By पं. अमिताभ शर्मा
धर्म और नीति के मूक रक्षक: विभीषण का भुला दिया योगदान
रामायण का समृद्ध संसार सदियों से भारतीय समाज की संस्कृति, जीवनदर्शन और नैतिकता का आधार रहा है। राम और रावण की संघर्ष गाथा अक्सर यश और विजयों के इर्द-गिर्द घूमती है। किंतु उस कथा में एक चरित्र ऐसा है जो प्रायः इतिहास की छाया में चला जाता है - वह है विभीषण।
विभीषण लंका के राक्षस परिवार में जन्मे अवश्य, किन्तु उनका हृदय सदा धर्म, करुणा और सत्य का स्रोत रहा। जब लंका घमंड और मोह के अंधकार में डूब गई, तभी उस पृष्ठभूमि पर विभीषण का चरित्र आदर्श बन कर उभरा।
रामायण में प्रमुख घटनाक्रम विशेष तिथियों तथा विधियों से जुड़ा है। जब रावण और राम के मध्य घमासान युद्ध हुआ तब अमावस्या और पूर्णिमा की रात्रि, शनिवार एवं मंगलवार के दिन रणनीति और युद्ध के लिए विशेष माने जाते थे। औषधियों के संग्रह, विशेषकर संजीवनी बूटी, के लिए मुहूर्त का ध्यान रखा गया था।
नीचे सारणी में उन अनुष्ठानों, वनस्पतियों और काल विशेष का विवरण दिया गया है, जिनका उल्लेख विभीषण ने राम की सेना के उपचार हेतु किया -
उपयोग | तिथि/दिन | औषधि | प्रयोगकर्ताओं के नाम |
---|---|---|---|
जीवित करना | लक्ष्मीपुत्र अमावस्या | संजीवनी बूटी | हनुमान, जाम्बवान, सुशेन वैद्य |
रक्तस्त्राव नियंत्रण | शनि अमावस्या | विशल्यकरणी | लक्ष्मण, वानर वीर |
शक्ति वृद्धि | पौर्णमासी | संजीवनी, विमलकरणी | अंगद, नल-नील |
रावण और कुंभकर्ण की शक्ति और घमंड के बीच विभीषण का व्यक्तित्व सदैव अलग रहा। उन्होंने जीवन को धर्म और सदाचार के सिद्धांतों के अनुसार जिया। जहां रावण भगवान शिव के भक्त और युद्धप्रिय थे वहीं विभीषण की श्रद्धा श्रीहरि विष्णु के प्रति थी और उनका स्वभाव शांत, संयमी तथा श्रद्धालु था।
लंका में पले-बढ़े होने के बावजूद उनका दृष्टिकोण भिन्न था। उनका जीवन यह सिद्ध करता है कि जन्म किसी स्थान या परिवार में हो सकता है, लेकिन आत्मा की प्रवृत्ति और संस्कार ही व्यक्ति को महान बनाते हैं।
पौराणिक संस्मरण अनुसार विभीषण ने घोर तपस्या की। उनकी भक्ति और निस्वार्थ भाव को देखकर ब्रह्मा जी ने उन्हें वह अद्वितीय वरदान प्रदान किया, जिसे अक्सर जनमानस भूल जाता है।
ब्राह्मण ग्रंथों में बताया गया है कि यह वरदान केवल ज्ञान नहीं, अपितु परम विश्वास और जिम्मेदारी का प्रतीक था।
रामायण का युद्ध केवल अस्त्र-शस्त्र का नहीं, ज्ञान और सहकार का भी था। जब लक्ष्मण शक्तिबाण से मूर्छित हुए तब विभीषण ने सुशेन वैद्य को उचित औषधि तथा प्रक्रिया बताई। उन्होंने उचित दिन, सही माँग और औषधियों की पहचान के साथ मार्गदर्शन दिया।
वानर सेना की अनेक जटिल समस्याएं तथा घायल योद्धाओं का उपचार भी विभीषण के सुझावों से संभव हुआ।
तालिका: जिनका जीवन विभीषण के कारण बचा
योद्धा का नाम | स्थिति | औषधि | परिणाम |
---|---|---|---|
लक्ष्मण | मूर्छित | संजीवनी | बचाया गया |
अंगद | चोटिल | विशल्यकरणी | स्वस्थ किया |
नल-नील | घायल | संजीवनी | पुनः युद्ध में लौटे |
यदि विभीषण का मार्गदर्शन नहीं मिलता तो शायद राम की सेना इतनी लंबी लड़ाई नहीं लड़ पाती।
इतिहास में कई बार विभीषण को अपने भाई रावण का साथ छोड़ने के लिए दोषी कहा गया। किंतु वास्तविकता उनकी निष्ठा व धर्मनिष्ठ निर्णय में छुपी है।
रावण का मार्ग अपधर्म की ओर जा चुका था, विभीषण ने धर्म का पथ अपनाया। उनके लिए भाईचारा या रक्त संबंध से बड़ा कर्त्तव्य न्याय और धर्म का था। इसीलिए उन्होंने राम का पक्ष चुना और परिणामतः लंका में सत्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया।
उनका उदाहरण सिखाता है कि जन्म, परिवार और भावनाओं के बावजूद, धर्म और न्याय का साथ ही जीवन में स्थायी शांति, सम्मान और संतुलन ला सकता है।
राम के विजय अभियान और हनुमान की भक्ति के गीतों के बीच विभीषण की भूमिका अक्सर उपेक्षित रह जाती है। परंतु उनके प्रयासों ने ही असंख्य जानें बचाईं और धर्म की शक्ति को जीवित रखा।
ज्यादातर योद्धा शस्त्र से लड़ते हैं, पर वास्तविक नायक वे भी होते हैं जो मौन, सेवा और करुणा से समाज का संरक्षण करते हैं। विभीषण ऐसे ही नायक थे - जिनकी वाणी, बुद्धि और वरदान धर्म-रूपी चिह्न बन गई।
1. विभीषण को ब्रह्मा जी ने कौन सा वरदान दिया था?
विभीषण को ब्रह्मा जी ने दुर्लभ औषधियों और जीवनदायिनी रहस्यों का ज्ञान दिया, जिससे वे मृतप्राय योद्धाओं को पुनर्जीवित कर सके।
2. क्या विभीषण के नेतृत्व के बिना राम की जीत संभव थी?
संभावना कम थी, क्योंकि लक्ष्मण और अन्य योद्धाओं का जीवन बचाना मुख्य रूप से विभीषण के ज्ञान व मार्गदर्शन से ही मुमकिन हुआ।
3. विभीषण ने धर्म के विरुद्ध जाकर अपने भाई का साथ क्यों छोड़ा?
उन्होंने धर्म और सत्य का पथ चुना। अपने कर्तव्यों की पहचान समझी और अन्याय का समर्थन नहीं किया।
4. युद्ध में विभीषण की भूमिका किस प्रकार छुपी रही?
वे सेना का मनोबल, औषधियों की जानकारी और रणनीति के बिना परदे के पीछे काम करते रहे, जिससे उनकी वास्तविक भूमिका अक्सर उपेक्षित रह गई।
5. विभीषण की गाथा से आज के समाज को क्या सीख मिलती है?
धर्म, करुणा और सत्य की राह पर चलकर ही समाज में संतुलन, शांति और सम्मान सुनिश्चित किया जा सकता है।
इतिहास के हर युग में युद्ध केवल युद्धभूमि में ही नहीं, अंतरात्मा के मैदान में भी लड़े जाते हैं। विभीषण की गाथा इस सत्य की याद दिलाती है। उनका जीवन सिखाता है कि वीरता केवल शस्त्र और बाहुबल में नहीं बल्कि ज्ञान, नीति और करुणा में भी छिपी होती है।
धर्म की रक्षा के लिए कभी-कभी सबसे कठिन निर्णय लेना पड़ता है। विभीषण की विरासत बताती है कि नायक वही है जो कठिन परिस्थितियों में भी सत्य का साथ छोड़ने को तैयार नहीं होता। यही आदर्श हर युग की, हर पीढ़ी की राह रोशन करता है।
अनुभव: 32
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