त्र पाप और अन्याय नाश का संकेत देता है-इसी से देवी अन्यायियों का समूल विनाश करती हैं। महाभारत में इन्द्र का यह वज्र अर्जुन के लिए आकाशवाणी का भी पर्याय है।
वायु देव ने देवी को धनुष व असीम तीरों की तरकश दी। यह अस्त्र उनकी अजेय शक्ति, निरंतर सक्रियता और ऊर्जा के हर रूप भेदने की क्षमता दर्शाते हैं। महाभारत के अर्जुन का गांडीव, रामायण में लक्ष्मण-भरत का सहयोग-धनुष-तीर का प्रतीकात्मक महत्त्व देवी की जीवटता को दर्शाता है।
वरुण देव जल और सागरों के स्वामी हैं। देवी को दिया शंख नाद की शुरुआत है। "ॐ", ब्रह्मांड की पहली ध्वनि, शंख से ही निकलती है। महाभारत में युद्ध प्रारंभ और विजय उद्घोष दोनों शंखनाद से ही जुड़े हैं। देवी, युद्ध में शंख फूँकती हैं, वह नाद है-प्रतिबद्धता, शक्ति और विधान का।
अग्नि देव, हर यज्ञ और ऊर्जा के मूल स्रोत, देवी को प्रज्वलित भाला सौंपते हैं। अग्नि-परीक्षा की कथा रामायण में सीता की शुद्धता प्रमाणित करती है। भाला, उस ऊर्जा, साहस और आत्मदाह का संकेत है जिसमें शत्रु का अंत होता है मगर साथ ही नव-चेतना भी पैदा होती है।
यम, मृत्यु और न्याय के देवता, तलवार देते हैं-जो न्याय, शौर्य और वीरगति का प्रतीक है। महाभारत का युद्ध, रामायण की युद्धभूमि-हर जगह तलवार, धर्म के लिए संघर्ष, सत्य की विजय और मृत्यु पर निग्रह का सूत्र है।
विश्वकर्मा, देव शक्ति के शिल्पकार, कुल्हाड़ी देते हैं। उनकी कुल्हाड़ी से सृजन और संहार दोनों संभव हैं-जैसे नए भवन बनाने के लिए पुराने वृक्षों को काटना। महाभारत में पांडवों का सुवर्ण महल, केवल सृजन मगर उसके विनाश में भी रचनात्मकता।
सूर्य देव की किरणें देवी को दिव्यता, आलोक और तीनों लोकों में व्याप्त सुरक्षा देने का प्रतीक हैं। महाकाव्यों में सूर्य की रोशनी को चिरजीवी, पोषक और सबसे शक्तिशाली रक्षा-कवच बताया गया है। देवी की तेजस्विता हर अंधकार को हर देती है।
संयुक्त शस्त्रों व हिमवान-पुत्र सिंह के वाहन के साथ देवी रणभूमि में प्रवेश कर महिषासुर को नौ दिन तक चुनौती देती हैं। विजयादशमी के दिन उनका सिंह पर चढ़ाई, सत्य और सिद्धि की पराकाष्ठा का प्रत्यक्ष उदाहरण है। यह केवल बाहरी युद्ध नहीं, भीतर के राक्षस, अहंकार, भय और नकारात्मकता पर अपने सत्य, संयम और आस्था की विजय है।
शस्त्र | कौन-से देवता ने दिया | प्रतीक / अभ्यास की सीख | भूमिका एवं प्रेरणा |
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त्रिशूल | शिव | त्रिगुण, न्याय, समय | अंतिम वार, भीतर के दमन का नाश |
सुदर्शन चक्र | विष्णु | अनुशासन, ऊर्जा का चक्र | निरंतर प्रवाह, अहंकार पर नियंत्रण |
कमंडल | ब्रह्मा | जीवन, सृजन, अभ्युदय | निर्माण, सकारात्मक सोच |
वज्र | इन्द्र | अदम्यता, शक्ति, संघर्ष | अन्याय की हार, साहस |
धनुष-तीर | वायु | संभावना, गति | योजना, दूरदृष्टि, आत्मबल |
शंख | वरुण | आरंभ, नाद, विजय | समर्पण, लक्ष्य की घोषणा |
भाला | अग्नि | हिम्मत, स्पष्टता, चेतना | मुश्किल निर्णय, धर्म-रक्षा |
तलवार | यम | न्याय, संकल्प, मृत्यु | सत्य, निर्णय, सीमाएँ |
कुल्हाड़ी | विश्वकर्मा | निर्माण, बदलाव, नवनिर्माण | पुराना छोड़कर कुछ नया बनाना |
सूर्य किरणें | सूर्य | रोशनी, साहस, ऊर्जा | चुनौतियों से लड़ने की शक्ति |
वेदों में देवी के अस्त्र-शस्त्रों को अंतरयों व मानव विवेक के विविध रूप बताया गया है। रामायण में महाशक्ति, सीता के माध्यम से भीम, लक्ष्मण और हनुमान की कथा में ऊर्जा, त्याग और साहस के उदाहरण नज़र आते हैं।
महाभारत में द्रौपदी का चीरहरण, कर्ण का त्याग, अर्जुन का आत्मसंयम-इन सबके केंद्र में शक्ति की उत्थान और सही दिशा का दृष्टांत है।
दुर्गा के 9 देवी रूपों के बारे में अधिक जानकारी यहां पढ़ें।
प्र1. देवी के शस्त्र जीवन में किन मानसिक या आध्यात्मिक गुणों का प्रतीक हैं?
हर शस्त्र-धैर्य, अनुशासन, सृजन, विनाश, त्याग और ऊर्जा-जीवन का कोई-न-कोई अनुपम गुण दर्शाता है।
प्र2. देवी के अस्त्रों की कथा, आज के समाज/ परिवार में कैसे प्रासंगिक है?
संघर्ष, अनुशासन, जिम्मेदारी, न्याय और नई शुरुआत के लिए हर पात्र और शस्त्र आज की चुनौतियों में प्रेरणा देते हैं।
प्र3. क्या सभी देवी-शस्त्र एक ही रूप के हैं या हर युग में इनका सन्दर्भ बदलता है?
हर शस्त्र का मूल स्वरूप सनातन है मगर उसका अभ्यास समय, व्यक्ति और समाज के अनुसार बदलता है।
प्र4. देवी का भाव और युद्ध-यात्रा नई पीढ़ी के लिए क्या संदेश देती है?
भीतर के डर, आलस्य, आक्रोश, नकारात्मकता पर विजय पाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना बाहरी बुराई पर।
प्र5. क्या देवी के अस्त्र-शस्त्र, नवरात्र जैसे पर्वों में कोई विशेष महत्व रखते हैं?
हां, नवरात्र के नौ दिन शस्त्रपूजन समेत, आत्मशक्ति, साहस, संघर्ष, विजय और आत्मोत्सर्ग का सात्विक व्याख्यान है।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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