By पं. नीलेश शर्मा
जानिए वासुकी नाग के त्याग, सेवा और शिवभक्ति से जुड़ी प्रेरणादायक कहानी, जो धर्म और समर्पण का प्रतीक है।
भारतीय पौराणिक कथाओं में नागों का विशेष स्थान है, और उनमें भी वासुकी नाग का नाम श्रद्धा, त्याग और भक्ति की मिसाल के रूप में लिया जाता है। वासुकी न केवल नागों के राजा हैं, बल्कि वे भगवान शिव के परम भक्त, समुद्र मंथन के नायक और शिव के गले का दिव्य आभूषण भी हैं। उनकी कथा में धर्म, साहस, सेवा और समर्पण की अद्भुत झलक मिलती है।
वासुकी नाग का जन्म महर्षि कश्यप और माता कद्रू से हुआ था। वे शेषनाग, तक्षक आदि अन्य नागों के भाई हैं, लेकिन उनका स्थान सबसे विशिष्ट है। वासुकी को नागों का राजा कहा जाता है। वे अत्यंत शक्तिशाली, दीर्घकाय और सहनशील माने जाते हैं। उनकी भक्ति और धर्मनिष्ठा के कारण ही उन्हें देवताओं और भगवान शिव का सान्निध्य प्राप्त हुआ।
समुद्र मंथन की कथा सनातन धर्म की सबसे प्रसिद्ध गाथाओं में से एक है। जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन का निर्णय लिया, तो सबसे बड़ी चुनौती थी - मंथन के लिए रस्सी कौन बने। तब वासुकी नाग ने स्वयं को समर्पित कर दिया। उन्होंने मंदराचल पर्वत को अपने विशाल शरीर से लपेटा और देवताओं-असुरों के लिए रस्सी बन गए। मंथन के दौरान मंदराचल पर्वत की रगड़ से वासुकी नाग का शरीर छिल गया, वे पीड़ा से कराह उठे, लेकिन उन्होंने सेवा और धर्म का मार्ग नहीं छोड़ा। समुद्र मंथन के दौरान सबसे पहले हलाहल विष निकला, जिससे तीनों लोक संकट में आ गए। वासुकी नाग ने विष की तीव्रता को भी सहा और भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में धारण किया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया। वासुकी नाग की इस तपस्या और त्याग ने सभी को चकित कर दिया।
समुद्र मंथन के बाद वासुकी नाग अत्यंत थक गए थे। भगवान विष्णु के कहने पर वे प्रयागराज में विश्राम करने पहुंचे। वहीं, उनकी भक्ति और समर्पण को देख भगवान शिव ने उन्हें अपने गले में स्थान दिया। शिव के गले में वासुकी नाग का वास केवल एक आभूषण नहीं, बल्कि शिव की करुणा, शक्ति, भय और विष पर विजय, और भक्त के प्रति प्रेम का प्रतीक है। वासुकी ने शिव के गले में लिपटकर न केवल उनका आभूषण बनना स्वीकार किया, बल्कि शिव के तेज और विष को भी संतुलित किया। शिव के गले में वासुकी का होना यह दर्शाता है कि जो सच्ची भक्ति और सेवा करता है, उसे भगवान अपने सबसे समीप स्थान देते हैं।
वासुकी नाग भगवान शिव के प्रति पूर्ण समर्पित भक्त रहे हैं। उनकी भक्ति, सेवा और त्याग के कारण ही शिव ने उन्हें अपने गणों में प्रमुख स्थान दिया। वासुकी को शिव के गले में धारण करने से यह भी संदेश मिलता है कि शिवजी ने नकारात्मक शक्तियों, भय और मृत्यु पर विजय प्राप्त की है, और अपने भक्तों को हर संकट से बचाने का वचन दिया है। नाग पंचमी के पर्व पर वासुकी नाग की विशेष पूजा की जाती है और शिवभक्त उनके दर्शन से सर्पदोष और भय से मुक्ति पाते हैं।
वासुकी नाग की कथा केवल पौराणिक नहीं, बल्कि आज के जीवन के लिए भी उतनी ही प्रासंगिक है। यह कहानी सिखाती है कि सच्ची भक्ति, सेवा और त्याग से ही जीवन में सच्चा सम्मान और दिव्यता मिलती है। अगर आपको यह कथा प्रेरक लगी हो, तो इसे अपने मित्रों और परिवार के साथ जरूर साझा करें - क्योंकि वासुकी नाग की तरह हर जीवन में त्याग, सेवा और भक्ति की आवश्यकता है।
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