By पं. अमिताभ शर्मा
श्रीराम और उनके अनुयायियों के लिए वनवासी स्थलों में निहित साधना, ग्रहयोग व आध्यात्मिक ऊर्जा
रामायण और महाभारत भारतीय सनातन संस्कृति की दो अमूल्य धरोहर हैं, जो न केवल धर्म-अधर्म, नीति, वैराग्य के आदर्श स्थापित करती हैं बल्कि भारतीय भूगोल, आस्था और लोकमानस के कण-कण में व्याप्त हैं। रामायण त्रेता युग (9582 ई.पू. - 5694 ई.पू.) की महागाथा है, जहां श्रीहरि विष्णु के सातवें अवतार, प्रभु राम, का प्रत्येक कार्य और त्याग हजारों वर्षों से समाज को मार्गदर्शन देते हैं, वहीं महाभारत द्वापर युग (5694 ई.पू.-3102 ई.पू.) के राजवंशों, युद्धों, कृष्णलीला, ज्ञान-दर्शन और धर्मयुद्ध की अमर कथा है। इन दोनों ग्रंथों से करोड़ों लोग पीढ़ियों से जीवन का ज्ञान, आचरण और आत्म-संयम सीखते आए हैं।
भगवान रामचंद्र - विष्णु के सातवें अवतार - को उनके समर्पित भक्त श्रेष्ठ मानव (पुरुषोत्तम हैं, जो न केवल आदर्श पुत्र, आदर्श पति, आदर्श भाई, आदर्श शासक का परिचय देते हैं बल्कि यथार्थ जीवन में सभी मानवीय कष्ट-दुख-संघर्ष को निभाते भी हैं। यह जानना महत्वपूर्ण है कि श्रीराम स्वयं अपने पूर्वजन्म के कर्मों (प्रारब्ध) के अधीन जीवन जीते हैं। शास्त्रों में कहा गया है - अवतार का उद्देश्य केवल चमत्कार नहीं, जनकल्याण, धर्म-संस्थापन, पापियों का नाश और सच्चे साधकों की रक्षा है। यही संदर्भ श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को भगवद्गीता में समझाया:
“जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है तब-तब मैं लोक कल्याण के लिए जन्म लेता हूं।”
रामायण में लक्षित 14 वर्ष का वनवास न तो केवल दशरथ-कैकेयी के शर्त का फल था और न ही मात्र दुर्घटना। सनातन मान्यता और प्राचीन ज्योतिषशास्त्र दोनों के अनुसार, स्वयं राम ने अपनी मां कैकेई से मांग कर 14 वर्ष का वनवास स्वीकार किया, ताकि धर्म-संस्थापन, पापियों का विनाश और अपने कर्मफल की पूर्णता हो सके। जीवन के कष्ट, त्याग और मर्यादा उन्होने मानव-रूप में भोगी ताकि आम जनमानस सीख सके कि महानता सिर्फ उच्च सुख-भोग में नहीं बल्कि कर्तव्य और संयम में है।
रामायण केवल कथाओं-संवादों का संग्रह नहीं बल्कि हर घटना के ज्योतिषीय संयोगों का विस्तार है। रामजन्म, वनवास, युद्ध, विजय सबके पीछे नक्षत्रों, ग्रहों, मुहूर्तों और शुभ-अशुभ संकेतों की विशेष व्यवस्था है। राम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी, पुनर्वसु नक्षत्र, कर्क लग्न, सूर्य, चंद्र, मंगल, शुक्र, शनि, बृहस्पति उच्च स्थिति में - यह दशा जीवनभर के संघर्ष, विजय और कर्तव्यनिष्ठा का आधार बनी। वनवास गमन के पूर्व भी राजा दशरथ द्वारा देखे गए उल्का, अपशकुन, आदि - ये सब काल और नियति के ध्यानाकर्षक सन्देश थे।
वनगमन के 14 वर्षों का पथ केवल ऐतिहासिक या भौगोलिक यात्रा नहीं है - यह देश, आत्मा, धैर्य, भाईचारा और धैर्य का धागा है। इस अद्भुत यात्रा में हर स्थल की अपनी सांस्कृतिक, धार्मिक, ज्योतिषीय और लौकिक महत्ता है।
चैत्र शुक्ल नवमी, पुनर्वसु नक्षत्र, पंच उच्च ग्रह, ज्योतिष का सर्वोच्च संयोग। राजा दशरथ के सपनों, अशुभ संकेतों, शुभ मुहूर्त में राज्याभिषेक का आयोजन-पर नियति के आगे सब असहाय।
राम, सीता, लक्ष्मण ने प्रयाग में ऋषि भरद्वाज से शिक्षा, धैर्य, व्यवहार और विजयी जीवन का मंत्र ग्रहण किया। विजय के बाद पुनः प्रयाग आना गुरु-शिष्य संबंध व मार्गदर्शन की प्रधानता दर्शाता है।
चित्रकूट का पर्वत, सरिता और कई ऋषियों के आश्रम - यह स्थल राम, सीता और लक्ष्मण की साधना, भरत के आगमन, पातिव्रत धर्म की शिक्षा और आदर्श संबंधों का प्रतीक है।
घना वन, ऋषियों को राक्षसों से मुक्ति, सैकड़ों आश्रम, अरण्यवास का चरम।
सुरूपनखा के प्रसंग से शुरू हुआ संघर्ष, सीता-हरण का बीजारोपण; परिवार, नीति और धैर्य की कसौटी।
जटायु का जीवनदान, विन्द काल में सीता का हरण-ज्योतिषीय दृष्टि से संकेत कि धर्म की वस्तु अंततः अपने स्वामी को प्राप्त होती है।
हंपी में सुग्रीव से मिलन-मित्रता का उच्चतम आदर्श; बुरी दशा में मित्रता और सहयोग।
दक्षिण भारत का प्रमुख तीर्थ-जहां राम ने शिवलिंग की स्थापना की, रामसेतु का निर्माण किया, लंका विजय की साधना की।
सीता की अग्नि-सी परीक्षा, हनुमान के पदचिह्न, ग्रहणों की ज्योतिषीय व्याख्या, वास्तुशास्त्र और कृतज्ञता का पाठ।
ऋषि अगस्त्य के आदित्यहृदय उपदेश, विजय मुहूर्त, काल के आगे समर्पण-यही है रामायण का अद्भुत संदेश।
‘कालो हि दुरत्ययः’-समय सर्वोच्च है, यही रामायण का सत्य है। चाहे कोई कितना भी पराक्रमी हो, नियति से बंधा हर पात्र समय के चक्र में ही गतिशील रहता है। ग्रहों, मुहूर्तों, शुभ-अशुभ संकेतों में छिपा है समय का मूल्य और श्रीराम का जीवन इसी दृष्टि का सर्वोच्च उदाहरण है।
आज भी रामायण मार्ग पर बसे वस्त्र, मंदिर, आश्रम-करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा, प्रेरणा, साहस, त्याग और संतुलन का केंद्र बने हुए हैं। जिन स्थानों पर श्रीराम गए, वे आज केवल पौराणिक स्मृति नहीं, जीवंत संस्कृति और सार्वकालिक साधना के केंद्र हैं।
1. श्रीराम को 14 वर्ष का ही वनवास क्यों मिला?
धर्म, ज्योतिष और ब्रह्मांडीय संतुलन - सभी ने पूर्व-नियोजित ढंग से चौदह वर्षों की अवधि को चुना।
2. श्रीराम के जीवन में ज्योतिषीय संकेतों की क्या भूमिका रही?
हर संदर्भ-जन्म, वनवास, युद्ध, विजय-ग्रह, नक्षत्र और मुहूर्त की योजना और संकेतों के अंतर्गत थे।
3. वन गमन मार्ग के कौन-कौन से स्थल सर्वाधिक महत्व रखते हैं?
अयोध्या, प्रयाग, चित्रकूट, दंडकारण्य, पंचवटी, किष्किंधा, रामेश्वरम, लैपाक्षी, अशोक वाटिका, तलैमान्नार।
4. रामायण में 'काल' का महत्व क्यों बार-बार आता है?
क्योंकि काल ही निर्णय, परिवर्तन और समर्पण का सर्वोच्च आधार है - राम ने स्वयं हर चुनौती को नियति के अनुरूप स्वीकार किया।
5. आज के अनुयायियों, विद्यार्थियों और साधकों के लिए संदेश क्या है?
चरित्र, धैर्य, अध्ययन, आध्यात्मिक खोज और जनकल्याण के लिए रामायण और वन गमन पथ का अनुकरण करें; यही विजय का मूल पाठ है।
अनुभव: 32
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इनके क्लाइंट: छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश
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