By अपर्णा पाटनी
चरण-स्पर्श, अनन्य शक्ति, विनम्रता, गंगा कथा, वैदिक विचार, FAQs
सनातन धर्म का वैदिक दर्शन केवल पूजा, मंत्र, या प्रतिमा तक सीमित नहीं बल्कि अस्तित्व की जड़, आधार, विनम्रता और अहंकार मुक्ति की परंपरा है।
भारतीय संस्कृति में बार-बार यह उद्घोष होता है कि जो झुकता है, वही मिलता है, वही सच्चा ज्ञानी व समर्थ होता है।
परंपराओं, वेदों, पुराणों, आध्यात्मिक ग्रंथों और सामाजिक व्यवहार में भगवान विष्णु के चरणों की जो महिमा गायी गयी है, वह केवल प्रतीकात्मकता नहीं बल्कि गहरा तात्त्विक, मनोवैज्ञानिक और परिवारिक जीवन का मंत्र है।
इस विस्तृत आलेख में पढ़िए-चरणों की शक्ति, ब्रह्मा के झुकने का रहस्य, गंगा की उत्पत्ति का आसमानी प्रसंग और हर जीवन के लिए इससे जुड़ी अद्भुत शिक्षाएं।
ऋग्वेद के पुरुष सूक्त के अनुसार, जब पुरूष-वह सार्वभौमिक चेतना-ने जगत की सृष्टि की, तो दैहिक अंगों से अलग-अलग तत्व निकले;
विष्णु पुराण में वामन अवतार की कथा में भगवान विष्णु ने बौने ब्राह्मण का स्वरूप लिया।
उनके तीन विशाल पगों में-स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल समा गए।
बली जैसे अहंकारी असुर ने अपना सब-कुछ चरणों में समर्पित किया तब 'पराजय' नहीं, 'गौरवपूर्ण आत्म-समर्पण' हुआ।
जिस क्षण विष्णु के चरण ब्रह्मा के सत्यलोक पहुंचे, ब्रह्मा ने विनय से त्रिदेव-स्वरूप चरणों को अपने कमंडल से धोया और ‘गंगा’ के रूप में धरती पर प्रवाहित किया।
गंगा का जल पवित्र क्यों है? क्योंकि उसमें भगवान के अद्भुत चरणों का स्पर्श, ब्रह्मा की विनम्रता और सनातन संतुलन की ऊष्मा मिली है।
शास्त्र/मान्यता | कथानक/विशेषता |
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पुरुष सूक्त (ऋग्वेद) | चरणों से धरती, आधार की सर्वोच्चता |
विष्णु पुराण | वामन के पग, ब्रह्मा का स्नान, गंगा की उत्पत्ति |
भागवत पुराण | चरणरज मात्र कितना पवित्र, जन्मों की गलती दूर |
आधुनिक शोध भी मानते हैं कि चरण-स्पर्श, वंदना, आशीर्वाद के लिए झुकना-इन सभी का हमारे मनोविज्ञान, स्वास्थ्य और सामाजिक बंधन पर सकारात्मक असर पड़ता है।
मंदिर में, पूजा के समय मूर्ति के चरण स्पर्श किए जाते हैं-क्योंकि सिर झुकाने से अहंकार गलता है और कभी सिर में उमड़ा तनाव, ओढ़ा डर या भ्रम स्वतः शान्त हो जाता है।
गुरु, माता-पिता, बड़े-बुजुर्ग, यहां तक कि घर की देहरी, नया घर, या किताब-हर मत्वपूर्ण वस्तु या संबंध के चरण छूकर, शक्ति, सफल भविष्य और सकारात्मक ऊर्जा के लिए विनम्रतापूर्वक सबको निमंत्रण दिया जाता है।
जीवन प्रसंग | चरण-स्पर्श या चरण पूजा का औचित्य |
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मन्दिर | भगवान के चरण, कष्ट और अहंकार का नाश, प्राप्ति का माध्यम |
गुरु/बुजुर्ग | ज्ञान, आशीर्वाद और परंपरा का आदान-प्रदान |
नये घर, गृहप्रवेश | सुख, समृद्धि, भूमि की रक्षा, सकारात्मकता |
श्रीलक्ष्मी हमेशा विष्णु के चरणों में विराजमान रहती हैं।
यह न तो हीनता है, न ही अधिकार-यह प्रेम, सेवा और ऊर्जा का मूलदृष्टिकोण है।
विष्णु के चरणों को आदर्श श्रेष्ठता मानकर ब्रह्मा द्वारा स्नान कराना, गंगा को धरती का जीवनधारा बनाना, बलि जैसे असुर को भी अहंकार विस्मरण कराने वाला बनना-यह सब सिद्ध करता है कि केवल सिर का मुकुट नहीं बल्कि चरण का स्पर्श असल सम्पूर्णता, पोषण और शक्ति का सृजन है।
वेद, तंत्र और आज के मनोविश्लेषण-तीनों बताते हैं कि चरण-स्पर्श:
पक्ष | लाभ और ऊर्जा |
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मनोवैज्ञानिक | तनाव, अहंकार, भय का क्षय; भावनात्मक स्थिरता |
सामाजिक-सांस्कृतिक | अनुशासन, रिश्तों में मिठास, नेतृत्व में शक्ति |
आध्यात्मिक | गुरु-कृपा, परंपरा, आत्मा की स्थिरता, मोक्ष उर्जा |
प्रश्न 1: क्या चरण-स्पर्श में केवल धर्म/आस्था का तत्व है, या स्वास्थ्य, मनोबल और विज्ञान भी है?
उत्तरा: इसका असर मन, शरीर और संबंध के हर स्तर पर होता है-खुद को धरती से जोड़ने, परिवार/गुरु से शक्ति मिलने और समाज में संबंध बनने तक।
प्रश्न 2: क्या हर पूजा, आरती, संस्कार में चरणों की पूजा वैसे ही होती है?
उत्तरा: परंपराओं के अनुसार, सबसे पहले चरणों का अभिषेक, स्नान, पुष्प अर्पण और चरणामृत ग्रहण किया जाता है-यह अनिवार्य है।
प्रश्न 3: क्या ब्रह्मा द्वारा विष्णु चरण धोने से गंगा धरती पर आई?
उत्तरा: शास्त्रों और काव्यकथाओं के अनुसार, यही पौराणिक मान्यता है; गंगा का पवित्रत्व चरण-स्पर्श के कारण है।
प्रश्न 4: क्या स्नान, गृहप्रवेश, परीक्षा या नया कार्य शुरू करते समय चरण-स्पर्श जरूरी है?
उत्तरा: यह शुभ, ऊर्जा व प्रगति के लिए जरूरी माने जाते हैं-चरणों का स्पर्श भविष्य की सकारात्मकता की नींव है।
प्रश्न 5: क्या चरण-स्पर्श हर आयु, धर्म, या समाज के लिए समान उपयोगी है?
उत्तरा: हां, चरण-स्पर्श मानवीयता, संस्कृति, अनुशासन, सम्मान और शक्ति के सबसे गहरे प्रेरक हैं।
विष्णु के चरणों की पूजा केवल धार्मिक परिपाटी, काव्य या पुराण-कथा नहीं बल्कि जीवन के हर संघर्ष, प्रेम, विजय, विफलता और संबंध की नींव है।
जहां अहंकार, बंधन या असुरक्षा की भावना भारी हो-सिर झुकाकर, श्रद्धा से “चरण” के द्वारा जुड़ना, जीवन जीने की सबसे गहरी विधि है।
यह सूर्य की तरह, अमृत की तरह और गंगा जैसी निर्मलता का गूढ़ प्रतीक है।
अनुभव: 15
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इनके क्लाइंट: म.प्र., दि.
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