By पं. नीलेश शर्मा
जानिए श्मशान में शिव के निवास के पीछे छिपा गहरा प्रतीकवाद और मनोवैज्ञानिक सन्देश
भारतीय संस्कृति में जब देवी-देवताओं की पूजा भव्य मंदिरों, धूप-दीप और रेशमी वस्त्रों के बीच होती है, शिव का चयन सबसे अलग है। जहाँ विष्णु अनंत शेष पर सुशोभित हैं, लक्ष्मी कमल-कुंडों में वास करती हैं, वहीं शिव ने श्मशान भूमि को अपना गृह बनाया है। भस्म से ढके, जटाधारी, व्याघ्रचर्म धारण किए शिव समाज में प्रचलित ‘संहार’ के देवता ही नहीं हैं, बल्कि वे वहाँ बसते हैं, जहाँ से बाकी सब दूर भागते हैं।
हिंदू परंपरा में श्मशान भूमि वह जगह है जहाँ जीवन का परम सत्य सामने आ जाता है। वहाँ न कोई धन, न कोई ओहदा, न सौंदर्य-सब एकसार हो जाता है। जो देह कभी अहंकार और वासनाओं से भरी थी, वही यहाँ पंचतत्व में विलीन हो जाती है। शिव के लिए श्मशान कोई भयावह जगह नहीं, बल्कि यथार्थ की भूमि है-माया की सारी परछाइयाँ यहाँ अग्नि में भस्म हो जाती हैं।
शिव इसी क्षेत्र में ध्यान करते हैं-अनित्य जीवन, वैराग्य और परम सत्य की अनुभूति के लिए।
शिव का श्मशान-निवास मात्र भौतिक नहीं, बल्कि गहरा प्रतीक है। उनके भस्म से ढके अंग, कपालमाला, तीसरी आँख-यह हर स्वरूप अपने आप में शिक्षा है।
शिव जीवन को अस्वीकार नहीं करते, बल्कि मृत्यु को स्वीकार कर उसके पार जाते हैं।
संस्कृत में ‘वैराग्य’ का अर्थ है-वासनाओं के अधीन हुए बिना जीवन जीना। शिव इसके साक्षात् प्रतीक हैं। वे गृहस्थ भी हैं-पार्वती से प्रेम, बालकों के संग स्नेह-और सन्यासी भी-श्मशान में एकाकी ध्यानरत।
उनका यह द्वैत सिखाता है कि सच्चे प्रेम में श्रंखला नहीं होती; सच्चा जीवन छोड़ने और थामने दोनों में संतुलन जानता है। शिव संकेत करते हैं कि पकड़े रहना दुख की जड़ है, छोड़ना ही शांति की ओर बढ़ाता है।
आधुनिक जीवन में मृत्यु को छुपा लिया गया है-अस्पतालों की दीवारों में, फुसफुसाहटों में। शिव के लिए मृत्यु जीवन का सबसे बड़ा शिक्षक है-यह अभिमान तोड़ती है, सत्य दिखाती है, और वर्तमान को मूल्यवान बनाती है।
श्मशान की राख में बैठकर शिव समझाते हैं-धन, यश, नियंत्रण सब क्षणिक हैं। केवल आत्मज्ञान ही शेष बचता है।
अघोरी और तांत्रिक साधक शिव के मार्ग पर चलते हुए स्वयं श्मशान में ध्यान करते हैं। कभी-कभी मृत्यु का साक्षात्कार, मोक्ष की सबसे छोटी राह बन जाता है-
ये वही प्रश्न हैं, जिनसे आत्मबोध की यात्रा शुरू होती है। शिव जवाब नहीं, साक्षात्कार में आमंत्रण देते हैं।
आज के स्थायित्व-लोलुप संसार में-जहाँ सुंदरता, पहचान, और सोशल मीडिया मानक बन गए हैं-शिव विद्रोही परंपरा के हैं:
शिव सिखाते हैं-कभी-कभी जीवन के श्मशान में बैठना सीखो-अर्थात् जब कुछ छूटे, हार मिले, दुख या शून्यता आए-तो उसके साथ रुको, भागो मत। वही साहस जागृत करता है, वही राख में भी बीज बनाता है।
अघोरियों की साधना समाज में गैर परंपरागत मानी जाती है, परंतु उनका दर्शन शिव के निर्भीक, सम्पूर्ण स्वीकार से उपजा है। वे शवों के निकट ध्यान लगाते हैं, कपाल से भोजन करते हैं-अशुद्धता का अनुभव, उन्नयन के लिए।
उनका मत है-यदि तुम मृत्यु और विनाश में भी परमात्मा को देख सको, तो वह हर जगह प्रकट होगा। यह राह सभी के लिए नहीं, पर यह स्पष्ट करता है कि श्मशान साधना भय का विषय नहीं, आत्म-परिवर्तन की प्रयोगशाला है।
एक प्राचीन कथा है-पार्वती पूछती हैं, ‘‘अन्य देवता महलों में निवास करते हैं, पर आप मृतात्माओं के बीच क्यों?’’ शिव विनम्रता से उत्तर देते हैं-‘‘मृत नहीं झूठ बोलते, न छलते हैं। वहाँ केवल सत्य है।’’
श्मशान न अंत का, बल्कि जागरण का स्थल बन जाता है।
शिव का मार्ग: जीवन की भीड़ में मौन खोजें
हर व्यक्ति को श्मशान जाने की आवश्यकता नहीं, लेकिन जीवन में जब भी कुछ समाप्त हो, ठहरना सीखिए। बेचैनी से भागिए मत, न खुद को व्यस्त करिए। उस क्षण के संग बैठिए-उसे जलने दीजिए, शेष राख से जीवन का नया अर्थ निकलेगा।
यही शिव का तरीका है-अंत का सामना करना, उसमें समाहित होना; और वहीं से नए प्रारंभ की चेतना जागृत करना।
क्योंकि राख के बाद ही स्पष्टता मिलती है, वैराग्य से मुक्ति प्रारंभ होती है, और मौन में ज्ञान की वाणी सुनाई देती है।
श्मशान के इस योगी का संदेश पूजा का नहीं, जागरण का आमंत्रण है।
प्रतीक/पहलू | अर्थ / संदेश |
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भस्म | संसारिकता की अस्थिरता और अंतिम सत्य की याद |
तीसरी आँख | द्वैत से परे देखना, समता |
कपाल-मंडल | मृत्यु से निर्भयता और वैराग्य |
श्मशान | यथार्थ, माया का क्षय, अंतिम समानता |
फैमिली के साथ शिव | जीवन और सन्यास, प्रेम व वैराग्य का संतुलन |
अघोरी साधना | मृत्यु, अपवित्रता के पार परमात्मा का अनुभव |
पार्वती के प्रश्न पर उत्तर | सत्य की खोज, छल से परे जाना |
यह कथा केवल देवता की नहीं, बल्कि हर स्वयं में छुपी जागरूकता, निर्भयता और गहराई को प्राप्त करने की सीख है-जिसे शिव हर श्मशान की राख में शब्दहीन आमंत्रण की तरह दोहराते हैं।
अनुभव: 25
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