By पं. संजीव शर्मा
रामायण, वामन अवतार और वैदिक प्रतीकों में पुनर्वसु नक्षत्र की बार-बार शुरुआत और विजय की दिव्य ऊर्जा प्रकट होती है।
पुनर्वसु नक्षत्र (मिथुन 20°00' - कर्क 3°20') वैदिक ज्योतिष में “पुनः शुभ” या “प्रकाश की वापसी” का प्रतीक है। इसका स्वामी बृहस्पति है और अधिष्ठात्री देवी अदिति हैं। यह नक्षत्र जीवन में बार-बार नई शुरुआत, कठिनाई के बाद सफलता और हर अंधकार के बाद उजाले की अमर ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। रामायण, पुराण और वेदों में पुनर्वसु का यह चक्र बार-बार दिखाई देता है-जहाँ हर अंत एक नई शुरुआत का द्वार बनता है।
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पुनर्वसु नक्षत्र का प्रतीक “तरकश” (Quiver of Arrows) है, जिसमें तीर खत्म होने के बाद भी बार-बार भर जाते हैं।
रामायण में श्रीराम का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र में हुआ था। उनका जीवन स्वयं पुनरुत्थान और आशा का प्रतीक है।
पुराणों के अनुसार, जब असुरराज बलि ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया, तब देवताओं की माता अदिति ने विष्णु से प्रार्थना की। विष्णु ने पुनर्वसु नक्षत्र में वामन अवतार लिया।
कथा का संदेश: पुनर्वसु नक्षत्र की तरह जब भी जीवन में असंतुलन, अन्याय या कठिनाई आती है, तब पुनः प्रकाश, धर्म और समृद्धि लौटती है।
प्रसंग | पुनरुत्थान/पुनरावृत्ति का प्रतीक |
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श्रीराम की अयोध्या वापसी | आशा, विजय, धर्म की पुनर्स्थापना |
वामन अवतार | पृथ्वी का पुनर्नवीनीकरण, संतुलन |
जीवन में नई शुरुआत | कठिनाई के बाद सफलता, बार-बार प्रयास |
तरकश (Quiver of Arrows) | हर बार तीर खत्म होने के बाद फिर से भरना |
पुनर्वसु नक्षत्र हमें सिखाता है कि जीवन में कोई भी कठिनाई, विफलता या अंधकार अंतिम नहीं है।
पुनर्वसु: जहाँ हर अंत के बाद एक नई शुरुआत, हर अंधकार के बाद उजाला और हर कठिनाई के बाद सफलता है। यही है जीवन का चक्र, यही है वैदिक पुनरुत्थान का सत्य।
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अनुभव: 15
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