By पं. अभिषेक शर्मा
सूर्य आत्मा, पिता, आत्मविश्वास और करियर का कारक है, जानें इसका महत्व और प्रभाव।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को समस्त ग्रहों का राजा और आत्मा का कारक ग्रह कहा गया है। जन्म कुंडली के अध्ययन में इसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। सूर्य केवल ग्रह नहीं, बल्कि आत्मविश्वास, पिता, आत्मा, मान-सम्मान, प्रशासनिक पद और जीवन की दिशा का प्रतीक है।
लग्न कुंडली में जिस राशि में सूर्य स्थित होता है, वही आपकी सूर्य राशि कहलाती है। उदाहरण के लिए यदि सूर्य आपकी जन्म कुंडली में चौथी राशि कर्क में स्थित है, तो आपकी सूर्य राशि कर्क होगी। सूर्य राशि से जातक के आत्मविश्वास, स्वभाव और जीवन के उद्देश्य का आकलन किया जाता है।
भाव | प्रभाव |
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प्रथम भाव | जातक आत्मविश्वासी, नेतृत्व क्षमता प्रबल, समाज में मान्यता। |
द्वितीय भाव | वाणी में तेज, परिवार और धन पर प्रभाव। |
तृतीय भाव | साहस, भाई-बहनों के साथ संबंध, पराक्रम में वृद्धि। |
चतुर्थ भाव | माता, गृहस्थ जीवन और स्थायी संपत्ति पर असर। |
पंचम भाव | शिक्षा, संतान और रचनात्मकता में लाभ। |
षष्ठ भाव | शत्रुओं पर विजय, सेवा क्षेत्र में सफलता, स्वास्थ्य पर ध्यान। |
सप्तम भाव | विवाह, दाम्पत्य जीवन और साझेदारी पर प्रभाव। |
अष्टम भाव | गुप्त चिंताएं, अचानक संकट या परिवर्तन। |
नवम भाव | भाग्य, धर्म और उच्च शिक्षा में लाभ। |
दशम भाव | करियर, प्रशासनिक सफलता, सरकारी पद और प्रसिद्धि। |
एकादश भाव | धन, लाभ, मित्रता और इच्छापूर्ति। |
द्वादश भाव | खर्च, विदेश यात्रा, त्याग और आध्यात्मिकता। |
लग्न कुंडली में सूर्य जिस राशि में स्थित होता है वही सूर्य राशि कहलाती है।
प्रथम, नवम और दशम भाव में सूर्य शुभ और प्रभावी फल देते हैं।
सूर्य की महादशा में करियर, प्रशासनिक पद और मान-सम्मान की वृद्धि होती है।
सूर्य मेष में उच्च और तुला में नीच होते हैं।
सूर्य आत्मा, पिता, आत्मबल और समाज में मान-सम्मान का प्रतीक है।
अनुभव: 19
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