पुनर्वसु नक्षत्र (मिथुन 20°00' - कर्क 3°20') का स्वामी बृहस्पति और अधिष्ठाता देवी अदिति हैं। अदिति को वेदों में असीम करुणा, दानशीलता, क्षमा और पोषण की देवी कहा गया है। इसी वैदिक ऊर्जा का विस्तार रामायण में श्रीराम के चरित्र में दिखता है-जहाँ वे शबरी, केवट, विभीषण जैसे साधारण, उपेक्षित या शरणागत पात्रों को गले लगाते हैं। यह नक्षत्र जीवन में बार-बार लौटती आशा, सहायता और दया का प्रतीक है।
अदिति की दानशीलता, सहायता और क्षमा
अदिति-देवताओं की माता-केवल सृष्टि की जननी नहीं, बल्कि असीम दया और क्षमा की मूर्ति भी हैं।
- ऋग्वेद में अदिति को "बंधन मुक्त करने वाली", "सुरक्षा देने वाली" और "असीम दान की देवी" कहा गया है।
- जब भी देवता संकट में पड़े, अदिति ने न केवल उनकी रक्षा की, बल्कि असुरों के प्रति भी करुणा दिखाई।
- अदिति का मातृत्व केवल अपने पुत्रों तक सीमित नहीं, बल्कि समस्त सृष्टि के लिए है-वे हर प्राणी को अपनाती हैं, क्षमा करती हैं और बार-बार जीवन में पुनर्नवीनीकरण की शक्ति देती हैं।
श्रीराम द्वारा शबरी, केवट, विभीषण आदि को अपनाने की कथा
1. शबरी की कथा: भक्ति और स्वीकृति
शबरी भीलनी, समाज से उपेक्षित, लेकिन श्रीराम की अनन्य भक्त।
- शबरी ने वर्षों तक अपने गुरु मतंग ऋषि की आज्ञा से श्रीराम के आगमन की प्रतीक्षा की।
- जब श्रीराम उनके आश्रम पहुँचे, शबरी ने प्रेमपूर्वक बेर अर्पित किए-पहले चखकर, ताकि वे मीठे हों।
- श्रीराम ने बिना भेदभाव, प्रेमपूर्वक वे बेर स्वीकार किए।
- यह प्रसंग दर्शाता है कि भगवान केवल भक्ति, प्रेम और सेवा को स्वीकार करते हैं जाति, पद या समाज की मान्यता को।
2. केवट की कथा: सेवा और समर्पण
वनवास के दौरान श्रीराम, सीता और लक्ष्मण को गंगा पार कराने के लिए केवट (नाविक) ने भगवान के चरण धोने की जिद की।
- केवट को विश्वास था कि श्रीराम के चरणों का स्पर्श उसकी नाव को भी दिव्य बना देगा।
- उसने पूरे गाँव को चरणामृत पिलाया, अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए श्रीराम से आशीर्वाद माँगा।
- श्रीराम ने उसकी सेवा, निष्काम भक्ति और समर्पण को अपनाया-और उसे गले लगाया।
- यह कथा दर्शाती है कि सच्ची सेवा और समर्पण का मूल्य भगवान स्वयं पहचानते हैं।
3. विभीषण की कथा: शरणागत वत्सलता
लंका में जब विभीषण को रावण ने अपमानित कर राज्य से निकाल दिया, तो वह श्रीराम की शरण में आया।
- श्रीराम ने सबके विरोध के बावजूद विभीषण को गले लगाया, कहा-"जो भी मेरी शरण में आएगा, मैं उसे स्वीकार करूंगा।"
- युद्ध के बाद विभीषण को लंका का राजा बनाया।
- यह प्रसंग बताता है कि सच्चे दाता, करुणावान और धर्मपरायण व्यक्ति अपने शरणागत को कभी निराश नहीं करते।
पुनर्वसु नक्षत्र: दान, सहायता और क्षमा का ज्योतिषीय और आध्यात्मिक संदेश
गुण/कथा और प्रतीक/संदेश
गुण/कथा | प्रतीक/संदेश |
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अदिति | असीम दया, क्षमा, पोषण, बंधनमुक्ति |
शबरी | भक्ति, स्वीकृति, जातिवाद का खंडन |
केवट | निष्काम सेवा, समर्पण, सामाजिक समावेश |
विभीषण | शरणागत वत्सलता, न्याय, धर्म की रक्षा |
पुनर्वसु | बार-बार सहायता, आशा, नई शुरुआत, पुनरुत्थान |
- पुनर्वसु नक्षत्र अदिति की तरह हर बार जीवन में सहायता, दया और क्षमा का संदेश देता है।
- यह नक्षत्र बताता है कि सच्चा धर्म वही है, जिसमें सबको अपनाने, क्षमा करने और सहायता देने की शक्ति हो।
कथा का सार और जीवन के लिए संदेश
पुनर्वसु नक्षत्र और अदिति की दानशीलता की ऊर्जा श्रीराम के चरित्र में बार-बार प्रकट होती है-चाहे वह शबरी के बेर हों, केवट की सेवा हो या विभीषण की शरणागति।
- जीवन में जब भी कोई उपेक्षित, दुखी या शरणागत आपके पास आए, तो अदिति और श्रीराम की तरह उसे अपनाएँ, सहायता करें, क्षमा करें।
- यही सच्चा धर्म, यही पुनर्वसु की ज्योतिषीय और आध्यात्मिक शक्ति है।
पुनर्वसु नक्षत्र: जहाँ हर बार दया, सहायता और क्षमा से जीवन में नई शुरुआत, आशा और समावेश का दीप जलता है।