By पं. अभिषेक शर्मा
अनंत चतुर्दशी 6 सितम्बर 2025 पर होगा गणेश विसर्जन, जानिए कथा और आध्यात्मिक संदेश
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से प्रारंभ होने वाला गणेश उत्सव भारत के सबसे लोकप्रिय पर्वों में से एक है। इस बार गणेश चतुर्थी 27 अगस्त 2025, बुधवार को आएगी और इसी दिन घरों, मंदिरों और पंडालों में गणपति की प्रतिमाएं स्थापित की जाएंगी। दस दिनों तक चलने वाले इस पर्व का समापन अनंत चतुर्दशी के दिन होता है। अनंत चतुर्दशी वर्ष 2025 में 6 सितम्बर, शनिवार को पड़ रही है और इसी दिन गणेश विसर्जन किया जाएगा। यही दिन पूरे देश में भावनाओं, आस्था और धार्मिक उमंग का चरम क्षण बन जाता है।
पर्व | तिथि | दिन |
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गणेश चतुर्थी | 27 अगस्त 2025 | बुधवार |
अनंत चतुर्दशी (विसर्जन) | 6 सितम्बर 2025 | शनिवार |
गणपति की स्थापना जिस श्रद्धा, आडंबर और उल्लास के साथ होती है, उतनी ही श्रद्धा विसर्जन में भी आवश्यक है। स्थापना भगवान गणेश को आमंत्रित करने का प्रतीक है जबकि विसर्जन उन्हें स्नेहपूर्वक विदा करने का। जैसे पूजा पाठ से गणपति घर में विराजित किए जाते हैं, वैसे ही जल में विसर्जन की प्रक्रिया उन्हें नियमानुसार विदा करने का प्रतीक है। यह अनुष्ठान हमें यह स्मरण कराता है कि हर शुरुआत का एक अंत होता है और यही जीवन का सत्य है।
शास्त्रीय मान्यता है कि गणेश दशदिवसीय उत्सव के दौरान प्रत्येक घर में पधारते हैं जहां उनकी स्थापना होती है। भक्त मानते हैं कि वे इन दिनों में घर-घर के दुःख हरते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। उनकी मौजूदगी से वातावरण पवित्र बनता है। विसर्जन का क्षण इसलिए भावुक होता है क्योंकि भक्त मानते हैं कि गणपति अपने प्रस्थान में उनकी सारी कष्टदायक परिस्थितियों को भी साथ लेकर जाते हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार विसर्जन की परंपरा महाभारत काल से जुड़ी है। महर्षि वेदव्यास महाभारत की रचना करना चाहते थे और इस लिए उन्हें ऐसा लेखक चाहिए था जो बिना थके और बिना रुके, निरंतर लेखन कर सके। गणेशजी ने यह कार्य स्वीकार किया मगर एक शर्त के साथ। शर्त यह थी कि वे तभी लिखेंगे जब वेदव्यास अविराम बोलते रहेंगे।
वेदव्यास ने गणेश चतुर्थी के दिन महाकाव्य का वाचन आरंभ किया और भगवान गणेश ने दस दिनों तक लगातार इसे लिखा। दसवें दिन जब महाभारत का लेखन समाप्त हुआ, तो गणेशजी का शरीर इस निरंतर श्रम से इतना अधिक तप्त हो चुका था कि उन्हें तत्काल शीतलता की आवश्यकता हुई।
वेदव्यासजी ने गणेशजी के शरीर का ताप शांत करने के लिए उन्हें पास स्थित एक सरोवर में स्नान कराया। यह दिन अनंत चतुर्दशी था। उसी क्षण से यह परंपरा स्थापित हुई कि दस दिनों की पूजा के बाद गणपति को जल में स्नान कराकर विदा किया जाए। समय के साथ यही प्रक्रिया गणेश विसर्जन का रूप बन गई।
गणेश विसर्जन केवल एक ऐतिहासिक परंपरा भर नहीं है। इसमें गहन दार्शनिक संदेश भी छुपा है। विसर्जन यह सिखाता है कि जीवन क्षणभंगुर है। जैसे मिट्टी की प्रतिमा अंततः जल में मिल जाती है, वैसे ही मनुष्य भी जन्म, जीवन और मृत्यु के चक्र में बंधा हुआ है।
यह त्याग और वैराग्य का पाठ भी पढ़ाता है। प्रिय से प्रिय वस्तु या व्यक्ति से एक दिन हमें अलग होना ही पड़ता है। इस भावनात्मक विदाई में यह शिक्षा शामिल है कि भौतिक संसार का मोह छोड़कर भक्ति, ज्ञान और ईश्वर से जुड़ाव को ही स्थायी मानना चाहिए।
उपनिषदों में कहा गया है कि जैसे नदियां समुद्र में मिलकर अपना नाम और रूप खो देती हैं, वैसे ही आत्मा अंततः परमात्मा में लीन हो जाती है। प्रतिमा का जल में विलय यही शिक्षा देता है। गजानन का जल में विसर्जन इस सत्य को जीवन्त कर देता है कि अंततः आत्मा और परमात्मा एक ही सत्ता हैं जिनमें कोई भेद नहीं है।
आज के समय में जब पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता है तब पारंपरिक रूप से मिट्टी से बनी गणपति प्रतिमाओं का महत्व और बढ़ गया है। ये प्रतिमाएं जल में स्वाभाविक रूप से घुलमिल जाती हैं और पंचतत्वों में वापस लौट जाती हैं। यह प्रक्रिया भक्तों को यह भी सिखाती है कि आस्था और प्रकृति में संतुलन बनाए रखना धर्म का ही हिस्सा है।
गणेश विसर्जन 2025 का पर्व हमें न केवल ऐतिहासिक कथाएं याद कराता है बल्कि यह भी सिखाता है कि परिवर्तन ही जीवन का सत्य है। जो आज है, कल बदल जाएगा। वस्तुएं, संबंध और रूप अस्थायी हैं। केवल श्रद्धा, भक्ति और ज्ञान शाश्वत हैं और यही मनुष्य को जीवन में सही मार्ग दिखाते हैं। विसर्जन इस गहरे संदेश के साथ हर हृदय में भक्ति का नया संकल्प भरता है।
Q: गणेश विसर्जन 2025 किस दिन होगा
A: इस वर्ष गणेश विसर्जन अनंत चतुर्दशी के दिन, 6 सितम्बर 2025 शनिवार को होगा।
Q: गणेश विसर्जन का महाभारत से क्या संबंध है
A: जब महर्षि वेदव्यास महाभारत का वाचन कर रहे थे तो गणेशजी ने दस दिन निरंतर लिखकर उसे पूर्ण किया। अनंत चतुर्दशी के दिन उन्होंने सरोवर में स्नान किया, यही विसर्जन की परंपरा का मूल है।
Q: स्थापना और विसर्जन दोनों क्यों आवश्यक हैं
A: स्थापना गणेशजी को आमंत्रित करने का और विसर्जन उन्हें विदा करने का प्रतीक है। यह जीवन में आरंभ और अंत दोनों के सत्य को दर्शाते हैं।
Q: भक्त गणेशजी को दस दिनों तक घर में क्यों रखते हैं
A: विश्वास है कि इन दस दिनों में गणपति भक्तों के दुख दूर करते हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
Q: विसर्जन हमें क्या जीवन संदेश देता है
A: विसर्जन यह सिखाता है कि शरीर और सांसारिक मोह अस्थायी हैं लेकिन भक्तिभाव और ईश्वर का स्मरण शाश्वत हैं।
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