By पं. संजीव शर्मा
भाई-बहन के स्नेह और परंपरा का पावन उत्सव
भाई दूज जिसे भारत के अलग-अलग हिस्सों में भाई फोटा, भाऊ बीज, भाई टिक्का और भाई तिहार जैसे कई नामों से जाना जाता है, भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का उत्सव है। यह त्योहार कार्तिक शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है और दीपावली के पंचदिवसीय उत्सव का समापन करता है। इसका मूल भाव भाई-बहन के बीच प्रेम, संरक्षण, कर्तव्य और परस्पर सम्मान की परंपरा को जीवित करना है। यह मात्र एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि संबंधों में गहराई लाने, परिवारिक सौहार्द बनाए रखने और भावनात्मक शक्ति को पुष्ट करने का अद्वितीय पर्व है।
सबसे प्राचीन कथा यमराज और यमुना से जुड़ी है। कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या के दूसरे दिन यमराज अपनी बहन यमी अथवा यमुना से मिलने उनके घर पहुँचे। यमुना ने अपने भाई के स्वागत में दीप जलाए, स्वादिष्ट भोजन स्वयं अपने हाथों से तैयार किया और उनके मस्तक पर तिलक कर आशीर्वाद दिया। स्नेह और श्रद्धा से अभिभूत होकर यमराज ने बहन को वरदान दिया कि इस दिन बहनें जब अपने भाइयों का तिलक करेंगी तब भाइयों को अकाल मृत्यु का भय नहीं होगा और उनकी आयु समृद्धि वर्धत रहेगी। तभी से भाई दूज की परंपरा चलन में आई।
यह कथा भाई-बहन के रिश्ते में सुरक्षा और आशीर्वाद का गहरा संदेश देती है। यह सिद्ध करती है कि बहन की सच्ची प्रार्थना और भक्ति, भाइयों के लिए अजेय रक्षा कवच बन सकती है।
एक अन्य महत्वपूर्ण कथा श्रीकृष्ण और उनकी बहन सुभद्रा से संबंधित है। नरकासुर का वध कर जब कृष्ण विजयी होकर लौटेतब उनकी बहन सुभद्रा ने दीपमालाएँ सजाईं, पुष्पमंडप बनाया और प्रेमपूर्वक उनका तिलक कर दीर्घ आयु का आशीर्वाद दिया। उसी क्षण से भाई दूज पर बहनें अपने भाइयों को सम्मान, आशीर्वाद और प्रेम प्रदान करती हैं और भाई उन्हें उपहार देकर उत्तर देते हैं।
यह कथा हमें सिखाती है कि भाई-बहन का बंधन केवल रक्त का संबंध नहीं बल्कि पारिवारिक संरचना और लोकजीवन का स्थायी आधार है।
इस अवसर पर दोपहर का समय विशेष रूप से शुभ माना गया है क्योंकि यह काल दिव्य ऊर्जा से परिपूर्ण होता है। इस समय भाई-बहन मिलकर पूजा करने से आयु, स्वास्थ्य और परिवार में समृद्धि की स्थिरता बनी रहती है।
इन क्षेत्रीय विविधताओं के बावजूद भाई दूज का भाव एक ही है, भाई-बहन के अटूट प्रेम और सुरक्षा के बंधन को स्मरण करना।
पहलू | भाई दूज | होली भाई दूज |
---|---|---|
समय | दीपावली के दो दिन बाद कार्तिक शुक्ल द्वितीया | होली के दो दिन बाद फाल्गुन शुक्ल द्वितीया |
महत्व | भाई की दीर्घायु और समृद्धि की कामना | आपसी मेलजोल और आनंदपूर्ण वातावरण |
पूजा विधि | तिलक, आरती, उपहार, भेंट, भोजन | साधारण तिलक, हंसी-मजाक, भाईचारे का उत्सव |
स्वरूप | गम्भीर, श्रद्धामय, कर्तव्यपरक | उत्सवधर्मी, हल्का-फुल्का, हास्यपूर्ण |
भाई दूज आधुनिक व्यस्तता में हमें यह याद दिलाता है कि रिश्तों और परिवारिक संबंधों का महत्व सबसे अधिक है। यह पर्व भाई को आशीर्वाद और सुरक्षा प्रदान करता है तथा बहन को प्रेम, स्नेह और सम्मान का अनुभव कराता है।
सच्चे मन और विश्वास से सम्पन्न भाई दूज २०२५ भाई-बहन के रिश्ते में न केवल आत्मिक शक्ति बढ़ाएगा बल्कि जीवन में सुख, शांति और दीर्घकालिक पारिवारिक बंधन को दृढ़ बना देगा। यह एक ऐसा अवसर है जब प्रेम और परंपरा मिलकर हर घर को आलोकित कर देती है।
प्रश्न १. भाई दूज २०२५ कब मनाया जाएगा?
उत्तर: भाई दूज २०२५ गुरुवार, २३ अक्टूबर को कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर मनाया जाएगा।
प्रश्न २. भाई दूज २०२५ का शुभ मुहूर्त क्या है?
उत्तर: इस वर्ष भाई दूज पूजा का उत्तम मुहूर्त अपराह्न काल में है, जो दोपहर १२:३४ बजे से २:५१ बजे तक रहेगा।
प्रश्न ३. भाई दूज की पूजा में क्या आवश्यक सामग्री होती है?
उत्तर: पूजा थाली, दीपक, रोली, कुमकुम, चंदन, अक्षत (चावल), नारियल, फल, मिठाई, पुष्प और अगरबत्ती भाई दूज अनुष्ठान के लिए आवश्यक हैं।
प्रश्न ४. भाई दूज और होली भाई दूज में क्या अंतर है?
उत्तर: दीपावली के बाद मनाया जाने वाला भाई दूज गंभीर और पारंपरिक स्वरूप का होता है, जिसमें भाई की दीर्घायु और समृद्धि की कामना की जाती है। जबकि होली के बाद मनाया जाने वाला भाई दूज हल्का-फुल्का और उत्सवधर्मी होता है, जिसमें हंसी-ठिठोली अधिक होती है।
प्रश्न ५. यदि किसी बहन का भाई न हो तो वह भाई दूज कैसे मनाती है?
उत्तर: ऐसी स्थिति में बहनें चंद्र देव की पूजा करती हैं और प्रतीकात्मक रूप से भाई दूज का अनुष्ठान सम्पन्न करती हैं, जिससे उन्हें भाई समान आशीर्वाद प्राप्त होता है।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
इस लेख को परिवार और मित्रों के साथ साझा करें